माह: जुलाई 2017

एक “नया मनुष्य”

मोंटेगो, जमाइका में किशोरों का एक समूह वृद्धाश्रम घूमने गया l एक युवती ने एक कमरे में एक अकेले व्यक्ति को देखा l  उसके पास केवल एक खाट थी , जिस पर अशक्तता के कारण वह स्थिर था l

उस किशोरी ने सीधे उसको परमेश्वर के प्रेम की कहानी और बाइबिल के कुछ परिच्छेद पढ़कर सुनाया l बाद में वह याद करती, “उसके साथ संवाद करते समय, मैंने उसके अन्दर और सुनने की जिज्ञासा देखी l” प्रतिउत्तर में, उसने यीशु की बलिदानी मृत्यु का आश्चर्य बताया l उसने याद किया, “इस आशाहीन और परिवार रहित व्यक्ति के लिए समझना कठिन था कि कोई अपरिचित व्यक्ति उससे प्रेम करके उसके पापों के लिए क्रूस पर अपना प्राण दे l”

उसने उसे विश्वास करनेवालों के लिए स्वर्ग की प्रतिज्ञा(एक नया शरीर भी) के साथ यीशु के विषय और बताया l उसने उससे पुछा, “क्या तुम मेरे संग वहां नाचोगी?” उसने उसको अपने दुर्बल शरीर और अशक्त करनेवाली सीमाओं से स्वतंत्रता की कल्पना करते देखा l

यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण करने की इच्छा जताने पर, उसने उसे क्षमा और विश्वास की प्रार्थना में सहायता की l तस्वीर लेने के आग्रह पर, उस व्यक्ति ने कहा, “यदि तुम मुझे बैठने में मदद करोगी l मैं एक नया मनुष्य हूँ l”

जीवन-परिवर्तन, आशा-देनेवाले, सब के लिए यीशु मसीह के सुसमाचार हेतु परमेश्वर की स्तुति हो! हर एक विश्वास करनेवाले के लिए नया जीवन है (कुलु. 1:5, 23) l

सब पीढ़ीयाँ

1933 के महामंदी में मेरे माता-पिता ने शादी की l मेरी पत्नी और मैं द्वितीय विश्वयुद्ध पश्चात जन्म दर में नाटकीय वृद्धि के समय  बच्चा जन्म दर वृद्धि काल में जन्में l 70 और 80 के दशक में जन्मीं हमारी चार बेटियाँ, पीढ़ी X और Y की हैं l इन भिन्न समयों में बढ़ने के कारण अनेक बातों में परस्पर मतभिन्नता चकित करनेवाली बात नहीं!

          पीढ़ियाँ अपने जीवन अनुभवों और मान्यताओं में बेहद भिन्न होती हैं l और यह मसीह के अनुगामियों में सच है l किन्तु हमारी भिन्नताओं के बावजूद, हमारा आत्मिक संपर्क सुदृढ़ है l

          परमेश्वर का स्तुति गीत, भजन 145, हमारा विश्वास बंध घोषित करता है l “तेरे कामों की प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामों का वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा  ... लोग तेरी बड़ी भलाई [की] ... चर्चा करेंगे” (पद.4,7) l उम्र और अनुभव की बड़ी भिन्नता में, हम प्रभु का आदर करते हैं l वे तेरे राज्य की महिमा ... और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे” (पद.11) l

          जबकि भिन्नता और प्राथमिकताएँ हमें विभाजित करेंगी, यीशु मसीह में सहभाजी विश्वास हमें आपसी भरोसा, उत्साह, और प्रशंसा में एक करेगा l हमारी उम्र और दृष्टिकोण कुछ भी हो, हमें परस्पर ज़रूरत है l हम किसी भी पीढ़ी के हों, हम परस्पर सीखकर प्रभु का आदर करते हैं-“कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें” (पद.12) l

पहुँच का स्वभाग्य

प्रतिरूप होने के बावजूद, दक्षिणी इस्राएल में स्थापित मंदिर (मिलाप का तम्बू) विस्मयकारी था l निर्गमन 25-27 में वर्णित विवरण के अनुरूप मूल आकर में निर्मित (असली स्वर्ण और बबूल की लकड़ी को छोड़कर), वह दक्षिणी मरुभूमि में स्थित था l

जब हमारे पर्यटक समूह को “पवित्र स्थान” और “महापवित्र स्थान” में “संदूक” दिखाने के लिए ले जाया गया हममें से कुछ एक लोग हिचकिचाए l क्या यह वह महापवित्र स्थान नहीं था जिसमें केवल महायाजक ही प्रवेश कर सकता था? हम इसमें कैसे इतनी सरलता से प्रवेश कर सकते हैं?

मैं कल्पना करता हूँ कि इस्राएली हर बार अपने बलिदानों के साथ मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करते समय भयभीत होते होंगे, यह समझते हुए कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की उपस्थिति में आ रहे हैं l और जब-जब मूसा द्वारा उनको परमेश्वर का सन्देश मिलता होगा वे आश्चर्यचकित होते होंगे l

आज, आप और मैं यह जानते हुए कि यीशु के बलिदान ने परमेश्वर और हमारे बीच की दीवार तोड़ दी है हम भरोसे के साथ परमेश्वर के निकट आ सकते हैं (इब्रा. 12:22-23) l हर एक व्यक्ति परमेश्वर से कभी भी संवाद करके उसके वचन को पढ़कर उसकी सीधी सुन सकता है l हम सीधी पहुँच का आनंद लेते हैं जो इस्राएलियों की कल्पना थी l स्वर्गिक पिता की प्रिय संतान होकर प्रतिदिन उसकी विस्मयकारी उपस्थिति में जाकर उसको संजोने का महत्त्व समझें l

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क्षमा!

कार्य से घर लौटकर मेरा मित्र नॉर्म कुक कभी-कभी अपने परिवार को आश्चर्य देता था l वह घर में आकर चिल्लाता, “तुम क्षमा किये गए हो!” परिजनों ने उसकी हानि नहीं की थी इसलिए उनको उनकी  क्षमा चाहिए थी l यह ताकीद थी कि बेशक दिन भर पाप करने पर भी, उन्हें परमेश्वर के अनुग्रह से पूर्णरूपेण क्षमा मिल गई थी l  

प्रेरित यूहन्ना अनुग्रह के विषय कहता है : “यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं, और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है l यदि हम कहें कि हममें कुछ भी पाप नहीं [पाप के प्रति कोई झुकाव नहीं], तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं l यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह ... हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:7-9) l

“ज्योति में चलें” यीशु के अनुसरण का एक अलंकार है l यूहन्ना अनुसार, आत्मा द्वारा यीशु का अनुकरण, विश्वास की संगति में प्रेरितों के साथ जुड़ जाने का संकेत है l हम असली मसीही हैं l किन्तु, वह आगे कहता है, हम धोखा न खाएं : हम कभी-कभी गलत चुनाव करेंगे l तथापि, अनुग्रह भरपूर है l हमें आवश्यकतानुसार क्षमा मिलेगी l  

सिद्ध नहीं, केवल यीशु द्वारा क्षमा! आज के लिए यह अच्छा शब्द है l

मधुर संगति

नर्सिंग होम में वह वृद्ध महिला किसी से बातचीत नहीं करती थी अथवा किसी से कुछ नहीं मांगती थी l ऐसा लगता था मानों वह अपनी जर्जर पुरानी कुर्सी में झूलती हुई, महज जीवित थी l उससे मिलनेवाले कम ही थे, लिहाजा एक जवान नर्स अपने अवकाश के समय उसके कमरे में अक्सर जाती थी l उस महिला से बातचीत आरंभ न करने की इच्छा से प्रश्न न पूछकर, वह एक और कुर्सी खींचकर उसके साथ झूलने लगी l कुछ महीनों के बाद, उस वृद्ध महिला ने उससे कहा, “मेरे साथ झूलने के लिए धन्यवाद l” वह संगति के लिए धन्यवादी थी l

स्वर्ग जाने से पहले, यीशु ने अपने शिष्यों के साथ निरंतर रहनेवाला एक सहायक भेजने की प्रतिज्ञा की l उसने उनसे कहा कि वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ेगा किन्तु उनके संग रहने के लिए पवित्र आत्मा भेजेगा (यूहन्ना 14:17) l वह प्रतिज्ञा आज भी यीशु के विश्वासियों के लिए सच है l यीशु ने कहा कि त्रियेक परमेश्वर हममें अपना “घर” बनाएगा (पद.23) l

हमारे सम्पूर्ण जीवन में प्रभु हमारा निकट और विश्वासयोग्य सहयोगी है l वह हमारे कठिनतम संघर्षों में मार्गदर्शन करेगा, हमारे पाप क्षमा करेगा, प्रत्येक शांत प्रार्थना सुनेगा, और उन बोझों को उठाएगा जो हमारे लिए उठाना कठिन है l

आज हम उसकी मधुर संगति का आनंद उठा सकते हैं l

गहराई में से

समस्या के संकेत की चेतावनी पर मैंने जल की बारीकी से जांच की l मैंने जीवन-रक्षक की छः घंटे की शिफ्ट ड्यूटी में, तरणताल के किनारे से तैरनेवालों की सुरक्षा पर ध्यान देता रहा l अपनी जगह छोड़ना, अथवा अपनी सावधानी में ढीला होना, तरणताल में तैरनेवालों के लिए भयानक परिणाम ला सकता था l किसी तैराक की चोट या कौशल की कमी के कारण उसके डूबने की आशंका में, उसे तरणताल के बाहर निकलना मेरी जिम्मेदारी थी l

पलिश्तियों के विरुद्ध युद्ध में परमेश्वर की सहायता अनुभव करने के बाद (2 शमूएल 21:15-22), दाऊद अपने बचाव की तुलना “गहरे जल” (22:17) में से खींचकर बाहर निकाले जाने से करता है l स्वयं दाऊद का-और उसके लोगों का जीवन-उसके शत्रुओं के गंभीर खतरे में थी l परमेश्वर ने मुसीबत में डूबते हुए दाऊद के जीवन को बाहर निकाल लिया l जबकि तैरनेवालों की सुरक्षा के लिए जीवन-रक्षकों को भुगतान किया जाता है, अपितु, परमेश्वर, दाऊद से प्रसन्न  होकर उसे बचाया ([पद. 20) l मेरा हृदय यह जानकार अति आनंदित है कि परमेश्वर बाध्यता के कारण नहीं किन्तु अपनी इच्छा  से मेरी सुरक्षा करता है l

जीवन की समस्याओं से अभिभूत होने पर, हम इस ज्ञान में विश्राम पा सकते हैं कि परमेश्वर हमारा जीवन-रक्षक है, हमारे संघर्ष को जानता है और, अपनी प्रसन्नता के कारण हमारी सुरक्षा करता है l

जो हम वापस लाते हैं

जॉन एफ. बर्न्स विश्व घटनाओं पर 40 वर्षों तक द न्यू यॉर्क टाइम्स  के लिए लिखते रहे l 2015 में बर्न्स सेवानिवृति पश्चात् एक लेख में, कैंसर पीड़ित घनिष्ठ मित्र और संगी-पत्रकार के शब्द याद किये l “कभी न भूलना,” सहकर्मी ने कहा, “यह महत्वपूर्ण नहीं आपने कितनी लम्बी यात्रा की है; आप क्या वापस लाए हैं महत्वपूर्ण है l”

भजन 37 दाऊद की चरवाहा से सैनिक से राजा तक की जीवन यात्रा से “वापस लायी हुई बातों” की सूची हो सकती है l भजन 37 दुष्ट का धर्मी से तुलना, और प्रभु में भरोसा करनेवालों की पुष्टि करनेवाले दोहा श्रृंखला है l

“कुकर्मियों से मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर ! क्योंकि वे घास के समान ... मुरझा जाएँगे” (पद.1-2) l

“मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, ... चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है” (पद.23-24) l

“मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है” (पद.25) l

परमेश्वर ने हमें, हमारे जीवन के अनुभवों से क्या सिखाया है? हमने कैसे उसकी विश्वासयोग्यता और प्रेम का अनुभव् किया है? किस तरह परमेश्वर के प्रेम ने हमारे जीवनों को गढ़ा है?

महत्वपूर्ण यह नहीं हम जीवन में कितनी दूर चले हैं, किन्तु जो हम वापस लेकर आये हैं l

समाज निर्माण

हेनरी नोवेन कहते हैं, “समाज” ऐसा स्थान है जहाँ वह व्यक्ति जिसके साथ आप शायद ही रहना पसंद करें हमेशा आपके साथ रहता है, l अक्सर हम अपने पसंदीदा लोगों के चारों ओर रहते हैं, जो एक क्लब अथवा गुट होता है, समाज नहीं l कोई भी क्लब बना सकता है; समाज निर्माण में मनोहरता, सहभाजी दर्शन, और मेहनत चाहिए l

इतिहास में मसीही कलीसिया यहूदी और गैर-यहूदी, पुरुष और स्त्री, दास और स्वतंत्र को बराबरी का दर्जा देनेवाली प्रथम व्यवस्था थी l प्रेरित पौलुस ने यह “भेद ... जो ... परमेश्वर में आदि से गुप्त था” की सार्थकता बतायी l पौलुस ने कहा कि विविध सदस्यों को मिलाकर एक समाज के निर्माण से, हमारे पास संसार के ध्यान के साथ-साथ पार अलौकिक संसार का ध्यान भी आकर्षित करने का अवसर है (इफि. 3:9-10) l

कलीसिया इस कार्य में कई तरीके से दुर्भाग्यवश पराजित हुई है l  फिर भी, कलीसिया ही एकमात्र स्थान है जहाँ मैं पीढ़ियों को एक साथ आते देखता हूँ : नवजात जो अभी भी माताओं की बाहों में हैं, समस्त गलत समय में कसमसाते और खीस दिखाते बच्चे, जिम्मेदार व्यस्क जो हर समय उचित कार्य करना जानते हैं, और वे जो उपदेशक के लम्बे सन्देश देने पर सो जाते हैं l

यदि हम सामाजिक अनुभव चाहते हैं जो परमेश्वर हमें देना चाहता है, हमारे पास  “अपने से भिन्न” लोगों की मण्डली खोजने का कारण है l