प्रतिरूप होने के बावजूद, दक्षिणी इस्राएल में स्थापित मंदिर (मिलाप का तम्बू) विस्मयकारी था l निर्गमन 25-27 में वर्णित विवरण के अनुरूप मूल आकर में निर्मित (असली स्वर्ण और बबूल की लकड़ी को छोड़कर), वह दक्षिणी मरुभूमि में स्थित था l

जब हमारे पर्यटक समूह को “पवित्र स्थान” और “महापवित्र स्थान” में “संदूक” दिखाने के लिए ले जाया गया हममें से कुछ एक लोग हिचकिचाए l क्या यह वह महापवित्र स्थान नहीं था जिसमें केवल महायाजक ही प्रवेश कर सकता था? हम इसमें कैसे इतनी सरलता से प्रवेश कर सकते हैं?

मैं कल्पना करता हूँ कि इस्राएली हर बार अपने बलिदानों के साथ मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करते समय भयभीत होते होंगे, यह समझते हुए कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की उपस्थिति में आ रहे हैं l और जब-जब मूसा द्वारा उनको परमेश्वर का सन्देश मिलता होगा वे आश्चर्यचकित होते होंगे l

आज, आप और मैं यह जानते हुए कि यीशु के बलिदान ने परमेश्वर और हमारे बीच की दीवार तोड़ दी है हम भरोसे के साथ परमेश्वर के निकट आ सकते हैं (इब्रा. 12:22-23) l हर एक व्यक्ति परमेश्वर से कभी भी संवाद करके उसके वचन को पढ़कर उसको सीधे सुन सकता है l हम सीधी पहुँच का आनंद लेते हैं जो इस्राएलियों की कल्पना थी l स्वर्गिक पिता की प्रिय संतान होकर प्रतिदिन उसकी विस्मयकारी उपस्थिति में जाकर उसको संजोने का महत्त्व समझें l