हमारी कलीसिया नए अगुओं को समर्पित करनेवाली थी l सेवक-अगुआ के प्रतीक को बताने के लिए, कलीसिया के प्राचीनों ने पाँव धोने के यादगार क्षण में भागीदारी की l प्रत्येक अगुआ-पासवान के साथ-मण्डली की उपस्थिति में एक दूसरे के पाँव धोए l
उस दिन प्राचीनों द्वारा किये गए कार्य को यीशु ने हमारे लिए नमूना के तौर पर किया था, जैसे कि यूहन्ना 13 में वर्णित है l उस घटना में, जिसे अंतिम भोज कहा जाता है, यीशु ने “भोजन पर से उठकर … बर्तन में पानी भरकर चेलों के पाँव धोने … लगा” (यूहन्ना 13:4-5) l बाद में, यीशु अपने शिष्यों को इसका कारण बताते हुए कहा, “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं, और न भेजा हुआ अपने भेज्नेवेवाले से” (पद.16) l उसने यह भी कहा, “मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ” (लूका 22:27) l
यदि ऐसा छोटा काम यीशु की गरिमा से निम्न नहीं है, तो दूसरों की सेवा हमारे लिए भी निम्न नहीं है l उसने हमारे सामने कितना अद्भुत उदाहरण रखा l वास्तव में, वह “इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे” (मरकुस 10:45) l उसने हमें दिखाया कि एक अगुआ और एक सेवक होना क्या है l यह यीशु है, जो सेवा करता है l
यीशु के लिए किया गया कार्य छोटा नहीं होता l