कभी-कभी परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देने में समय लेता है, और हमें इसे समझने में कठिनाई होती है l
याजक जकरयाह की यही स्थिति थी, जब जिब्राइल स्वर्गदूत एक दिन यरूशलेम के मंदिर में एक वेदी के निकट उसके सामने प्रगट हुआ l जिब्राइल ने उससे कहा, “हे जकरयाह, भयभीत न हो, क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गयी है ; और तेरी पत्नी इलीशिबा से तेरे लिए एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना” (लूका 1:13, तिरछे अक्षर जोड़े गए हैं) l
किन्तु शायद जकरयाह ने वर्षों पहले परमेश्वर से पुत्र माँगा होगा, और उसने जिब्राइल के सन्देश से संघर्ष किया क्योंकि इलीशिबा के बच्चे जनने का समय समाप्त हो चुका था l फिर भी, परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली l
परमेश्वर की करूणा सिद्ध है l वह हमारी प्रार्थना को केवल वर्षों तक ही नहीं किन्तु हमारे समय से परे पीढ़ियों तक याद रख सकता है l वह उन्हें कभी नहीं भूलता है और हमारे द्वारा उसके सामने अपने निवेदनों को लाने के बहुत समय बाद उत्तर दे सकता है l कभी-कभी उसका उत्तर “नहीं” हो सकता है और दूसरे समय में “ठहरो”-किन्तु उसका उत्तर प्रेम से पूर्ण होता है l परमेश्वर के मार्ग हम समझते नहीं हैं, किन्तु हम भरोसा कर सकते हैं कि वे अच्छे हैं l
जकरयाह ने यह सीख लिया l उसने एक पुत्र माँगा, किन्तु परमेश्वर ने उससे कहीं अधिक दिया l उसका पुत्र बड़ा होकर उद्धारकर्ता की सूचना देनेवाला नबी बनने वाला था l
जकरयाह का अनुभव एक ख़ास सच्चाई को प्रगट करनेवाला था जो हमारी प्रार्थना के समय हमें उत्साहित कर सकता है : परमेश्वर का समय कभी-कभी ही हमारे मन के अनुसार होता है, किन्तु इसके लिए इंतज़ार करना लाभदायक है l
जब हम परमेश्वर के हाथों को कार्य करते नहीं देखते हैं,
उस समय भी हम उसके हृदय पर भरोसा कर सकते हैं l