Month: अक्टूबर 2017

रूत की कहानी

रूत रोकर ही अपनी कहानी बता सकती है l अस्सी से ऊपर और चलने फिरने में अयोग्य, रूत हमारे चर्च में मुख्य व्यक्ति नहीं लगती है l वह कहीं जाने के लिए दूसरों पर निर्भर है, और अकेली रहने के कारण उसके प्रभाव का क्षेत्र छोटा है l

किन्तु जब वह अपने उद्धार की कहानी बताती है-जो वह अक्सर करती है-रूत परमेश्वर के अनुग्रह की एक अद्भुत मिसाल है l जब वह 30 के आसपास की थी, एक सहेली उसे एक प्रार्थना सभा में ले गयी l रूत नहीं जानती थी कि वह एक उपदेशक की सुनने जा रही है l वह कहती है, “यदि मैं जानती तो कभी नहीं जाती l” वह पहले से “धर्म” में विश्वास करती थी जो उसके लिए लाभहीन था l किन्तु वह गयी l और उस रात उसने यीशु का सुसमाचार सुना l

अब, पचास वर्ष बाद, वह उसके जीवन को रूपांतरित करनेवाले यीशु की कहानी आनंद के आंसुओं के साथ बताती है l उस शाम, वह परमेश्वर की संतान बन गयी l उसकी कहानी कभी पुरानी नहीं होती l

इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हमारी कहानी रूत की तरह है या नहीं l अर्थपूर्ण यह है कि हम यीशु और उसकी मृत्यु और उसके पुनरुत्थान में सरलता से विश्वास  करें l प्रेरित पौलुस कहता है, “यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकार अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा” (रोमियों 10:9) l

रूत ने यही किया l आप भी कर सकते हैं l यीशु हमें छुड़ाता है, रूपांतरित करता है, और  नया जीवन देता है l

रहस्य सुलझाना

मैंने पीनट(कार्टून) के रचयिता, चार्ल्स शुलत्ज़ के ज्ञान और अंतर्दृष्टि का हमेशा आनंद उठाया है l चर्च के युवाओं के विषय एक पुस्तक में मेरा एक सबसे पसंदीदा कार्टून दिखाई दिया l उसमें एक युवा अपने हाथों में बाइबिल लिए हुए फोन पर अपने मित्र से बोल रहा था, “मेरी समझ में मैंने पुराने नियम के रहस्यों को समझने में प्रथम कदम बढ़ाया है ... मैंने पढ़ना शुरू कर दिया है!” (किशोर होना एक बीमारी नहीं  है) l

 प्रतिदिन परमेश्वर के वचन की शक्ति को समझने और अनुभव करने की लेखक की भूख भजन 119 में दिखाई देती है l “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है” (पद.97) l यह उत्साही प्रयास बढ़ती बुद्धिमान, समझ, और परमेश्वर की आज्ञाकारिता की ओर ले जाती है (पद. 98-100) l

बाइबिल अपने पन्नों में “रहस्यों को सुलझाने” का कोई जादुई सूत्र नहीं बताती है l प्रक्रिया मानसिक से परे है और जो हम पढ़ते हैं उसके प्रति उत्तर मांगती है l यद्यपि हमारे लिए कुछ एक परिच्छेद पेचीदा होंगे, हम उन सच्चाइयों को अपना कर जिन्हें हमने समझ लिया है, प्रभु से कहें, “तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं! तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ” (पद.103-104) l

परमेश्वर के वचन में खोज की एक अद्भुत यात्रा हमारा इंतज़ार कर रही है l

भरोसे का हिसाब

हम पति-पत्नी, मसीह को जीवन समर्पित करने से पहले तलाक लेना चाहते थे l  किन्तु प्रेम के प्रति समर्पण और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के बाद, हमने एक दूसरे के प्रति पूर्णः समर्पण किया l हमने बुद्धिमान सलाह प्राप्त करके पवित्र आत्मा से व्यक्तिगत तौर पर और पति-पत्नी के रूप में हमें रूपांतरित करने को निमंत्रित किया l हमारा स्वर्गिक पिता स्वस्थ संवाद निपुणता विकसित करने में निरंतर हमारी मदद करता है l वह हमें हर परिस्थिति में उस पर और एक दूसरे पर प्रेम और भरोसा करना सिखा रहा है l

फिर भी, विवाह की पच्चीसवाँ वर्षगांठ मनाने की तैयारी में, मैं कभी-कभी वह सब कुछ भूल जाती हूँ जो परमेश्वर ने हमारे आजमाइशों में और उसके द्वारा किया है l कभी-कभी मैं परमेश्वर की पिछली उपलब्धियों पर भरोसा न करके, अज्ञात के प्रति छिपे भय से संघर्ष करते हुए व्यर्थ चिंता अनुभव करती हूँ l

व्यवस्थाविवरण 1 में, मूसा ने प्रभु की विश्वासयोग्यता की पुष्टि करता है l उसने इस्राएलियों से विश्वास में आगे बढ़ने को कहा ताकि वे विरासत का आनंद उठा सकें (पद.21) l किन्तु परमेश्वर के लोगों ने भविष्य के लिए उस पर भरोसा करने सम्बन्धी सारा विवरण माँगा (पद.22-33) l

मसीह के विश्वासी भय अथवा चिंता के अधीन होने के प्रति प्रभावशून्य नहीं हैं l कठिनाईयों से सामना करने अथवा न करने की चिंता हमें हमारे विश्वास पर निर्भर रहने से रोक सकती है, और परमेश्वर और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को हानि पहुँचा सकती है l किन्तु पवित्र आत्मा प्रभु की पिछली विश्वासयोग्यता का हिसाब रखने में हमारी मदद कर सकता है l वह हमें कल, आज, और कल परमेश्वर की विश्वासयोग्यता में साहसिक भरोसा उत्पन्न कर सकता है l

परमेश्वर में जड़वत

मेरे मित्र के अपने नए घर में जाने के बाद, उन्होंने अपने बाड़े के निकट एक विशेष फूल का पौधा लगाकर पांच वर्ष का पौधा हो जाने के बाद खुशबूदार फूल की इच्छा की l उन्होंने दो दशकों तक उस पौधे का आनंद लिया, और सावधानी पूर्वक उसको छांटते और उसकी देखभाल करते रहे l किन्तु पड़ोसियों द्वारा बाड़े की दूसरी ओर कुछ कीटनाशक डालने के कारण अचानक वह पौधा मर गया l विष पौधे के जड़ों तक चला गया और पौधा मर गया-या मेरे मित्रों की सोच यही थी l अचानक, अगले वर्ष भूमि में से कुछ कोपलें निकलीं l

यिर्मयाह नबी द्वारा भरोसा करनेवाले परमेश्वर के लोग अथवा उसके मार्गों को त्यागने वालों के विषय बताते समय हम फलते-फूलते और बर्बाद होते पेड़ों की तस्वीर देखते हैं l परमेश्वर का अनुसरण करनेवाले अपनी जड़े जल के निकट फैलाएंगे और फलदायी होंगे (यिर्मयाह 17:8), किन्तु अपनी इच्छा पर चलनेवाले मरुभूमि में अधमरे पेड़ के समान होंगे (पद.5-6) l नबी की चाहत है कि परमेश्वर के लोग सच और जीवित परमेश्वर पर निर्भर होंगे, कि वे “उस वृक्ष के समान [होंगे] जो नदी के किनारे लगा” है (पद.8) l

हम जानते हैं कि “पिता किसान है” (यूहन्ना 15:1) और कि हम उसमें भरोसा करके प्रतीति करते हैं (यिर17:7) l  हम टिकनेवाले फल उत्पन्न करते हुए सम्पूर्ण हृदय से उसका अनुसरण करें l

परमेश्वर प्रावधान करता है

मेरे ऑफिस के बाहर, गिलहरियाँ ठण्ड के मौसम के लिए अपने बाँझफल सुरक्षित और सुगम स्थान में छिपा रही हैं l उनका शोर मेरा मनोरंजन करता है l हिरणों का एक झुण्ड हमारे पीछे के आँगन से बिना आवाज़ किये हुए निकल सकता है, किन्तु एक गिलहरी की आवाज़ एक आक्रमण सा लगता है l

ये दोनों प्राणियों में एक और अंतर भी है l हिरण सर्दियों के लिए तैयारी नहीं करते l बर्फ गिरने पर कुछ भी(आँगन के सजावटी पौधे भी ) खा लेते हैं l किन्तु गिलहरियाँ हिरन का अनुसरण कर भूखों मर जाएंगी l वे उचित भोजन नहीं ढूंढ पाएंगी l

हिरण और गिलहरी हमारे लिए परमेश्वर की देखभाल दर्शाती हैं l वह हमें काम करके भविष्य के लिए बचत करने देता है, और संसाधन कम होने पर भी वह हमारी ज़रूरतें पूरी करता है l जैसे कि बुद्धि साहित्य सिखाती है, परमेश्वर हमें बहुतायत का मौसम देता है ताकि हम ज़रूरत के समय के लिए तैयारी कर सकें (नीतिवचन 12:11) l और भजन 23 कहता है, वह हमें घोर अंधकार से भरी तराईयों से ले कर हरी चराइयों में भी बैठाता है l

परमेश्वर भरपूर लोगों के द्वारा भी ज़रुरतमंदों की पूर्ति करता है (व्यव. 24:19) l इसलिए जब प्रावधान की बात आती है, बाइबिल का सन्देश यह है : जब तक काम कर सकते हैं करें, जो बचत कर सकते हैं करें, जो बाँट सकते हैं बाँटें, और अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए परमेश्वर पर भरोसा करें l

अत्यंत बेहतर

मेरा जन्म दिन मेरी माँ के जन्मदिन के बाद आता है l एक किशोरी के रूप में, मैं अपने बजट में रहकर ऐसा उपहार खरीदने का प्रयास करती हूँ जिससे मेरी माँ खुश हो जाए l उन्होंने मेरे उपहार को हमेशा पसंद किया, और अगले दिन मेरे जन्मदिन पर उसे मुझे दे दिया l कोई शक नहीं कि उनका उपहार मेरे उपहार को मात देता था l उनका उद्देश्य मेरे उपहार को फीका करना नहीं होता था, बल्कि वो अपने साधन से देती थीं, जो  मेरे से कहीं अधिक था l

मेरी माँ को देने की मेरी इच्छा मुझे दाऊद का परमेश्वर के लिए एक घर बनाने की इच्छा याद दिलाती है l अपने महल और उस तम्बू के विषय जहाँ परमेश्वर ने खुद को प्रगट किया था के बीच विरोध से प्रभाबित होकर, दाऊद परमेश्वर के लिए एक मंदिर बनाना चाहा l दाऊद के देने की इच्छा पूर्ति के स्थान पर, परमेश्वर ने उसे अत्यंत बेहतर उपहार दिया l परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी कि दाऊद का एक पुत्र (सुलेमान) मंदिर ही नहीं बनाएगा (1 इतिहास 17:11), किन्तु वह दाऊद के लिए एक घर, एक वंश बनाएगा l वह प्रतिज्ञा सुलेमान से आरम्भ होकर अंततः यीशु में पूर्ण हुई, जिसकी राजगद्दी वास्तव में “सदैव स्थिर” है (पद. 12) l दाऊद अपने सिमित श्रोत में से देना चाहता था, किन्तु परमेश्वर ने कुछ असीमित देने की प्रतिज्ञा की l

दाऊद की तरह, हम भी परमेश्वर को कृतज्ञता और प्रेम से दें l और सर्वदा महसूस करें कि उसने यीशु में हमें अधिक बहुतायत से दिया है l

बियाबान में जीवित रहना

1960 के दशक में, गायकों की तगड़ी किंगस्टन ने “डेजर्ट पीट” नामक एक गीत जारी किया l प्रेम गीत में एक प्यासा चरवाहा है जो मरुभूमि पार करते समय एक हैण्ड पंप के निकट पहुँचता है, जहाँ डेजर्ट पीट पढ़ने वाले से एक पर्चा के द्वारा आग्रह करता है कि बर्तन में रखे पानी का उपयोग पीने के बजाए हैण्ड पंप को चलाने के लिए करें l

चरवाहा पानी पीने का लोभ त्यागकर कहे अनुसार पानी का उपयोग करता है l  आज्ञाकारिता के परिणामस्वरूप उसे अधिक मात्र में ठंडा और संतुष्ट करनेवाला जल मिलता है l यदि वह भरोसा नहीं करता, उसे पीने के लिए संतुष्ट न करनेवाला केवल एक बर्तन गर्म पानी ही मिलता l

यह मुझे बियाबान में इस्राएल की यात्रा याद दिलाती है l जब उनकी प्यास उनको परेशान करने लगी (निर्ग. 17:1-7), मूसा प्रभु के पास गया l उसे होरेब की चट्टान को अपनी लाठी से मारने को कहा गया l मूसा द्वारा विश्वास करके आज्ञा मानने से चट्टान से जल निकला l

दुर्भाग्यवश, इस्राएल लगातार मूसा के विश्वास के उदहारण पर नहीं चले l आखिरकार, “सुने हुए वचन से उन्हें कुछ लाभ न हुआ; क्योंकि सुननेवालों के मन में विश्वास के साथ नहीं बैठा” (इब्रा. 4:2) l

कभी-कभी जीवन एक निर्जल मरुभूमि के समान लगता है l किन्तु सबसे अविश्वसनीय परिस्थिति में भी परमेश्वर हमारी आत्मिक प्यास बुझा सकता है l जब हम विश्वास से परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं मानते हैं, हम अपने दैनिक ज़रूरतों के लिए जीवन जल और अनुग्रह के सोते का अनुभव कर सकते हैं l

भेष बदले हुए यीशु

मेरी एक सहेली अपने लाचार सास की देखभाल करते समय, उससे पूछी कि उसकी सबसे बड़ी इच्छा क्या है l उसकी सास बोली, “मेरे पैर धो दो l” मेरी सहेली ने स्वीकारा कि  इस काम से वह बहुत घृणा करती थी! उनका मुझे यह काम बताने पर मैं नाराज़ होकर परमेश्वर से बोली कि मेरी भावनाएं उनसे छिपा दें l

किन्तु एक दिन अचानक उसका कुड़कुड़ानेवाला आचरण बदल गया l जैसे ही उसने चिलमची, और तौलिया लेकर अपनी सास के पाँव धोने के लिए झुकी, उसने कहा, “मैंने ऊपर देखा, और एक क्षण मैंने महसूस किया कि मैं स्वयं यीशु के पाँव धो रही हूँ l वह यीशु के वेश में थी!” उसके बाद, उसने अपनी सास के पाँव धोने में सम्मान अनुभव किया l

इस दिल को छूनेवाली घटना के विषय सुनकर, मैंने अंत समय के विषय यीशु की कहानी के विषय विचार की जो उसने जैतून के पहाड़ के ढलान पर बतायी थी l राजा यह कहकर अपने राज्य में अपने पुत्र और पुत्रियों का स्वागत करता है, कि जब उन्होंने बीमारों से मुलाकात की और भूखों को भोजन खिलाया, “तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्ती 25:40) l हम भी यीशु ही की सेवा करते हैं जब हम बंदियों से बंदीगृह में मुलाकात करते हैं और ज़रुरतमंदों को वस्त्र पहनाते हैं l

आज, आप भी मेरी सहेली के साथ कहेंगे, जो किसी भी नए व्यक्ति से मिलकर विचार करती है, “क्या आप भेष बदले हुए यीशु तो नहीं?”

भाई- भाई में

मेरा भाई और मैं जिनमें एक वर्ष से भी कम अंतर है, उम्र में बढ़ते हुए बहुत “प्रतियोगी” रहे (अनुवाद : हम लड़ते थे! ) l पिता समझ गए l उनके पास भाई थे l माँ? थोड़ा समझ पायी l

हमारी कहानी उत्पत्ति की पुस्तक में ठीक बैठ सकती थी, जिसे एक अच्छा नाम दिया जा सकता था भाईयों के आपसी झगड़े का संक्षिप्त इतिहास l  कैन और हाबिल (उत्प.4); इसहाक और इश्माएल (21:8-10); बिन्यामिन को छोड़कर, यूसुफ और बाकी सब (अध्याय 37) l किन्तु भाईयों की दुश्मनी में याकूब और एसाव अव्वल हैं l  

एसाव अपने जुड़वाँ भाई याकूब से दो बार धोखा खाने पर उसकी हत्या करना चाहा (27:41) l दशकों बाद याकूब और एसाव मेल करनेवाले थे (अध्याय 33) l किन्तु उनके वंशज एदोम और इस्राएल राष्ट्र में शत्रुता चलती रही l इस्राएलियों के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करते समय, एदोम धमकी और सेना के साथ उनसे मिला (गिनती 20:14-21) l बहुत बाद में, जब आक्रमणकारियों से यरूशलेम वासी भागने लगे, एदोम ने शरणार्थियों को मारा (ओबद्याह 1: 10-14) l

हमारे लिए सुखकर है कि बाइबिल केवल हमारे टूटेपन की नहीं किन्तु परमेश्वर के छुटकारे की कहानी भी बताती है l यीशु ने सब कुछ बदल दिया और अपने शिष्यों से कहा, “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि एक दूसरे से प्रेम रखो” (यूहन्ना 13:34) l तब वह हमारे लिए मर कर उसका अर्थ बता दिया l

बड़े होकर हम दोनों भाई निकट आ गए l परमेश्वर के साथ भी ऐसा है l जब हम उसके द्वारा प्रदत्त क्षमा का उत्तर देते हैं, वह भाई-बहनों के बीच विरोध को भाईचारे के प्रेम में बदल देता है l