मेरा जन्म दिन मेरी माँ के जन्मदिन के बाद आता है l एक किशोरी के रूप में, मैं अपने बजट में रहकर ऐसा उपहार खरीदने का प्रयास करती हूँ जिससे मेरी माँ खुश हो जाए l उन्होंने मेरे उपहार को हमेशा पसंद किया, और अगले दिन मेरे जन्मदिन पर उसे मुझे दे दिया l कोई शक नहीं कि उनका उपहार मेरे उपहार को मात देता था l उनका उद्देश्य मेरे उपहार को फीका करना नहीं होता था, बल्कि वो अपने साधन से देती थीं, जो  मेरे से कहीं अधिक था l

मेरी माँ को देने की मेरी इच्छा मुझे दाऊद का परमेश्वर के लिए एक घर बनाने की इच्छा याद दिलाती है l अपने महल और उस तम्बू के विषय जहाँ परमेश्वर ने खुद को प्रगट किया था के बीच विरोध से प्रभाबित होकर, दाऊद परमेश्वर के लिए एक मंदिर बनाना चाहा l दाऊद के देने की इच्छा पूर्ति के स्थान पर, परमेश्वर ने उसे अत्यंत बेहतर उपहार दिया l परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी कि दाऊद का एक पुत्र (सुलेमान) मंदिर ही नहीं बनाएगा (1 इतिहास 17:11), किन्तु वह दाऊद के लिए एक घर, एक वंश बनाएगा l वह प्रतिज्ञा सुलेमान से आरम्भ होकर अंततः यीशु में पूर्ण हुई, जिसकी राजगद्दी वास्तव में “सदैव स्थिर” है (पद. 12) l दाऊद अपने सिमित श्रोत में से देना चाहता था, किन्तु परमेश्वर ने कुछ असीमित देने की प्रतिज्ञा की l

दाऊद की तरह, हम भी परमेश्वर को कृतज्ञता और प्रेम से दें l और सर्वदा महसूस करें कि उसने यीशु में हमें अधिक बहुतायत से दिया है l