बिल्कुल नया
कुछ वर्ष पूर्व एक प्रकाशक ने गलती की l एक पुस्तक बहुत वर्षों से बिक रही थी, इसलिए उसमें बदलाव ज़रूरी था l लेखक ने पुस्तक को पुनः लिखकर उसे बिल्कुल नया करना चाहा l किन्तु नए संकरण के प्रकाशन बाद, समस्या खड़ी हो गई l प्रकाशक ने नये आवरण के साथ पुरानी पुस्तक को छाप दी l
बाहरी आवरण साफ़ और नया था, किन्तु भीतर पुराना और पुराना l यह “नया संस्करण” नया नहीं था l
कभी-कभी लोग मानते हैं कि जीवन में बदलाव ज़रूरी है l बातें गलत दिशा में जा रही हैं l इसलिए हृदय में ज़रूरी बदलाव किये बिना बाहरी आवरण बदल देते हैं l वे किसी बाहरी आचरण को बदल देते हैं किन्तु समझते नहीं कि केवल परमेश्वर ही अन्दर का बदलाव ला सकता है l
यूहन्ना 3 में, निकुदेमुस ने ऐसा महसूस किया क्योंकि यीशु “परमेश्वर की ओर से” था (पद.2) l उसने बिल्कुल भिन्न बात बताया l यीशु के कहने पर निकुदेमुस ने पहचाना कि यीशू नए जन्म से कम कुछ नहीं देता है (पद.4) : उसे बिल्कुल नया बनने के लिए “नए सिरे” से जन्म लेना था (पद.7) l
बदलाव केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने से आता है l यह तब होता है जब “पुरानी बातें बीत” जाती हैं और “सब बातें नयी” हो जाती हैं (2 कुरिं. 5:17) l क्या आपको परिवर्तन चाहिए? यीशु में विश्वास करें l वही आपके हृदय को बदलकर सब कुछ बिल्कुल नया कर देता है l
नया विश्वास
मेरे पुत्र के नशीले पदार्थों से संघर्ष करते समय, मुझे विश्वास करने में कठिनाई होती थी कि एक दिन परमेश्वर हमारे अनुभुव द्वारा संघर्ष करनेवालों को उत्साहित करेगा l परमेश्वर के पास कठिन परिस्थितियों से भलाई निकालने का तरीका है जो उस समय देखना कठिन है जब हम उसमें होते हैं l
प्रेरित थोमा को भी परमेश्वर से अपने विश्वास की महानतम चुनौती अर्थात् यीशु के क्रूसीकरण से कुछ भलाई निकलने की आशा न थी l अपने पुनरुत्थान के बाद जब यीशु शिष्यों से मिलने आया थोमा वहाँ नहीं था, और अपने गहरे दुःख में दृढ़ता से बोला, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी ऊँगली न डाल लूँ, ... मैं विश्वास नहीं करूँगा” (यूहन्ना 20:25) l किन्तु बाद में, जब यीशु सभी शिष्यों के पास आया, परमेश्वर का आत्मा थोमा के शक से विश्वास का एक असाधारण कथन निकलने दिया l थोमा चिल्लाया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” (पद.28), वह इस सच्चाई को स्वीकार रहा था कि यीशु देह में परमेश्वर है, जो उसके सामने खड़ा है l यह विश्वास का एक दृढ़ कथन जो आनेवाले हर एक शताब्दी में विश्वासियों को उत्साहित करनेवाला था l
ऐसे क्षणों में भी जब हम कम आशा करते हैं, परमेश्वर हमारे हृदयों में नया विश्वास उत्पन्न कर सकता है l हम सदैव उसकी विश्वासयोग्यता की आशा कर सकते हैं l उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है!
वह दिन जब मैं प्रार्थना नहीं कर सका
नवम्बर 2015 में मुझे ओपन-हार्ट सर्जरी की ज़रूरत पड़ी l मैं चकित और भयभीत हुआ और मुझमें स्वाभाविक तौर से मृत्यु का भय समा गया l क्या कुछ संबंधों को ठीक करने थे? कुछ धन सम्बन्धी विषय मेरे परिवार को जानना ज़रूरी था? मैं सफल सर्जरी के महीनों बाद काम करने की स्थिति में आ पाता l क्या कुछ काम सर्जरी के पूर्व हो सकते थे? और क्या ज़रूरी काम दूसरों को दिये जा सकते थे? यह समय काम और प्रार्थना का था l
इसके सिवा मैं दोनों ही नहीं कर सकता था l
मेरे थके शरीर और मन से सरल कार्य भी असम्भव थे l मुझे प्रार्थना में असुविधा और बीमार हृदय के कारण नींद आती थी l मुझ में निराशा थी l काम नहीं कर सकने के कारण मैं परमेश्वर से परिवार के साथ रहने हेतु और समय भी नहीं मांग सकता था!
प्रार्थना नहीं कर सकना सबसे कष्टदायी था l किन्तु समस्त मानवीय ज़रूरतों में सृष्टिकर्ता मेरी स्थिति जानता था l आखिरकार, हमारे जीवनों की ऐसी स्थिति मैंने उसके द्वारा दी गयी दो तैयारियाँ याद की : प्रार्थना करने में हमारी अयोग्यता के समय पवित्र आत्मा की प्रार्थना (रोमि.8:26); और मेरे लिए दूसरों की प्रार्थना (याकूब 5:16: गला.6:2) l
पवित्र आत्मा का पिता से मेरे लिए प्रार्थना करना सुख देनेवाला था l मित्रों और परिजनों की प्रार्थना के विषय सुनना बड़ा उपहार था l एक और चकित करनेवाली बात : मित्रों और परिजनों का मुझसे प्रार्थना विषय पूछना, और उनको मेरा उत्तर देना भी परमेश्वर प्रार्थना के रूप में सुन रहा था l
अनिश्चितता के समय भी यह सोचना कि हमारी अयोग्यता में परमेश्वर हमारे हृदय की सुनाता है, एक उपहार है l
मौसम के अनुकूल वस्त्र
खरीदे गए सर्दी के कपड़ों की कीमत लेबल हटाते समय मैं उनके पीछे लिखे शब्दों को पढ़कर मुस्कराया : चेतावनी : जब आप इन नए वस्त्रों को पहनोगे आप बाहर ही रहना चाहोगे l” मौसम के अनुसार उचित कपड़े पहनकर, एक व्यक्ति कठोर मौसम की बदलती स्थितियों में भी जीवित रह सकता है l
हमारे आत्मिक जीवनों में भी यही सिद्धांत सच है l यीशु ने बाइबिल में अपने अनुयायियों के लिए सभी मौसम के लिए आत्मिक वस्त्र बताया है l “इसलिए परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो ... क्षमा करो; जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किये” (कुलु. 3:12-13 बल दिया गया है) l
परमेश्वर द्वारा दिए गए ये वस्त्र-जैसे भलाई, दीनता और नम्रता-धीरज, क्षमा और प्रेम के साथ विरोध और आलोचना का सामना करने में हमारी मदद करते हैं l ये हमें जीवन की आँधियों में स्थिर रहने की शक्ति देते हैं l
घर, स्कूल, अथवा कार्य में विपरीत स्थितियों का सामना करते समय परमेश्वर द्वारा बताए गए “वस्त्र” धारण करने से हमें सुरक्षा मिलती है और स्पष्ट अंतर लाने में योग्य बनाते हैं l “इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबंध है बाँध लो” (पद. 3:14) l
परमेश्वर के मार्गदर्शन अनुसार वस्त्र पहनना मौसम को नहीं बदलता-यह पहनने वाले को तैयार/लैस करता है l
खाली से भरपूर
बच्चों की एक लोकप्रिय पुस्तक में गाँव के एक गरीब बच्चे की कहानी है जिसने राजा के सम्मान में अपनी टोपी उतार दी l तुरंत ही दूसरी उसके सिर पर आ गयी, जिसे राजा अपमान समझकर क्रोधित हुआ l महल में दण्डित करने ले जाते समय बार्थोल्म्यु टोपी उतरता गया और लगातार नयी सुन्दर, बहुमूल्य मणि जड़ी और पंखों से सज्जित टोपियाँ उसके सिर पर आती गयी l राजा डरविन ने 500 वीं टोपी पसंद की और, बार्थोल्म्यु को क्षमा करके सोने के 500 टुकड़ों में टोपी खरीद ली l आखिर में, बार्थोल्म्यु परिवार की जीविका के लिए आज़ादी और धन के साथ अपने घर चला गया l
क़र्ज़ चुकाने में नाकाम और बच्चों के दासत्व में जाने के भय से एक विधवा आर्थिक तंगी में एलिशा के पास आई (2 राजा 4) l परमेश्वर ने एक हांड़ी तेल को गुणित करके क़र्ज़ भरने के लिए और दैनिक आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए उधार लिए गए अनेक बर्तन भर दिए (पद.7) l
जैसे परमेश्वर ने विधवा को आर्थिक मदद दी, वह मेरे लिए उद्धार का प्रबंध करता है l मैं पाप से दिवालिया हूँ, किन्तु यीशु ने मेरा क़र्ज़ भर दिया- और मुझे अनंत जीवन भी देता है l यीशु के बिना, हम उस निर्धन, गाँव के बच्चे की तरह अपने राजा के विरुद्ध किये गए गुनाह के बदले कुछ नहीं दे सकते l परमेश्वर हमारे लिए अद्भुत रूप से अत्यधिक फिरौती देता है, और उस पर भरोसा करनेवालों को अनंत जीवन भी देगा l
अलग किन्तु त्यागा हुआ नहीं
अपनी भांजी को उस शाम अलविदा कहते हुए मुझे बहुत दुःख हुआ जब वह मेसाच्युसेट्स में बोस्टन विश्वविद्यालय के स्नातक स्कूल में जा रही थी l यद्यपि पूर्वस्नातक होकर वह चार वर्ष तक दूर थी, वह राज्य के बाहर नहीं गयी थी l हम वाहन से ढाई घंटे की यात्रा करके आसानी से उससे मुलाकात कर लेते थे l अब वह 800 मील दूर जानेवाली थी l बात करने के लिए लगातार मिलना कठिन था l मुझे उसके देखभाल हेतु परमेश्वर पर भरोसा करना था l
इफिसुस के प्राचीनों को अलविदा कहते समय पौलुस ने भी ऐसा ही महसूस किया l चर्च स्थापना और उनको तीन वर्षों तक सिखाने के बाद, पौलुस ने उन प्राचीनों से उसके निकट परिवार की तरह रहने को कहा l अब यरूशलेम पहुंचने पर, उनसे उसकी मुलाकात होनेवाली नहीं थी l
किन्तु पौलुस ने इफिसियों को सलाह दिया l यद्यपि अब पौलुस उनका शिक्षक नहीं होगा, वे खुद को त्यागा हुआ न समझें l परमेश्वर निरंतर उनको कलीसिया की अगुवाई में अपने “अनुग्रह के वचन” द्वारा सिखाता रहेगा (प्रेरितों 20:32) l पौलुस के विपरीत, परमेश्वर हमेशा उनके साथ रहेगा l
बच्चों को घोंसले से बाहर करना हो या दूर जानेवाले परिवार के सदस्य और मित्रगण-विदाई बहुत कठिन हो सकती है l वे हमारे प्रभाव से दूर अपने नए जीवन में जाते हैं l हम भरोसा करें कि वे परमेश्वर के हाथों में हैं l वह उनके जीवन को निरंतर बनाएगा और हमसे भी अधिक उनकी वास्तविक ज़रूरतें पूरी करेगा l
तम्बुओं में निवास
अनेक सुन्दर झीलों के लिए प्रसिद्ध, मिनेसोटा में जहां मेरा पालन पोषण हुआ, मैं परमेश्वर की रचना की अद्भुत बातों का आनंद लेने हेतु कैम्पिंग करती थी l किन्तु पतले तम्बू में सोना मुझे नहीं पसंद है-जब रात्रि वर्षा और टपक्नेवाले तम्बू से स्लीपिंग बैग गीला हो जाए l
मैं सोचकर ताज्जुब करती हूँ कि हमारे विश्वास का एक शूरवीर तम्बूओं में सौ वर्ष बिताया l पचहत्तर वर्ष की उम्र में, परमेश्वर ने अब्राहम के द्वारा एक नए राष्ट्र का निर्माण करने के लिए उसे अपना देश छोड़ने को कहा (उत्पत्ति 12:1-2) l उसने प्रतिज्ञा पूरी करनेवाले परमेश्वर पर भरोसा करके उसकी आज्ञा मान ली l और अपने बाकी जीवन में, 175 वर्षों तक अर्थात् अपनी मृत्यु तक (25:7), अपने देश से दूर तम्बुओं में निवास किया l
हम अब्राहम की तरह शायद खानाबदोश का जीवन जीने के लिए नहीं बुलाये गए हों, किन्तु जब हम इस संसार से और उसमें के लोगों से प्रेम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, हमें घर की गहरी चाहत अर्थात् संसार में रहने की चाहत हो सकती है l अब्राहम की तरह, जब आंधी हमारे अस्थायी घर को हानि पहुंचाए, अथवा बारिश का पानी टपके, हम विश्वास से भावी नगर की आशा कर सकते हैं जिसका “बनानेवाला परमेश्वर है” (इब्रा. 11:10) l और अब्राहम की तरह, हम आशा कर सकते हैं कि परमेश्वर अपनी सृष्टि को नया कर रहा है, “एक उत्तम अर्थात [भावी]स्वर्गीय देश” तैयार कर रहा है (पद.16) l
जो शमौन ने कहा
रिफ्यूज रबिन्द्रनाथ नाम का एक व्यक्ति श्रीलंका में 10 वर्षों से अधिक से युवा कार्यकर्त्ता रहा है l वह अक्सर युवाओं के साथ देर रात को बातचीत करता है-खेलता है, उनकी सुनता है, सलाह देता है और सिखाता है, जो उसे पसंद है, किन्तु भरोसेमंद विद्यार्थीयों के कभी-कभी विश्वास से फिर जाने से निराशा मिलती है l वह कभी-कभी लूका 5 में शमौन पतरस की तरह कुछ-कुछ अनुभव करता है l
शमौन पूरी रात मेहनत करके भी मछली नहीं पकड़ा (पद.5) l वह हताश और थका हुआ था l किन्तु यीशु के कहने पर कि, “गहरे में ले चल, और ... अपने जाल डालो” (पद.4), शमौन का उत्तर था, “तौभी तेरे कहने से जाल डालूँगा” (पद.5) l
शमौन का आज्ञा मानना अद्भुत था l अनुभवी मछुआरे के रूप में, वह जानता था कि सूर्य निकलने के बाद मछलियाँ गहरे में चली जाती हैं, और उनके जाल गहराई में नहीं जा सकते थे l
यीशु पर भरोसा करने की उसकी इच्छा रंग लायी l शमौन को ढेर सारी मछलियाँ मिलीं और उसने जाना कि यीशु कौन है l वह यीशु को “स्वामी” (पद.5) से “प्रभु” कह पाया (पद.8) l वास्तव में, “सुनना” अक्सर हमें प्रगट रूप से परमेश्वर के कार्य देखने देता है और उसके निकट लाता है l
शायद परमेश्वर आपसे पुनः “अपने जाल डालने को कह रहा है l” हम शमौन की तरह प्रभु को उत्तर दें : “तौभी तेरे कहने से जाल डालूँगा l”
मीठा और खट्टा
हमारा छोटा बेटा नीबू को दांतों से काटकर, नाक सिकोड़कर, जीभ निकलकर, और आँखें मींचकर बोला, “खट्टा” l
मैंने हँसकर, उससे नीबू छीनकर कूड़े में फेंकना चाही l
“नहीं!” ज़ेवियर रसोई से दौड़कर मुझसे नीबू लेने आया l “और चाहिए!” उसने हर बार उस रसीले फल को काटते हुए अपने होंठ सिकोड़े l मैं चौंक गयी जब अंत में वह मुझे चिल्का देकर चला गया l
मेरी स्वाद-कोशिकाएं वास्तविक रूप से जीवन के मधुर क्षण के प्रति मेरा भेदभाव दर्शाती हैं l सभी कड़वी वस्तुओं को दूर रखने की मेरी पसंद अय्यूब की पत्नी की याद दिलाती है, जो दुःख के रूखेपन के प्रति मेरे विरोध के साथ है l
अय्यूब भी कठिनाई या परेशानी में आनंदित नहीं था, फिर भी हृदय की अत्यंत कष्ट पूर्ण स्थितियों द्वारा परमेश्वर का आदर किया (अय्यूब 1:1-22) l अय्यूब ने दुखदाई घावों का दुःख सहा(2:7-8) l उसकी पत्नी ने उससे परमेश्वर की निंदा करने को कहा (पद.9), किन्तु उसने कष्ट और पीड़ा में भी प्रभु पर भरोसा प्रगट किया (पद.10) l
जीवन की कड़वाहट से दूरी स्वाभाविक है l दुःख में परमेश्वर का विरोध करने की परीक्षा आ सकती है l किन्तु हमें भरोसा, निर्भरता, समर्पण सिखाने हेतु दुःख का उपयोग करते समय वह धीरज रखने में भी सहायता करता है l और अय्यूब की तरह, ज़रूरी नहीं कि हम दुःख के पीछे छिपी मिठास अर्थात् विश्वास की दृढ़ता प्राप्त करने के लिए उसका आनंद लें l