अपनी भांजी को उस शाम अलविदा कहते हुए मुझे बहुत दुःख हुआ जब वह मेसाच्युसेट्स में बोस्टन विश्वविद्यालय के स्नातक स्कूल में जा रही थी l यद्यपि पूर्वस्नातक होकर वह चार वर्ष तक दूर थी, वह राज्य के बाहर नहीं गयी थी l हम वाहन से ढाई घंटे की यात्रा करके आसानी से उससे मुलाकात कर लेते थे l अब वह 800 मील दूर जानेवाली थी l बात करने के लिए लगातार मिलना कठिन था l मुझे उसके देखभाल हेतु परमेश्वर पर भरोसा करना था l

इफिसुस के प्राचीनों को अलविदा कहते समय पौलुस ने भी ऐसा ही महसूस किया l चर्च स्थापना और उनको तीन वर्षों तक सिखाने के बाद, पौलुस ने उन प्राचीनों से उसके निकट परिवार की तरह रहने को कहा l अब यरूशलेम पहुंचने पर, उनसे उसकी मुलाकात होनेवाली नहीं थी l  

किन्तु पौलुस ने इफिसियों को सलाह दिया l यद्यपि अब पौलुस उनका शिक्षक नहीं होगा, वे खुद को त्यागा हुआ न समझें l परमेश्वर निरंतर उनको कलीसिया की अगुवाई में अपने “अनुग्रह के वचन” द्वारा सिखाता रहेगा (प्रेरितों 20:32) l पौलुस के विपरीत, परमेश्वर हमेशा उनके साथ रहेगा l

बच्चों को घोंसले से बाहर करना हो या दूर जानेवाले परिवार के सदस्य और मित्रगण-विदाई बहुत कठिन हो सकती है l वे हमारे प्रभाव से दूर अपने नए जीवन में जाते हैं l हम भरोसा करें कि वे परमेश्वर के हाथों में हैं l वह उनके जीवन को निरंतर बनाएगा और हमसे भी अधिक उनकी वास्तविक ज़रूरतें पूरी करेगा l