अनेक सुन्दर झीलों के लिए प्रसिद्ध, मिनेसोटा में जहां मेरा पालन पोषण हुआ, मैं परमेश्वर की रचना की अद्भुत बातों का आनंद लेने हेतु कैम्पिंग करती थी l किन्तु पतले तम्बू में सोना मुझे नहीं पसंद है-जब रात्रि वर्षा और टपक्नेवाले तम्बू से स्लीपिंग बैग गीला हो जाए l

मैं सोचकर ताज्जुब करती हूँ कि हमारे विश्वास का एक शूरवीर तम्बूओं में सौ  वर्ष बिताया l पचहत्तर वर्ष की उम्र में, परमेश्वर ने अब्राहम के द्वारा एक नए राष्ट्र का निर्माण करने के लिए उसे अपना देश छोड़ने को कहा (उत्पत्ति 12:1-2) l उसने प्रतिज्ञा पूरी करनेवाले परमेश्वर पर भरोसा करके उसकी आज्ञा मान ली l और अपने बाकी जीवन में, 175 वर्षों तक अर्थात् अपनी मृत्यु तक (25:7), अपने देश से दूर तम्बुओं में निवास किया l

हम अब्राहम की तरह शायद खानाबदोश का जीवन जीने के लिए नहीं बुलाये गए हों, किन्तु जब हम इस संसार से और उसमें के लोगों से प्रेम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, हमें घर की गहरी चाहत अर्थात् संसार में रहने की चाहत हो सकती है l अब्राहम की तरह, जब आंधी हमारे अस्थायी घर को हानि पहुंचाए, अथवा बारिश का पानी टपके, हम विश्वास से भावी नगर की आशा कर सकते हैं जिसका “बनानेवाला परमेश्वर है” (इब्रा. 11:10) l और अब्राहम की तरह, हम आशा कर सकते हैं कि परमेश्वर अपनी सृष्टि को नया कर रहा है, “एक उत्तम अर्थात [भावी]स्वर्गीय देश” तैयार कर रहा है (पद.16) l