मेरी एक सहेली अपने लाचार सास की देखभाल करते समय, उससे पूछी कि उसकी सबसे बड़ी इच्छा क्या है l उसकी सास बोली, “मेरे पैर धो दो l” मेरी सहेली ने स्वीकारा कि  इस काम से वह बहुत घृणा करती थी! उनका मुझे यह काम बताने पर मैं नाराज़ होकर परमेश्वर से बोली कि मेरी भावनाएं उनसे छिपा दें l

किन्तु एक दिन अचानक उसका कुड़कुड़ानेवाला आचरण बदल गया l जैसे ही उसने चिलमची, और तौलिया लेकर अपनी सास के पाँव धोने के लिए झुकी, उसने कहा, “मैंने ऊपर देखा, और एक क्षण मैंने महसूस किया कि मैं स्वयं यीशु के पाँव धो रही हूँ l वह यीशु के वेश में थी!” उसके बाद, उसने अपनी सास के पाँव धोने में सम्मान अनुभव किया l

इस दिल को छूनेवाली घटना के विषय सुनकर, मैंने अंत समय के विषय यीशु की कहानी के विषय विचार की जो उसने जैतून के पहाड़ के ढलान पर बतायी थी l राजा यह कहकर अपने राज्य में अपने पुत्र और पुत्रियों का स्वागत करता है, कि जब उन्होंने बीमारों से मुलाकात की और भूखों को भोजन खिलाया, “तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्ती 25:40) l हम भी यीशु ही की सेवा करते हैं जब हम बंदियों से बंदीगृह में मुलाकात करते हैं और ज़रुरतमंदों को वस्त्र पहनाते हैं l

आज, आप भी मेरी सहेली के साथ कहेंगे, जो किसी भी नए व्यक्ति से मिलकर विचार करती है, “क्या आप भेष बदले हुए यीशु तो नहीं?”