यूरोप की यात्रा में लैंडस्केप को रंग-बिरंगा बनाने वाले ग्रैंड कैथेड्रल्स का दौरा करने का अपना आनंद है। ये गगनचुम्बी भव्य इमारतें अद्भुत रूप से सुन्दर हैं। इन भवनों की वास्तुकला और यहाँ प्रयुक्त प्रतीकात्मकता विस्मय और वैभव का मंत्रमुग्ध करने वाला अनुभव देती हैं।
परमेश्वर की महिमा और उनके महानतम वैभव को प्रदर्शन करने वाले इन भवनों को देखकर, मैं सोचने लगा कि परमेश्वर की भव्यता का अनुभव हम अपने मन और मस्तिष्क में किस प्रकार पुनः संभव बना सकते हैं जिससे उनकी महानता हमें स्मरण रहे। हमें मानव निर्मित भव्य इमारतों से बड़कर उस महान रचना पर विचार करना चाहिए जिसे परमेश्वर ने रचा है। तारों से टिमटिमाती रात परमेश्वर के सामर्थ को दिखाती है, जिन्होंने अपने शब्द से सृष्टि की रचना की। किसी नवजात शिशु को बाँहों में उठाकर जीवन के चमत्कार के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करें। अलास्का के बर्फ़ीले पहाड़ों या विशालकाय अटलांटिक महासागर को देखें जो लाखों प्राणियों से भरे हैं जिनकी रचना परमेश्वर ने की है और ईकोसिस्टम चलाने वाली शक्ति की कल्पना करें।
ऊँची इमारतों से आकाश की ऊंचाईयां छूना गलत नहीं है, परन्तु हमारी सच्ची प्रशंसा परमेश्वर के लिए होनी चाहिए, जैसे लिखा है, “हे यहोवा! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्थ्य और वैभव, तेरे ही हैं।” (1 इतिहास 29:11)
केवल परमेश्वर ही हमारी प्रशंसा के योगय हैं।