खोया था पर मिल गया
एक रिश्तेदार के साथ खरीदारी करते हुए मेरी सास गुम हो गई, तो मेरी पत्नी और मैं अत्यधिक चिंतित थे। उन्हें भूलने और भ्रम की बीमारी थी, पता नहीं ऐसी अवस्था में वह क्या करेंगी। हमने उन्हें खोजना शुरू कर दिया, और परमेश्वर को यह कहते हुए पुकारा," कृपया उन्हें ढूंढिए"।
कुछ घंटे बाद वह मीलों दूर सड़क पर वह मिल गईं। उन्हें खोजने में सक्षम बनाने में परमेश्वर ने हमें कैसे आशीष दे दीथी। महीनों बाद मसीह ने उन्हें आशीषित किया। अस्सी वर्ष की आयु में, उद्धार पाने के लिए मेरी सास ने यीशु मसीह को ग्रहण किया।
यीशु, मनुष्य की तुलना भेड़ों से करते हुए, कहते हैं: तुम में से कौन है जिस की सौ भेड़ें हों, और उन में से एक खो जाए...(लूका 15:4–6)।
चरवाहों ने अपनी भेड़ों को इसलिए गिना, ताकि हर एक का पता लगा सके। यीशु, जो स्वयं की तुलना उस चरवाहा के साथ करते हैं, हम सभी को मूल्यवान मानते हैं। हम अपने जीवन में भटक रहे हों, खोज कर रहे हों या अपने उद्देश्य के बारे में विचार कर रहे हों तो मसीह के पास जाने के लिए कभी देर नहीं होती। परमेश्वर की यही इच्छा है कि हम उनके प्रेम और आशीषों का अनुभव करें।
भय से छुटकारा
हमारे शरीर भय और डर की भावनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं। श्वास भरते समय दिल की धडकन तेज़ होना और पेट में मरोड़ पड़ना, ये सब हमारे चिंतित होने का संकेत देते हैं। हमारी शारीरिक प्रकृति हमें संकट को अनदेखा नहीं करने देती।
यीशु के पांच हजार से भी अधिक लोगों को खिलाने के बाद प्रभु ने उन्हें अपने आगे बैतसैदा भेज दिया था जिससे प्रार्थना करने के लिए उन्हें एकांत मिल सके। रात को चेले हवा के विरुद्ध नाव खेत रहे थे जब उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है और चिल्ला उठे...। (मरकुस 6:49–50)। परंतु यीशु ने कहा मत डरो और ढाढ़स बान्धो। जैसे ही यीशु नाव पर आए, हवा थम गई और नाव घाट पर लग गई। मेरा मानना है कि उनके डर की भावनाएं शांत हो गईं थी क्योंकि उन्होंने उनकी शांति को धारण कर लिया था।
चिंता के कारण जब हमें घुटन हो तो हम यीशु के सामर्थ में आश्वस्त हो सकते हैं। चाहे वे हमारी लहरों को शांत करें या उनका सामना करने का हमें सामर्थ दें, वे हमें शांति का ऐसा वरदान देंगे जो “समझ से परे है” (फिल्लिपियों 4: 7)। जैसे वे हमें भयमुक्त करते हैं हमारी आत्मा और शरीर विश्राम की स्थिति में वापस लौट सकते हैं।
निर्भय होकर देना
मेरा बेटा जेवियर छह साल का था, जब मेरी एक मित्र अपने शिशु के साथ हमारे यहाँ आई थी और जेवियर उसे कुछ खिलौने देना चाहता था। उसकी उदारता देखकर मैं खुश थी जब तक कि वह उसे एकदुर्लभ स्टफ़ टॉय ना देने लगा, मेरी मित्र ने विनम्रता से मना किया तो उसने कहा, "बाँटने के लिए मेरे डैडी मुझे बहुत खिलौने देते हैं।" उदारता से देने की बात उसने मुझ से सीखी थी, पर मैंने प्रायः अपनी वस्तुओं को परमेश्वर और अन्य लोगों से छिपा कर रखने की कोशिश की है। परन्तु मेरा स्वर्गीय पिता मुझे सब कुछ देता है इसे स्मरण करके बाँटना आसान हो जाता है।
इस्राएलियों को जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था उसका एक भाग लेवी याजकों को देने, और उन पर भरोसा करने का आदेश मिला था, जो दूसरों की आवश्यकतानुसार मदद करेंगे। जब लोगों ने मना किया, तो मलाकी नबी ने कहा कि वे परमेश्वर को लूट रहे थे (मलाकी 3:8–9)। यदि वे यह दिखाते हुए, कि उन्हें परमेश्वर के प्रबन्ध और सुरक्षा पर भरोसा है, स्वेच्छा से देंगे (10–11) तब सारी जातियां उन्हें परमेश्वर के धन्य लोग बुलाएंगी (12)।
स्वेच्छापूर्ण और निडर दान, हमारे प्यारे पिता की देखभाल में हमारे आत्मविश्वास को दिखाता है-जो एक महान दानी हैं।
हमारी सुदृढ़ नींव
हमारे शहर के लोग भूस्खलन आधीन क्षेत्रों में कई वर्षों से घरों का निर्माण करते और उन्हें खरीदते आए हैं। भूवैज्ञानिकों की 40 वर्षों की चेतावनी को और सुरक्षित गृह निर्माण के नियमों को या अस्पष्ट छोड़ दिया गया है या अनदेखा कर दिया गया है। कई घरों से दिखने वाले दृश्य तो शानदार हैं, परन्तु उनके नीचे की नींव किसी हादसे की राह देख रही है है।
प्राचीन इस्राएल में कई लोगों ने मूर्तियों से फिरने और सच्चे और जीवित परमेश्वर की , खोज करने की यहोवा की चेतावनियों की उपेक्षा की थी। अवज्ञा के कारण उन पर कष्ट आए तो भी प्रभु ने अपने लोगों से कहते रहे कि यदि वे उनकी ओर फिरें और उनका अनुसरण करेंगे तो क्षमा और आशा प्राप्त करेंगे।
यशायाह नबी ने कहा, [प्रभु] तेरे समय के लिए सुदृढ़ नींव होंगे...। यशाया 33:6
पुराने नियम के समान, परमेश्वर आज भी हमें ऐसी नींव चुनने का विकल्प देते है जिस पर हम जीवन का निर्माण करेंगे। या तो हम अपनी इच्छानुसार चल सकते हैं, या हम बाइबिल में और यीशु मसीह के व्यक्तित्व में प्रकट किए गए अनन्त सिद्धांतों को अपना सकते हैं। "मसीह, जो एक ठोस चट्टान है, पर मैं खड़ा होता हूँ - बाकि सारी जमीन घंसती हुई रेत है" (एडवर्ड मोट)
सही जगह में फलना
"एक जंगली पौधा वहां बढ़ता है जहां आप नहीं चाहते," । लोग पौधे तो नहीं है-हमारे अपने मनोभाव और प्रभु से मिली स्वेच्छा होती है। कभी-कभी हम वहां फलवंत होना चाहते हैं जहां परमेश्वर की इच्छा नहीं होती है।
राजा शाऊल का पुत्र, योद्धा राजकुमार योनातन, राजा बनने की आशा कर सकता था। परंतु उसने परमेश्वर की आशीषों को दाऊद पर देखा और शाऊल की ईर्ष्या और अभिमान को समझ लिया (1 शमूएल 18:12–15)। सिंहासन का लोभ करने की बजाए वह दाऊद का मित्र बना और उनके जीवन को भी बचाया। (19:1–6; 20:1–4)
कुछ लोग कहेंगे कि योनातन ने बहुत कुछ खोया। परंतु हम कैसे याद किए जाना चाहेंगे? शाउल के समान जो अपने राज्य से चिपका रहा और अंत में उसे गवा बैठा? या योनातन के समान जिन्होंने ऐसे व्यक्ति के जीवन को बचाया जो यीशु के सम्मानित पूर्वज बनेंगे?
हमारी अपनी योजना से परमेश्वर की योजना उत्तम होती है। हम उसके विरुद्ध लड़ सकते हैं और ऐसे पौधे के समान बन सकते हैं जो एक गलत जगह पर फल और फूल रहा है, या हम उनके निर्देशों का पालन करके उनके बगीचे में बलवंत और उपयोगी और फल लाने वाले पौधे बन सकते हैं। ऐसा करने का विकल्प वह हमारे हाथ में छोड़ देते हैं।
न्याय से अधिक दया
झगड़ा करके एक मेरे बच्चे शिकायत करने मेरे पास आए, मैंने दोनों का पक्ष बारी बारी से सुना। क्योंकि दोष दोनों का था, तो चर्चा के बाद मैंने दोनों ही से पूछा, कि उनके अनुसार दूसरे के लिए उचित, न्यायसंगत दंड क्या होना चाहिए। उनका सुझाव दूसरे को कठोर दंड देने का था। पर बजाय इसके जब उनको मैंने वही दण्ड दिया, जो उन्होंने अपने भाई के लिए चुना था तो वे आश्चर्यचकित थे। वही दंड जो उन्हें दूसरे के लिए उचित लग रहा था, जब उन पर आया तो उन्हें "अनुचित" लगने लगा।
बच्चों ने जिस "दया रहित निर्णय" को चुना था उसके विरुद्ध परमेश्वर हमें सावधान करते हैं (याकूब 2:13)। याकूब कहते हैं, कि परमेश्वर की इच्छा है कि धनवान या स्वयं के लिए भी पक्षपात न दिखाकर हम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखें (8)। दूसरों का स्वार्थ अनुसार उपयोग करने या जो हमें लाभ न दें उनकी उपेक्षा करने के बजाय, याकूब हमें उनके समान व्यवहार करने का निर्देश देते हैं जो जानते हैं कि हमें कितना दिया और माफ किया गया है-और दूसरों पर भी वही दया दिखाएं।
परमेश्वर ने हमें उदारता से दया प्रदान की है। अपने व्यवहार में, हम उस दया को याद रखें जो और दूसरों पर भी इसे दिखाएं।
सीट बेल्ट पहन लो!
"हम एक हलचल वाले वायुमंडल में प्रवेश कर रहे हैं। कृपया अपनी सीट पर तुरंत लौटें और अपनी सीट बेल्ट को तुरंत और सुरक्षित रूप से पहन लें।" जब आवश्यक हो तो फ्लाइट अटेंडेंट ऐसी चेतावनी देते हैं क्योंकि तूफानी वायुमंडल में, बिना सीट बेल्ट लगाए यात्रियों की घायल होने के सम्भावना होती हैं। अपनी सीट पर बेल्ट लगाकर बैठने पर, वे सुरक्षित रूप से हलचल वाले क्षेत्र के बाहर निकल सकते हैं।
हमारे मार्ग में आने वाली गडबडियों के बारे में आमतौर पर जीवन हमें चेतावनी नहीं देता। परन्तु हमारे प्यारे पिता हमारे संघर्षों को जानते हैं और उनकी परवाह करते हैं, और वह हमें अपनी चिंताओं, दर्द और भय को उनके पास लाने के लिए आमंत्रित करते हैं। बाइबिल बताती है कि “हमारा महायाजक, हमारी निर्बलताओं को जानता है...” (इब्रानियों 4:15–16)।
अशांत ऋतु में प्रार्थना में हमारे पिता के पास जाना सबसे उत्तम बात है। “आवश्यकता के समय अनुग्रह पाएं”-वाक्यांश का अर्थ है कि उनकी उपस्थिति में हम संकट में शांति की सुरक्षा की “बेल्ट” लगा सकते हैं, क्योंकि हम अपनी चिंताओं को उनके पास ले जाते हैं जो उन चिंताओं से बड़े हैं! जब जीवन बोझिल लगने लगे, तो हम प्रार्थना कर सकते हैं। अशांत वातावरण से गुज़रने में वे हमारी मदद कर सकते हैं।
मकड़ियों के विषय में और परमेश्वर की उपस्थिति
मकड़ियां। कोई बच्चा उन्हें पसंद नहीं करता। अपने कमरे में तो नहीं...वो भी सोते समय। मेरी बेटी ने अपने बिस्तर के पास एक को देख लिया। “डैडी! मकड़ी!” वह चिल्लाई। कोशिश करने पर भी मैं उसे नहीं ढूँढ पाया। "वह तुम्हें कुछ नहीं करेगा," मैंने कहा पर वह नहीं मानी। यह कहने के बाद ही वह बिस्तर में घुसी कि मैं उसके सिरहाने चौकसी करूंगा।
मैंने उसका हाथ पकड़कर कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूं, मैं ठीक यहीं हूं। पर क्या तुम जानती हो परमेश्वर तुम्हें डैडी मम्मी से भी अधिक प्यार करते हैं। वह बहुत निकट हैं। जब तुम्हें डर लगे तुम उनसे प्रार्थना कर सकती हो। इस बात से उसे सांतवना मिली और नींद उसकी आँखों में भर गई।
बाइबिल बताती है कि परमेश्वर हमारे निकट हैं (भजन 145:18; रोमियो 8:38–39; याकूब 4:7–8), पर कभी-कभी हम विश्वास नहीं करते। शायद इसलिए पौलुस ने इफिसुस के विश्वासियों के लिए प्रार्थना की कि उन्हें सत्य समझने का सामर्थ और बल मिले (इफिसियों 3:16)। वह जानते थे कि भयभीत होने पर हम परमेश्वर की निकटता की भावना को खो सकते हैं। जैसे मैंने अपनी बेटी का हाथ थामा हुआ था, ठीक वैसे ही हमारे प्रेमी स्वर्गीय पिता भी हमारे उतने ही निकट होते हैं जितनी कोई प्रार्थना होती है।
महान चिकित्सक
जब डा. ऋषि मनचंदा रोगियों से पूछते हैं, कि "आप कहाँ रहते हैं?" तो वे उनके पत्ते से अधिक जानना चाहते हैं। उन्होंने एक पैटर्न देखा है। उनके पास आने वाले रोगी अक्सर पर्यावरण तनाव से प्रभावित क्षेत्रों से आते हैं। मोल्ड, कीट, और विषैले तत्व उन्हें बीमार बना रहे हैं। डॉ मनचंदा उनके एक अधिवक्ता बन गए हैं, जिसे अपस्ट्रीम डॉक्टर्स कहते हैं ऐसे कार्यकर्त्ता, जो तत्काल चिकित्सा प्रदान करते हुए, बेहतर स्वास्थ्य के स्रोत तक पहुंचने के लिए रोगियों और समुदायों के साथ काम कर रहे हैं।
यीशु ने रोगियों को चंगाई देने के साथ, (मत्ती 4:23–24), उनकी दृष्टि को शारीरिक और भौतिक देखभाल की आवश्यकता से परे उठाया। पर्वत पर उपदेश में उन्होंने चिकित्सा चमत्कार से अधिक प्रदान किया। सात बार यीशु ने मन और हृदय के दृष्टिकोण का वर्णन किया जो सुखद कल्याण भावना लाता है। दो बार उन्हें धन्य बुलाया जो कठोर सताव का अनुभव करते हैं और अपनी आशा और विश्राम यीशु में पाते हैं (10–12)।
मैं सोचता हूँ कि शारीरिक और भौतिक आवश्यकता से परे सुखद कल्याण की अपनी आवश्यकता के बारे में मुझे कितना ज्ञान है? क्या मैं चमत्कार के साथ दीन, टूटे, भूखे, दयावन्त, मेल करवाने वाले ह्रदय पाने की कामना भी करता हूँ जिसे यीशु धन्य बुलाते हैं?