“एक जंगली पौधा वहां बढ़ता है जहां आप नहीं चाहते,” । लोग पौधे तो नहीं है-हमारे अपने मनोभाव और प्रभु से मिली स्वेच्छा होती है। कभी-कभी हम वहां फलवंत होना चाहते हैं जहां परमेश्वर की इच्छा नहीं होती है।

राजा शाऊल का पुत्र, योद्धा राजकुमार योनातन, राजा बनने की आशा कर सकता था। परंतु उसने परमेश्वर की आशीषों को दाऊद पर देखा और शाऊल की ईर्ष्या और अभिमान को समझ लिया (1 शमूएल 18:12–15)। सिंहासन का लोभ करने की बजाए वह दाऊद का मित्र बना और उनके जीवन को भी बचाया। (19:1–6; 20:1–4)

कुछ लोग कहेंगे कि योनातन ने बहुत कुछ खोया। परंतु हम कैसे याद किए जाना चाहेंगे? शाउल के समान जो अपने राज्य से चिपका रहा और अंत में उसे गवा बैठा? या योनातन के समान जिन्होंने ऐसे व्यक्ति के जीवन को बचाया जो यीशु के सम्मानित पूर्वज बनेंगे?

हमारी अपनी योजना से परमेश्वर की योजना उत्तम होती है। हम उसके विरुद्ध लड़ सकते हैं और ऐसे पौधे के समान बन सकते हैं जो एक गलत जगह पर फल और फूल रहा है, या हम उनके निर्देशों का पालन करके उनके बगीचे में बलवंत और उपयोगी और फल लाने वाले पौधे बन सकते हैं। ऐसा करने का विकल्प वह हमारे हाथ में छोड़ देते हैं।