राजा का ताज
मेज पर रखी फ़ोम डिस्क में हम सब ने टूथपिक्स डाले दिए। इस प्रकार ईस्टर के प्रथम सप्ताह में हमने कांटो का ताज बनाया। हर टूथपिक किसी ऐसी बात का प्रतीक था जो हमने की थी और जिसके लिए हम शर्मिंदा थे। जिसके लिए यीशु ने दाम चुकाया है। हर रात यह अभ्यास हमें याद दिलाता था कि हम अपराधी हैं और हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है जिसने क्रूस पर अपनी मृत्यु के माध्यम से हमें मुक्त कर दिया है।
कांटों का ताज जिसे यीशु को पहनाया गया था, वह उन्हें क्रूसित करने से पहले रोमी सैनिकों के क्रूर खेल का एक हिस्सा था। उन्हें शाही पौशाक पहनाकर राजदण्ड के रूप में सरकण्डा दिया गया जिससे वे उसे मारने के लगे। उसे “यहूदियों के राजा” कहकर ठट्ठा उड़ाया (मत्ती 27:29)। इस बात से अनभिज्ञ कि इसे हजारों वर्ष बाद भी याद किया जाएगा। वह कोई साधारण राजा नहीं परन्तु राजाओं के राजा थे जिनकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने हमें अनंत जीवन दिया है।
ईस्टर की सुबह, हमने टूथपिक्स को फूलों से’ बदलकर क्षमा और नए जीवन के उपहार का पर्व मनाया। इस विश्वास से हमने अद्भुत आनन्द का अनुभव किया `कि परमेश्वर ने हमारे पापों को मिटा दिया है और हमें मुक्ति तथा उनमें अनन्त जीवन दे दिया है!
वाया डोलोरोसा
पवित्र सप्ताह के दौरान, हम यीशु के क्रूसित होने से पहले के दिनों को याद करते हैं। यरूशलेम के जिस रास्ते से होकर यीशु ने क्रूस तक की यात्रा की थी, उसे आज ‘वाया डोलोरोसा’ के रूप में जाना जाता है-दुःख का रास्ता।
परन्तु इब्रानियों के लेखक ने यीशु के जिस मार्ग का अनुभव किया था, वह मात्र दुःख का एक रास्ता नहीं था। स्वेच्छा से गुलगुता जाने के लिए यीशु जिस दुःख के रास्ते पर चले वहां से उन्होंने हमारे लिए परमेश्वर की उपस्थिति में आने का "नया और जीवित मार्ग" बनाया (इब्रानियों 10:20)।
सदियों से यहूदियों ने जानवरों के बलिदान द्वारा और व्यवस्था का पालन करने द्वारा परमेश्वर की उपस्थिति में आने की कोशिश की है। परन्तु व्यवस्था आने वाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब थी, क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे। (पद 1,4)।
वाया डोलोरोसा पर यीशु की यात्रा उन्हें उनकी मृत्यु और फिर पुनरुत्थान की ओर ले गई। उनके बलिदान से, जब हम अपने पापों की क्षमा के लिए उन पर भरोसा करते हैं तो हम पवित्र बन सकते हैं। हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साथ...(पद 10, 22)। मसीह के दुःख के रास्ते ने हमारे लिए परमेश्वर के पास आने का एक नया और जीवित मार्ग खोला है।
प्रेम का बरतन
वर्षों पहले फिजिक्स के एक शिक्षक ने हमसे बिना मुड़े कक्षा की पीछे दीवार का रंग बताने को कहा? कोई बता नहीं पाया, क्योंकि किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया था। कभी-कभी हम “बातों” को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि हम हर बात याद नहीं रख सकते। और कई बार हम उस चीज़ को नहीं देख पाते जो वहां सदा से थी।
यीशु का उनके चेलों के पैर धोने का वृतांत मैंने कई बार पढ़ा है। जिसमें हमारा उद्धारकर्ता और राजा अपने चेलों के पैर धोने के लिए झुकता है। उन दिनों इस काम को इतना तुच्छ समझा जाता था कि दासों से भी यह काम नहीं लिया जाता था। हाल ही में यह वृतांत एक बार फिर पढ़ने पर मैंने उस पर गौर किया जिसपर आज तक मेरा ध्यान नहीं गया था कि यीशु ने, जो मनुष्य और परमेश्वर दोनों थे, यहूदा के पैर धोए। यह जानते हुए कि वह उन्हें धोखा देगा। जैसा हम यूहन्ना 13:11 में देखते हैं। तो भी यीशु ने स्वयं को विनम्र किया और यहूदा के पैर धोए।
पानी के बर्तन से प्रेम छलका-जिसे उन्होंने उन्हें धोखा देने वाले से भी बाँटा। हमें भी उस विनम्रता का वरदान मिले ताकि यीशु के प्रेम को हम अपने मित्रों और किसी शत्रु से भी बाँट सकें।
देखो और मौन रहो
"लुक ऐट हिम (उनकी ओर देखो)" गीत में, मैक्सिकन संगीतकार रूबेन सैटेलो ने क्रूस पे यीशु का वर्णन किया है। वह कहते हैं, यीशु को देखो और मौन रहो, क्योंकि क्रूस पे दिखाए यीशु के प्रेम के सामने वास्तव में कहने को कुछ नहीं है। सुसमाचार में वर्णित इस दृश्य की कल्पना हम विश्वास के द्वारा कर सकते हैं, क्रूस, लहू, कीलों, और पीड़ा की।
यीशु के अंतिम समय में “भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई..."(लूका 23:48-49)। तब सब मौन थे, केवल एक सूबेदार बोला, "निश्चय यह मनुष्य धर्मी था। "(पद 47)।
उस महान प्रेम पर गीत और कविताएं लिखी गई हैं। वर्षों पूर्व, तबाही के बाद यरूशलेम की पीड़ा के बारे में यिर्मयाह ने लिखा था "क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं?" (विलापगीत 1:12)। उन्हें लगा कि यरूशलेम की तुलना में कोई दुःख बड़ा नहीं था। यद्यपि, क्या यीशु की पीड़ा जैसी कोई पीड़ा हो सकती है?
हम सभी क्रूस के मार्ग से गुजर रहे हैं। क्या हम उनके प्रेम को देखेंगे? इस ईस्टर पर जब परमेश्वर के प्रति हमारे आभार को व्यक्त करने के लिए शब्द और गीत कम पड़ जाएँ हम कुछ समय लेकर यीशु की मृत्यु पर मनन करें और अपने मौन हृदय में उनपर अपनी गहरी भक्ति अर्पित करें।
बढ़ाने वाले की महिमा
एक दिन मैंने अपने आँगन में नरगिस के फूलों को खिले देखा। मैंने न तो इन्हें बोया था, न ही खाद या पानी डाला था। मैं समझ नहीं पाया कि यह फूल क्यों और कैसे खिले।
बीज बोने के दृष्टांत में यीशु ने आध्यात्मिक परिपक्वता के रहस्य को चित्रित किया है। उन्होंने परमेश्वर के साम्राज्य की तुलना बीज बोने वाले किसान से की है (मरकुस 4:26)। यीशु ने कहा, अंकुर आप फूटता है, चाहे किसान सोए या जागे या इस बढ़ने की प्रक्रिया को समझे या नहीं। भूमि के मालिक को फसल का लाभ मिला (पद 27-29)। भले ही उस का बढ़ना इस बात पर निर्भर नहीं था कि उसे मिट्टी के नीचे हो रही गतिविधि की कितनी समझ थी। नरगिस के फूलों के समान बीजों का बढ़ना परमेश्वर के समय और सामर्थ के कारण हुआ।
चाहे वह हमारे व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास की या फिर यीशु के आने तक कलीसिया की बढ़ोतरी की परमेश्वर की योजना की बात हो, परमेश्वर के रहस्यमई तरीके हमारी अपनी क्षमताओं या उनके कामों की समझ पर निर्भर नहीं हैं। तोभी, परमेश्वर उन्हें जानने, उनकी सेवा करने और बढ़ाने वाले की स्तुति और अपनी आध्यात्मिक परिपक्वता के फल का लाभ उठाने के लिए हमें आमंत्रित करते हैं जिसे वे हममें और हमारे द्वारा विकसित करते हैं।
जीवित रहने का मुद्दा
वित्तीय सलाह पर अधिकांश पुस्तकों में मैंने एक रोचक विचारधारा देखी है, कि आज खर्चे कम करो कल करोड़पति बनो। एक पुस्तक का भिन्न दृष्टिकोण था, समृद्ध जीवन जीना हो तो सादगी से जिओ। यदि आनन्द अनुभव करने के लिए आपको अधिक फैंसी सामान चाहिए, तो “आप जीने के मुख्य मुद्दे से चूक गए हैं”।
इस व्यावहारिक ज्ञान से यीशु की प्रतिक्रिया याद आती है जब किसी ने उनसे उसके भाई से सम्पति बाँटने को कहा। “जीवन सम्पति की बहुतायत से नहीं होता” कहते हुए यीशु ने “हर प्रकार के लोभ” से बचने की चेतावनी दी (लूका 12:14-15)। उन्होंने बताया कि सुखी जीवन के लालच में एक धनवान ने फ़सल भंडार में रखने की योजना बनाई-पहली सदी की रिटायरमेंट प्लानिंग-जिसका कटु परिणाम हुआ। सम्पति ने उसे सुख न दिया क्योंकि उसी रात उसकी मृत्यु हो गई (पद 16-20 )।
यीशु के शब्द हमें अपनी मंशा जाँचने की प्रेरणा देते है। हमारा हृदय परमेश्वर के राज्य की खोज में-उन्हें जानने में और दूसरों की सेवा करने में लगना चाहिए न कि भविष्य सुरक्षित करने में (पद 29-31)। जब हम यीशु के लिए जिएँ और उनका सन्देश निसंकोच दूसरों से बांटें, तो हम उनके साथ सुखी जीवन जी सकते हैं अभी -ऐसे राज्य में जो हमारे जीवन को अर्थ देता है (पद 32-36)।
यह कौन है?
कल्पना करें कि आप धूल सने मार्ग पर दर्शकों के साथ खड़े हैं। पीछे खड़ी एक महिला अपने पैर उच्चकर देखने की कोशिश कर रही है कि कौन आ रहा है। दूर गधे पर बैठा एक व्यक्ति आ रहा है। उसके निकट आने पर लोग अपने वस्त्र सड़क पर डालने लग जाते हैं। अचानक, किसी टहनी के चटकने की आवाज आती है। कोई खजूर की शाखाएं काट रहा है और लोग उन्हें गधे के सामने डाल रहे हैं।
क्रूसित होने से पूर्व जब यीशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया तो उनके अनुयायियों ने उत्साहपूर्वक उन्हें सम्मानित किया।“सारी मण्डली उन सब सामर्थ...”। (लूका 19:37)। यीशु के भक्त कह रहे थे, "धन्य है वह राजा..."(पद 38)। उनके उत्साह ने लोगों को प्रभावित किया। सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, यह कौन है? (मत्ती 21:10)।
आज भी, लोग यीशु के बारे में उत्सुक हैं। हालांकि हम शाखाओं से उनके मार्ग को प्रशस्त या प्रशंसा में चिल्लाकर स्तुति नहीं कर सकते, फिर भी हम उन्हें आदर दे सकते हैं। हम उनके सामर्थ के कार्यों की बातें, जरूरतमंद लोगों की सहायता, धैर्य से अपमान को सहन, और गहराई से दूसरों को प्रेम कर सकते हैं। हमें उन दर्शकों को बताने के लिए तैयार रहना चाहिए जो पूछते हैं, "यीशु कौन है?"
प्रदर्शिन का सामर्थ
घर की चीजों को ठीक करने की कोशिश में अक्सर मुझे वो चीजें ठीक कराने के पैसे खर्च करने पड़ते हैं जिन्हें पहली चीज़ को ठीक करने के प्रयास में मैं बिगड़ देता हूँ। हाल ही मैंने अपने घरेलू उपकरण को एक YouTube वीडियो देखकर सफलतापूर्वक ठीक किया जिसमें किसी ने एक-एक करके उसे ठीक करने का तरीका बताया है।
अपने युवा अनुयायी तीमुथियुस के लिए पौलुस एक अच्छा उदाहरण थे जो उनके साथ यात्रा करता और उसके कार्यों को देखता था। रोम की जेल से पौलुस ने उसे लिखा, “पर तू ने उपदेश, चाल-चलन...” (2 तीमुथियुस 3:10-11) इसके अतिरिक्त उन्होंने तीमुथियुस से कहा, “पर तू इन बातों पर जो तूने सीखीं हैं...”(पद 14-15)।
पौलुस का जीवन प्रदर्शित करता है कि हमें अपने जीवन का निर्माण परमेश्वर के वचन पर करने की आवश्यकता है। उसने तीमुथियुस को याद दिलाया कि बाइबिल सामर्थी तथा परमेश्वर का दिया स्रोत है जिसे हमें उन्हें सिखाने और प्रदर्शित करने की आवश्यकता है जो मसीह के पीछे चलाना चाहते हैं। जहाँ हम उन लोगों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद देते हैं जिन्होंने विश्वास में बढ़ने में हमारी मदद की है, हमारे सामने भी चुनौती है कि जिस सत्य को हम दूसरों को सिखाते हैं, उसे हम स्वयं भी जिएँ। यही प्रदर्शन का सामर्थ है।
एक दोहरा वादा
वर्षों कैंसर का सामना करते-करते, रूत को खाने-पीने यहां तक ठीक से निगलने में कठिनाई है। वह अपनी अधिकांश शारीरिक शक्ति खो चुकी है, और कई सर्जरी और उपचारों ने उसे जो वह थी उसकी परछाई बना दिया है। तोभी रूत परमेश्वर की प्रशंसा करने में सक्षम है; उसकी आस्था मजबूत और आनन्द संक्रामक है। वह प्रतिदिन परमेश्वर पर निर्भर करती है, और आशा करती है कि वह ठीक हो जाएगी। वह चंगाई के लिए प्रार्थना और विश्वास करती है कि परमेश्वर उत्तर देंगे-आज नहीं तो कल। कितना अद्भुत विश्वास है!
रुत के विश्वास को यह बोध मजबूत बनाता है कि परमेश्वर न केवल समय पर अपने वायदों को पूरा करेंगे वरन जब तक यह हो न जाए वह उसकी रक्षा करेंगे। यही आशा परमेश्वर के लोगों में थी, जब वह उनकी योजनाओं के पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहे थे (यशायाह 25:1), शत्रुओं से छुड़ाने(पद 2), आंसू पोंछने, नामधराई दूर करने और मृत्यु का सदा के लिए नाश करने की आशा(पद 8)। तब तक, परमेश्वर ने अपने लोगों को शरण और आश्रय, कठिनाइयों में दिलासा, सहन करने का बल और यह विश्वास दिया कि वह उनके साथ थे।
यह हमारा दोहरा वायदा है- एक दिन उद्धार पाने, और जीवन में दिलासा, सामर्थ और आश्रय प्राप्त करने की हमारी आशा।