Month: जनवरी 2018

बर्फ़ के समान सफेद

पिछले दिसंबर माह में, मेरा परिवार और मैं पहाड़ों पर गए थे। पहली बार हम सभी ने इतनी शानदार बर्फ़ को देखा। सफेद लबादे से ढके खेतों को ध्यान से देखते हुए, मेरे पति ने यशायाह से उद्धृत किया, "तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों तौभी हिम की नाईं उजले हो जाएंगे" (यशायाह 1:18)।

हमारी तीन साल की बेटी ने पूछा, "क्या रंग लाल बुरा होता है?" वह जानती है कि पाप उन बातों को कहते हैं जिन्हें परमेश्वर पसंद नहीं करते हैं, परन्तु यह पद रंगों के बारे में बात नहीं है। यहाँ चमकदार लाल रंग का वर्णन है जो एक छोटे से कीड़े के अंडे से निकलता है। कपड़े को इस लाली में दो बार रंगा जाता हैa जिससे रंग पक्का हो जाए। न तो बारिश से और न ही धोकर इसे हटाया जा सके। पाप इसी के समान होता है। कोई मानव प्रयास इसे दूर नहीं कर सकता है। इसकी जड़ मन में होती है।

पाप को दिल से केवल परमेश्वर निकाल सकते हैं। जब हम वचन का अनुसरण करते हैं "मन फिराओ...कि तुम्हारे पाप मिट जाएं" (प्रेरितों के काम 3:19), परमेश्वर हमें क्षमा कर एक नया जीवन देते हैं। केवल यीशु के बलिदान के माध्यम से-एक निष्पाप दिल पाते हैं। क्या ही अद्भुत उपहार है!

सामर्थी और सहज रूप से उपलब्ध

जब मुझे माँ के कैंसर का समाचार मिला तब मेरे पति ऑफिस में थे। एक मेसेज छोड़ कर मैं मित्रों और परिवार को फोन करने लगी। कोई भी उपलब्ध नहीं था। कांपते हाथों से चेहरे को ढक कर, मैं सिसकने लगी, "परमेश्वर मेरी मदद करें।" उन क्षणों में जब मैं पूरी तरह से अकेला महसूस कर रही थी तब एक आश्वासन ने, कि परमेश्वर मेरे साथ थे, मुझे शान्ति दी।

जब मेरे पति आ गए और मित्रों और परिवार से भी प्रोत्साहन मिलने लगा तो मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर भी, अकेलेपन और दु:ख के उन कुछ घंटों में परमेश्वर की शांति देने वाली उपस्थिति ने मुझे यह आश्वासन दिया था कि परमेश्वर विश्वसनीय हैं और अति सहज से मिलने वाले सहायक हैं, मेरी हर ज़रूरत के समय में कभी भी, कहीं भी।

भजन 46 कहता हैं, परमेश्वर हमारा शरणस्थान...हमारा ऊँचा गढ़ है। परमेश्वर ने चेले बनाए ताकि वे प्रार्थनाएँ करते हुए एक-दूसरे को प्रोत्साहन और सहायता दें। लेकिन वे यह स्पष्ट भी करते हैं कि वह सामर्थी और सहज रूप से उपलब्ध रहते हैं। जब हम परमेश्वर को पुकारते हैं, तब हमारे लिए उनके उपाय के उनके वादे पर विश्वास कर सकते हैं। वह अपने लोगों के माध्यम से और साथ ही उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति के माध्यम से हमें शांति देंगे।

एक बालक के समान

अपनी दो साल की बेटी के साथ शुभरात्रि की प्रार्थना के बाद, एक प्रश्न से मेरी पत्नी आश्चर्यचकित हो गई। "माँ, यीशु कहाँ हैं?"

लूएन ने जवाब दिया, "यीशु स्वर्ग में और वह हर जगह हैं, यहीं हमारे साथ। अगर तुम उन्हें आने का निमंत्रण दोगी तो वो तुम्हारे दिल में भी हो सकते हैं।"

"मैं चाहती हूँ कि यीशु मेरे दिल में आएं।"
"समय आने पर तुम उनसे कह सकती हो।"
"मैं अभी उन्हें मेरे दिल में आने के लिए कहना चाहती हूँ।"
तो हमारी नन्हीं बेटी ने कहा, "यीशु, कृपया मेरे दिल में आईए और मेरे साथ रहिए।" और इस प्रकार उनके साथ उसके विश्वास की यात्रा आरम्भ हो गई।

जब यीशु के चेलों ने पूछा, कि स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है इस पर उन्होंने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच खड़ा किया। (मत्ती 18:1-2) “यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनों...”। (3-5)

यीशु की दृष्टि से एक विश्वासी बालक को हम अपने विश्वास के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। हमें उन सभी को ग्रहण करने को कहा गया है जो अपने दिलों में उसे ग्रहण कर लेते हैं। "बालकों को मेरे पास आने दो,...स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है" (19:14)।

आनन्द

मैं जीबन की एक नई ऋतु की और बड रही हूँ-बुढ़ापे की "शीत"ऋतु-पर अभी वहां पहुंची नहीं हूँ। वर्ष गुज़रते जा रहे हैं और उनकी गति को धीमा करने का मन करता है, फिर भी मेरा आनन्द मुझे संभालता है। प्रति दिन एक नया दिन है जिसे प्रभु मुझे देते हैं। मैं कह सकती हूँ, "यहोवा का धन्यवाद करना भला है...। (भजन 92:1-2)

परमेश्वर मुझे सक्षम बनाते हैं कि भजनकार के साथ मिलकर "[उसके] हाथों के कामों के कारण आनन्द के गीत [गाऊँ]। (पद 4) इन आशीषों का: परिवार, मित्र, और संतोषजनक व्यवसाय। परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि और उनके प्रेरित वचन का आनन्द। आनन्द क्योंकि यीशु ने हमसे इतना प्रेम किया कि हमारे पापों के लिए अपनी जान दे दी। आनन्द इसलिए क्योंकि उसने हमें पवित्र आत्मा दी जो सच्चे आनन्द का स्रोत है। (रोमियों 15:13) प्रभु पर विश्वास करने वाले "...पुराने होने पर भी फलते रहेंगे" (भजन 92:12-14)।

हमारी परिस्थितियां या जीवन की ऋतु कैसी भी हों, हम अपने जीवन जीने के तरीके और अपने शब्दों के माध्यम से उनके प्रेम का उदाहरण बन सकते हैं। प्रभु को जानने में और उनके लिए जीवन जीने में और उनके बारे में दूसरों को बताने में आनन्द मिलता है।

बात का अंतिम शब्द

फिलोसोफी की कक्षा के दौरान प्रोफेसर के विचारों के बारे किसी छात्र ने भड़काऊ टिप्णियाँ कीं। अन्य छात्र हैरान थे कि, शिक्षक ने उसका धन्यवाद किया और अगली टिपणी पर बढ़ गए।  पूछने पर कि उन्होंने उस छात्र को जवाब क्यों नहीं दिया वे कहने लगे, "मैं अन्त अपनी बात से ना करने के अनुशासन का अभ्यास कर रहा हूँ।"

यह शिक्षक परमेश्वर को प्रेम और आदर करते थे, और प्रेम दिखा कर वह विनम्र भावना का श्रेष्ठ उदाहरण बन गए। मुझे एक अन्य शिक्षक की याद आगई-सभोपदेशक की पुस्तक के लेखक। जिन्होंने कहा कि जब हम परमेश्वर के भवन में जाएं तब हमें सावधानी बरतनी चाहिए, हमें बातें करने और अपने मन में उतावली न करके "सुनने के लिए समीप जाना चाहिए"। ऐसा करके हम स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर प्रभु हैं और हम उनकी रचना हैं। (सभोपदेशक 5:1-2)

आप परमेश्वर के भवन में कैसे आते हैं? यदि आपको कुछ सुधार की आवश्यकता है, तो क्यों ना कुछ समय प्रभु की महिमा और महानता पर विचार करने में बिताएं? उनके अंतहीन विवेक, सामर्थ, और उपस्थिति पर विचार करके, हमारे प्रति उनके उमड़ते प्रेम से हम आदर भाव का अनुभव कर सकते हैं। विनम्रता के इस भाव से, हमें भी अपनी बात से अन्त नहीं करना चाहिए।

पवित्र, पवित्र, पवित्र

"मौज-मस्ती का समय बहुत जल्दी बीत जाता है"। यह बात तथ्य पर आधारित नहीं है, परन्तु अनुभव सत्य लगता है। जब जीवन सुहाना हो, समय तेज़ी से गुजरता है। कोई ऐसा काम, या ऐसा व्यक्ति जो मुझे पसंद हैं, मुझे दे दो, और समय महत्वहीन लगेगा।

मेरे इस अनुभव ने प्रकाशित वाक्य 4 में वर्णित दृश्य का मुझे एक नया दर्शन दिया। परमेश्वर के सिंहासन के चारों ओर बैठे चार जीवित प्राणियों के निरन्तर एक ही बात दोहरने पर, जब मैं पहले विचार किया करती थी, तो लगता था, कि कितनी बोरिंग स्थिति है!

अब मैं वैसा नहीं सोचती। मैं उन दृश्यों के बारे में सोचती हूँ जिन्हें वे अपनी अनेकों आँखों से निहारते होंगे (पद 6, 8)। स्वच्छंद भाव वाले पृथ्वीवासियों के प्रति परमेश्वर के विवेकपूर्ण और करुणामयी व्यवहार से वो कितने चकित रह जाते होंगे। तब लगता है कि, इससे बेहतर प्रतिक्रिया और क्या हो सकती है? वहाँ "पवित्र, पवित्र, पवित्र" के अलावा और कहने के लिए और क्या हो सकता है?

उन चार प्राणियों की तरह, हमें भी परमेश्वर का गुणगान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यदि हम उन पर अपना ध्यान केंद्रित रखें और इस उद्देश्य को पूरा करते रहें तो हमारा जीवन कभी बोरिंग नहीं होगा।

सच्ची आशा

कुछ समय पहले मैं एक मित्र के साथ एम्पायर स्टेट बिल्डिंग में गया। लाइन छोटी लग रही थी, बस कोने तक ही। परन्तु अन्दर पहुंचे तो देखा, लाइन लॉबी से लेकर सीढ़ियों तक और एक अन्य कमरे तक फैली हुई थी । हर मोड़ और भी दूरी को बता रहा था।

आकर्षणस्थलों और थीम पार्क की लाइनों के रूट ऐसे बनाए जाते हैं जिससे भीड़ कम दिखे। फिर भी हर मोड़ पर वास्तविक दशा से निराशा हाथ आती है।

कभी कभी जीवन की निराशाएं और अधिक गंभीर हो जाती हैं। जो नौकरी मिलने की आशा हो वह नहीं मिलती, जिन मित्रों पर भरोसा किया उन्हीं ने धोखा दिया, जो संबंध बनाए वे  नकाम हुए। लेकिन इन पलों में, परमेश्वर पर हमारी आशा रखने के बारे में वचन एक सत्य कहता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा, "क्लेश से धीरज और धीरज से खरा निकलना..."। (रोमियों 5:3-5)     

जब उनपर हम विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर अपनी आत्मा द्वारा, धीरे से बता देते हैं कि वे हमें बिना शर्त प्रेम करते हैं और एक दिन हम उनके साथ होंगे-चाहे कैसी भी बाधाओं का हमें सामना करना पड़े। एक ऐसे संसार में जो अक्सर हमें निराश करता है, यह जानना कितना भला है कि परमेश्वर हमें सच्ची आशा देते हैं।

जीवन का परमेश्वर

कुछ सर्दियों पहले, मेरे शहर ने हड्डियाँ जमा देने वाली असामान्य बर्फीली सर्दी का अनुभव किया जिसने अंत में वसंत ऋतु के थोड़े गर्म मौसम के किए मार्ग खोल दिया। बाहरी तापमान उप-शून्य डिग्री अंक से सीधे नीचे उतर गया (20 C; -5 F)।

एक सुबह में चहकते पक्षियों की आवाज़ ने रात की खामोशी तोड़ दी। दर्जनों, पक्षी दिल खोल कर गा रहे थे। कहा जाए तो वे जीव अपने सृष्टिकर्ता के लिए अपना राग सुना रहे थे!

पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि सर्दियों के अंत में आने वाली भोर में जिन सैंकड़ों पक्षियों का मधुर गीत हम सुनते हैं उन में अधिकतर अपने साथी को आकर्षित करने और क्षेत्रों का दावा भरने वाले नर पक्षी होते हैं। उनकी चहचहाहट ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर ने जीवन को बनाए रखने और फलवंत करने के लिए अपनी सृष्टि में सुधार किया-क्योंकि वह जीवन का परमेश्वर है।

एक भजन यूँ आरंभ होता है, "वह सब जो मैं हूँ यहोवा को धन्य कहे" (भजन 104:1)। "नालों में बहते सोतों के पास..."। (12) बसेरा करते और बोलते पक्षियों से लेकर समुद्र के अनगिनत जलचर (25), उसकी प्रशंसा करने के लिए हमारे पास कितने कारण हैं जिसने यह सुनिश्चित किया है कि समस्त जीवन फलता फूलता रहे।

प्रेम की एक "हाँ"

21 अगस्त, 2016 को कैरिसा ने लुइसियाना में आई विनाशकारी बाढ़ की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की। अगले दिन बाढ़ ग्र्स्त क्षेत्र में मदद करने को उनके साथ चलने का आग्रह किया। चौबीस घंटे के भीतर वो अपने पति बॉबी और तेरह लोगों के साथ 1,000 मील की यात्रा पर थी।

ऐसा क्या है जो लोगों को सब कुछ छोड़ कर आशा प्रदान करने के लिए वहाँ जाने के लिए प्रेरित करता है जहाँ वे पहले कभी न गए हों? वह प्रेम है।

मदद मांगने के आग्रह के साथ उसने यह वचन भी पोस्टpost किया था: "अपने मार्ग की चिंता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा कर वही पूरा करेगा "(भजन 37:5)। यह विशेष रूप से तब सार्थक होता है जब हम मदद करने के लिए परमेश्वर की बुलाहट का अनुसरण करते हैं। प्रेरित यूहन्ना ने कहा, "वह अपने भाई को कंगाल देख कर उस पर तरस न खाना चाहे ..."(1 यूहन्ना 3:17) जब हम "वह करते हैं जो उन्हें भाता है तब हमारी मदद करने का परमेश्वर ने वादा किया है"। (22)

आवश्यकता पड़ने पर जब हमें लगे की परमेश्वर दूसरों के लिए कुछ करने के लिए हम से कह रहे हैं, तब हम स्वेच्छा से प्यार की एक "हाँ" से परमेश्वर का आदर कर सकते हैं।