जब मुझे माँ के कैंसर का समाचार मिला तब मेरे पति ऑफिस में थे। एक मेसेज छोड़ कर मैं मित्रों और परिवार को फोन करने लगी। कोई भी उपलब्ध नहीं था। कांपते हाथों से चेहरे को ढक कर, मैं सिसकने लगी, “परमेश्वर मेरी मदद करें।” उन क्षणों में जब मैं पूरी तरह से अकेला महसूस कर रही थी तब एक आश्वासन ने, कि परमेश्वर मेरे साथ थे, मुझे शान्ति दी।

जब मेरे पति आ गए और मित्रों और परिवार से भी प्रोत्साहन मिलने लगा तो मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर भी, अकेलेपन और दु:ख के उन कुछ घंटों में परमेश्वर की शांति देने वाली उपस्थिति ने मुझे यह आश्वासन दिया था कि परमेश्वर विश्वसनीय हैं और अति सहज से मिलने वाले सहायक हैं, मेरी हर ज़रूरत के समय में कभी भी, कहीं भी।

भजन 46 कहता हैं, परमेश्वर हमारा शरणस्थान…हमारा ऊँचा गढ़ है। परमेश्वर ने चेले बनाए ताकि वे प्रार्थनाएँ करते हुए एक-दूसरे को प्रोत्साहन और सहायता दें। लेकिन वे यह स्पष्ट भी करते हैं कि वह सामर्थी और सहज रूप से उपलब्ध रहते हैं। जब हम परमेश्वर को पुकारते हैं, तब हमारे लिए उनके उपाय के उनके वादे पर विश्वास कर सकते हैं। वह अपने लोगों के माध्यम से और साथ ही उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति के माध्यम से हमें शांति देंगे।