1950 के दशक में, गोरे-काले के भेदभाव के कारण अलगाव की स्थिति थी। स्कूलों, रेस्तरां, सार्वजनिक वाहनों और पड़ोसियों में, रंग के आधार पर लोग विभाजित किए जाते थे। 1968 में मैंने अमेरिकी सेना की बेसिक ट्रेनिंग में प्रवेश पाया। हमारी कंपनी में भिन्न सांस्कृतिक समूहों के कई युवा पुरुष थे। हमने जल्द ही सीख लिया कि एक-दूसरे को समझने और स्वीकार करने के साथ हमें मिलकर काम करके अपने मिशन को पूरा करने की आवश्यकता थी।
जब पौलुस ने कोलोस्से की कलिसिया को पत्र लिखा, तो वे उन की विविधता से परिचित थे। उन्होंने उन्हें याद दिलाया, “उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी…(कुलुस्सियों 3:11)। ऐसे समूह में जहां ऐसे मतभेद लोगों को आसानी से विभाजित कर सकते थे, पौलुस ने उनसे करूणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता धारण करने का आग्रह किया और इन सभी गुणों के ऊपर, “प्रेम को…बान्ध लेने को कहा” (12,14)।
इन सिद्धांतों के अभ्यास में प्रयत्न और समय दोनों लग सकता है, लेकिन यह कार्य करने को यीशु ने हमें बुलाया है। उनके प्रति हमारा प्रेम विश्वासियों की समानता है। हम मसीह की देह के सदस्यों के रूप में विवेक, शांति और एकता के लिए प्रयत्नशील बने रहें।
विविधता के बीच, हम मसीह में और भी अधिक एकता का प्रयत्न करते रहें।
मसीह का प्रेम विविधता में एकता की रचना करता है।