एक विशेष अवसर को मनाने के लिए, मेरे पति मुझको एक स्थानीय कला दीर्घा (Art gallery) ले गए और मुझे उपहार देने के लिए मुझसे कोई चित्रकला चुनने को कहा l मैंने वन के बीच से बहती हुई एक छोटी नदी की छोटी चित्रकला का चुनाव किया l उस चित्र में नदी का तल पूरे चित्र फलक(Canvas) पर फैला हुआ था, और इस कारण आकाश का हिस्सा बहुत कम दिखाई दे रहा था l हालाँकि, नदी की प्रतिबिम्ब में सूरज, पेड़ों की चोटियाँ, और धुंधला फ़िज़ा स्पष्ट था l केवल पानी की सतह पर ही आसमान “देखा” जा सकता था l
आत्मिक भाव में, यीशु उस नदी के समान है l जब हम जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कैसा है, हम यीशु की ओर देखते हैं l इब्रानियों का लेखक कहता है कि वह “[परमेश्वर] के तत्व की छाप [है]” (1:3) l यद्यपि हम “परमेश्वर प्रेम है” जैसे बाइबल के प्रत्यक्ष कथनों से परमेश्वर के विषय सच्चाइयाँ सीख सकते हैं, हम परमेश्वर को उन समस्याओं में कार्य करते हुए देखकर जिनसे हमारा सामना इस संसार में होता है, हम अपनी समझ को और भी गहरा कर सकते हैं l यीशु हमें दिखाने आया कि वह मानव रूप में परमेश्वर है l
परीक्षा में, यीशु ने परमेश्वर की पवित्रता प्रगट किया l आत्मिक अन्धकार का सामना करते हुए, उसने परमेश्वर का अधिकार दर्शाया l लोगों की परेशानियों से जूझते हुए, उसने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता दिखाई l अपनी मृत्यु में, उसने परमेश्वर का प्रेम प्रगट किया l यद्यपि हम परमेश्वर के विषय सब कुछ नहीं समझ सकते हैं – वह असीमित है और हम अपनी सोच में सीमित हैं – हम मसीह को देखकर परमेश्वर के चरित्र के विषय निश्चित हो सकते हैं l
यीशु में हमें परमेश्वर का चरित्र दिखाई देता है l