Month: जून 2018

जगत की ज्योति

मेरी पसंदीदा कलाकृति इंगलैंड, ऑक्सफ़ोर्ड में केम्बल कॉलेज चैपल में टंगा हुआ है l चित्रकार, विलियम होलमैन हंट की चित्रकला, द लाइट ऑफ़ द वर्ल्ड , में यीशु को अपने हाथ में लालटेन लिए हुए एक घर के दरवाजे को खटखटाते हुए दिखाया गया है l

दरवाजे में हैंडल का नहीं होना उस चित्रकला का एक लुभावना पक्ष है l जब पूछा गया कि दरवाजा कैसे खोला जाएगा, हंट का कहना था कि वे प्रकाशितवाक्य 3:20 का चित्र दर्शाना चाहते थे, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर [आऊंगा] l”

प्रेरित यूहन्ना के शब्द और चित्रकारी यीशु की दयालुता प्रगट करती है l वह शांति का उपहार देने के लिए हमारी आत्माओं के द्वार पर धीरे-धीरे खटखटाता है l यीशु हमारे प्रतिउत्तर के लिए धीरज रखकर इंतज़ार करता है l वह खुद ही दरवाजा खोलकर हमारे जीवनों में प्रवेश नहीं करता है l वह अपनी इच्छा हमारे जीवनों पर नहीं थोपता है l इसके बदले, वह सभी लोगों को उद्धार का उपहार देता है और हमारे मार्गदर्शन के लिए हमें ज्योति l

जो कोई दरवाजा खोलता है, वह उसके अन्दर आने का वादा करता है l और कोई अनिवार्यता या ज़रूरत नहीं है l

यदि आप यीशु की आवाज़ और आपकी आत्मा के दरवाजे पर धीमी दस्तक सुने तो, उत्साहित हो जाएं कि वह आपके लिए धीरज से इंतज़ार करता है और जब आप उसे अपने जीवन में बुलाएँगे वह प्रवेश करेगा l

प्रेम की तस्वीर

हमारे बच्चे और मैंने एक नया दैनिक अभ्यास आरम्भ किया है l हर दिन सोते समय, हम रंगीन पेंसिल इकठ्ठा करते हैं और एक मोमबत्ती जलाते हैं l  परमेश्वर से हमारे मार्ग को प्रकाशित करने की प्रार्थना करते हुए, हम अपनी दैनिकी खोलकर दो प्रश्नों के उत्तर को चित्रित करते हैं या लिखते हैं : आज मैंने प्रेम कब प्रदर्शित किया? और आज मैंने प्रेम कब प्रगट नहीं किया?

“आरंभ से” ही पड़ोसी से प्रेम करना मसीही जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग रहा है (2 यूहन्ना 1:5) l  यूहन्ना अपनी दूसरी पत्री में अपनी मण्डली को यही लिखते हुए परमेश्वर की आज्ञाकारिता में एक दूसरे से प्रेम करने को कहता है (2 यूहन्ना 1:5-6) l यूहना की पत्री में प्रेम उसका एक पसंदीदा विषय है l उसका कहना है कि वास्तविक प्रेम का अभ्यास यह जानने का एक तरीका है कि हम “सत्य के है,” कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में जीवन बिताते है (1 यूहन्ना 3:18-19) l जब मेरे बच्चे और मैं विचार करते हैं, हम महसूस करते हैं कि हमारे जीवनों में प्रेम साधारण कार्यों में दिखाई देता है : एक छाता को दूसरे के साथ बांटना, किसी दुखित को उत्साहित करना, या एक पसंदीदा भोजन बनाना l वे क्षण जब हम प्रेम को व्यवहारिक नहीं होने देते हैं : हम व्यर्थ बातें करते हैं, दूसरों के साथ कुछ भी नहीं बांटते हैं, या दूसरों की ज़रूरतों की अवहेलना करके अपनी खुद की इच्छा पूरी करते हैं l

रोज़ रात के समय परस्पर एक दूसरे पर ध्यान देने के द्वारा हम और भी सतर्क रहते हैं, और अपने दैनिक जीवन में पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन की ओर और भी उन्मुख होते हैं l आत्मा की सहायता से, हम प्रेम में चलना सीख रहे हैं (2 यूहन्ना 1:6) l

कूड़ेदान में अंगूठी

कॉलेज में, एक सुबह जब मैं उठा तो अपने रूममेट, कैरोल को घबराया हुआ पाया l उसकी अंगूठी खो गयी थी l हमने सभी जगह खोजा l अगली सुबह हम कूड़ादान में खोज रहे थे l

मैंने कूड़े का एक बैग खोला l “तुम तो इसे खोजने में कितने लवलीन हो!”

“मैं दो सौ डॉलर की अंगूठी खोना नहीं चाहती हूँ!” उसने कहा l

कैरोल की दृढ़ता मुझे स्वर्ग के विषय यीशु का दृष्टान्त याद दिलाता है, जो “खेत में छिपे हुए धन के समान है l जब किसी मनुष्य ने पाया और छिपा दिया, और मारे आनंद के जाकर अपना सब कुछ बेच दिया और उस खेत को मोल ले लिया” (मत्ती 13:44) l कुछ वस्तुओं को खोजने में मेहनत करना फायदेमंद है l

सम्पूर्ण बाइबल में, परमेश्वर प्रतिज्ञा देता है कि उसको खोजनेवाले उसे पाते हैं l व्यवस्थाविवरण में, परमेश्वर इस्राएलियों से कहता है कि वे उसे पाएंगे जब वे अपने पापों से पश्चाताप करके अपने सम्पूर्ण हृदय से उसे खोजेंगे (4:28-29) l 2 इतिहास में, राजा आसा ने इसी प्रकार की प्रतिज्ञा से प्रोत्साहन प्राप्त किया (15:2) l और यिर्मयाह में, परमेश्वर ने यह कहकर कि वह उन्हें दासत्व से वापस लाएगा, निर्वासितों को उसी तरह की प्रतिज्ञा दी (29:13-14) l

यदि हम उसके वचन, और आराधना में, और अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर को खोजते हैं, हम उसको पा लेंगे l समय के साथ, हम उसे गहराई से जानने पाएंगे l यह उस क्षण से भी बेहतर होगा जब कैरोल ने कूड़ेदान के अन्दर से अपनी अंगूठी खोज ली l

स्वतंत्र

प्रमस्तिष्क पक्षाघात(Cerebral Palsy-मस्तिष्क क्षति जिसके कारण भुजाओं और टांगों पर नियंत्रण भी क्षतिग्रस्त हो जाता है) के साथ जन्मा एक लड़का बोलने या बातचीत करने में असमर्थ था l किन्तु उसकी माँ, शेटल ब्रायन ने हार नहीं मानी, और जब वह दस वर्ष का हुआ उसने अपने बेटे के साथ अपनी आखों और एक अक्षर बोर्ड की सहायता से बातचीत करना ढूंढ़ लिया l इस महत्वपूर्ण खोज के बाद, उसने कहा, “वह स्वतंत्र हो गया था और हम उससे कुछ भी पूछ सकते थे l” अब जोनाथन आँखों की सहायता से बातचीत करते हुए लिख और पढ़ सकता था जिसमें कविता भी सम्मिलित थी l जब उससे पुछा गया कि अपने परिवार और मित्रों से “बातचीत” करना कैसा लगता है, उसने कहा, “उनको बताना कि मैं उनसे प्यार करता हूँ अद्भुत है l”

जोनाथन की कहानी पूरी तौर से मार्मिक है और हमें विचार करने को मजबूर करती है कि परमेश्वर किस तरह हमें पाप के कैद से स्वतंत्र करता है l जिस तरह प्रेरित पौलुस ने कुलुस्से के मसीहियों को लिखा, कि पहले हम “निकाले हुए थे” (कुलुस्से 1:21), हमारा बुरा स्वभाव हमें परमेश्वर का शत्रु बना दिया था, किन्तु क्रूस पर मसीह की मृत्यु के द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में “पवित्र” ठहराए गए हैं (पद.22) l फलवंत होते हुए हमारा “चाल-चलन प्रभु के योग्य” होता जाए, हम परमेश्वर के ज्ञान में उन्नत्ति करते जाएँ, और उसकी सामर्थ्य में सबल बनते जाएं l

हम अपनी स्वतंत्र आवाज़ को परमेश्वर की महिमा करने और उसका सुसमाचार बांटने के लिए उपयोग करते हुए दर्शाएँ कि अब हम पापी जीवन के दास नहीं हैं l अपने विश्वास में उन्नत्ति करते हुए, हम मसीह में अपनी आशा को थामे रहें l

स्वतंत्र

जब मैं छोटा था और गाँव में रहता था, मुर्गियाँ मेरे लिए रोमांचक थीं l मैं एक को पकड़ कर  उसे थोड़ी देर नीचे बैठाकर रखता था और फिर धीरे से जाने देता था l यह सोचकर कि मैं उनको अभी भी पकड़े हुए हूँ, मुर्गियां नीचे बैठी रहती थी, यद्यपि भागने के लिए वे स्वतंत्र थीं l वे अपने को स्वतंत्र महसूस नहीं करती थीं l

जब हम यीशु में विश्वास कर लेते हैं, वह अपने अनुग्रह से हमें हमारे पापों से और शैतान की पकड़ से छुड़ा लेता है l हालाँकि, हमारे पापी आदतों और व्यवहार को बदलने में समय लगने के कारण, शैतान हमें महसूस कराता है कि हम अभी भी उसकी पकड़ में हैं l किन्तु परमेश्वर की आत्मा ने हमें स्वतंत्र कर दिया है; वह हमें दास नहीं बनाता है l पौलुस ने रोमियों को लिखा, “अतः अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दंड की आज्ञा नहीं l क्योंकि जीवन की आत्मा के व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया” (रोमियों 8:1-2) l

अपने बाइबल पठन, प्रार्थना, और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा परमेश्वर हमें पवित्र करने और उसके लिए जीवन जीने के लिए कार्य करता है l बाइबल हमें यीशु के साथ चलने में निश्चित रहने हेतु उत्साहित करता है और कि हम स्वतंत्रता महसूस करें l

यीशु ने कहा, “इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे” (यूहन्ना 8:36) l मसीह में प्राप्त स्वतंत्रता हमें उससे प्रेम करने और उसकी सेवा करने हेतु उकसाए l

मौखिक अनुग्रह

कई वर्षों तक, मैंने ब्रिटिश लेखक जी. के. चेस्टरटन के लेखों का आनंद उठाया है l उसके विनोद और अंतर्दृष्टि ने मुझे मुस्कुराने और उसके बाद अधिक गंभीर चिंतन करने को विवश किया l उदहारण के लिए, वह लिखता है, “आप खाने से पहले धन्यवाद करते हैं l ठीक है l किन्तु मैं पूछता हूँ खेल और संगीत-नाटक से पहले, और संगीत-समारोह और मूक नाटक, और पुस्तक खोलने से पहले धन्यवाद, और रेखा चित्र, चित्र बनाने, तैराकी, बाड़ा लगाने, बॉक्सिंग, टहलने, खेलने, नृत्य, और स्याही के दवात में पेन डूबाने से पहले धन्यवाद क्यों नहीं l”

हमारे लिए प्रत्येक भोजन से पहले प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है, किन्तु उसको वहीं पर रुकना नहीं चाहिए l प्रेरित पौलुस ने हर एक क्रिया, प्रत्येक प्रयास को परमेश्वर को धन्यवाद देने के अवसर के रूप में देखा और और हमें भी उसकी महिमा के लिए उन्हें करना चाहिए l “वचन में या काम में जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो” (कुलुस्सियों 3:17) l मनोरंजन, व्यवसाय, और शिक्षा वे अवसर हैं जिसके द्वारा हम प्रभु को आदर दे सकते हैं और धन्यवाद भी l

पौलुस भी कुलुस्से के विश्वासियों को इन शब्दों से उत्साहित किया, “मसीह की शांति जिसके लिए तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे; और तुम धन्य्वादी बने रहो” (पद.15) l

प्रार्थना और धन्यवाद देने का सर्वोत्तम स्थान है कहीं भी और किसी समय, अर्थात् जब आप उसको धन्यवाद और आदर देना चाहे l

एक मित्र का सुख

मैंने एक माँ के विषय पढ़ा जो अपनी बेटी को देखकर चकित हो गयी क्योंकि स्कूल से लौटते समय वह कमर से पैर तक कीचड़ से सनी हुई थी l उसकी बेटी ने बताया कि एक सहेली फिसल कर कीचड़ में गिर गयी थी l  जबकि दूसरी मदद ढूढ़ने गयी, उसकी छोटी बेटी दुखित हुई और अपनी सहेली को अपने चोटिल पैर को पकड़े हुए बैठे देखकर, शिक्षिका के आने तक अपनी सहेली के साथ उस कीचड़ में बैठ गयी l

जब अय्यूब ने अपने बच्चों की विनाशकारी हानि उठायी और उसका सम्पूर्ण शरीर पीड़ादायक घावों से भर गया, उसका दुःख अत्यधिक दुखदायी था l बाइबल बताती है कि उसके तीन मित्र उसको दिलासा देना चाहते थे l जब उनकी मुलाकात अय्यूब से हुई, वे “चिल्लाकर रो पड़े; और अपना अपना बागा फाड़ा और आकाश की ओर धूल उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाला l तब वे साथ दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दुःख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उससे एक भी बात न कही” (अय्यूब 2:12-13) l

आरम्भ में अय्यूब के मित्रों ने आश्चर्जनक समझ दर्शायी l उन्होंने भाप लिया कि अय्यूब को केवल किसी व्यक्ति की ज़रूरत थी जो उसके संग बैठकर उसके साथ विलाप कर सके l वे तीन लोग अगले कुछ अध्यायों में बोलने वाले थे l विडम्बना यह है कि जब उसके मित्र बोलना आरंभ करते हैं, वे अय्यूब को व्यर्थ सलाह देते हैं (16:1-4) l

अक्सर किसी दुखित मित्र को दिलासा देते समय उसके दुःख में उसके साथ बैठना सबसे अच्छा है l

किसी के होने का भाव

पिछली रात मैं देर तक बाहर था, जिस तरह मैं शनिवार की रात को रहता था l मैं 20 वर्ष का था, और अत्यधिक गति से परमेश्वर से दूर भाग रहा था l किन्तु अचानक, विचित्र रूप से, मैं उस चर्च में जाने को विवश हुआ जिसमें मेरे पिता पासवान थे l मैंने अपनी बदरंग जींस, पुरानी शर्ट, और खुले फीतों वाली घुटने तक की जूतियाँ पहनकर अपनी गाड़ी से चर्च गया l

मुझे अपने पिता का धर्मोपदेश याद नहीं जो उन्होंने उस दिन दिया था, किन्तु यह मुझे याद है कि वह मुझे देखकर कितना खुश हुए थे l अपनी बाहें मेरे कन्धों पर रखते हुए, उन्होंने मेरा परिचय सभी लोगों से कराया था l उन्होंने गर्व से कहा था, “यह मेरा बेटा है l” उनका आनंद परमेश्वर के प्रेम की छवि बन गयी जो पिछले कई दशकों से मेरे साथ है l

एक प्रेमी पिता के रूप में परमेश्वर की छवि पूरी बाइबल में दिखाई देती है l यशायाह 44 में, नबी पारिवारिक प्रेम के विषय परमेश्वर का सन्देश घोषित करने के लिए श्रृंखलाबद्ध चेतावनियाँ देता है l “हे मेरे चुने हुए यशूरून,” उसने कहा l “मैं तेरे वंश पर अपनी आत्मा और तेरी संतान पर अपनी आशीष उंडेलूँगा” (पद.2-3) l यशायाह ने ध्यान दिया कि किस तरह उन वंशजों का प्रतिउत्तर पारिवारिक गर्व दर्शाएगा l कुछ लोग गर्व से कहेंगे, ‘मैं यहोवा का हूँ,’” उसने लिखा l “कुछ अपने हाथों पर प्रभु का नाम लिखेंगे” (पद.5) l

उसी तरह जैसे मेरे पिता ने मुझे स्वीकार किया, हठधर्मी इस्राएल परमेश्वर के ही थे l मेरा कोई भी व्यवहार मुझे उसके प्रेम से अलग नहीं कर सकता था l उसने मुझे हमारे स्वर्गिक पिता का हमसे प्रेम करने की झलक दी l

यीशु के साथ संगति

मैं उस समय को नहीं भूल सकता जब मुझे बिली ग्रैहम के साथ रात्रि भोजन करने का अवसर मिला l मैं सम्मानित हुआ किन्तु क्या बोलना उचित होगा के विषय कुछ घबराहट भी हुई l मेरी सोच थी उनकी सेवा में उनको सबसे अधिक क्या अच्छा लगा पूछकर बातचीत को आरंभ करना अच्छा था l उसके बाद मैं खुद ही अजीब तरीके से उस प्रश्न का संभावित उत्तर देने लगा l राष्ट्राध्यक्षों, राजाओं, और रानियों को जानना? या संसार के लाखों लोगों को सुसमाचार सुनाना?

इससे पहले कि मैं सलाह देना बंद करता, रेव्ह. ग्रैहम ने मुझे रोक दिया l बगैर हिचकिचाहट के उन्होंने कहा, “यह यीशु के साथ मेरी संगति रही है l उसकी उपस्थिति का अनुभव करना, उस बुद्धिमत्ता प्राप्त करना, उसका मार्गदर्शन प्राप्त करना, यही मेरा सर्वोत्तम आनंद रहा है l” उसी क्षण मैं निरुत्तर हुआ और चुनौती प्राप्त किया l निरुत्तर इसलिए क्योंकि मैं इस बात से निश्चित नहीं था कि उनका उत्तर मेरा उत्तर होता, और चुनौती प्राप्त किया क्योंकि इसकी मुझे ज़रूरत थी l

यही बात पौलुस के मन में थी जब उसने “सब वस्तुओं की हानि [उठाकर], और उन्हें कूड़ा [समझकर] मसीह को प्राप्त” (फ़िलि. 3:8) करने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि समझा l विचार करें कि जीवन कितना समृद्ध होता यदि यीशु और उसके साथ हमारी संगति हमारी सबसे ऊँचा लक्ष्य होता l