कई वर्षों तक, मैंने ब्रिटिश लेखक जी. के. चेस्टरटन के लेखों का आनंद उठाया है l उसके विनोद और अंतर्दृष्टि ने मुझे मुस्कुराने और उसके बाद अधिक गंभीर चिंतन करने को विवश किया l उदहारण के लिए, वह लिखता है, “आप खाने से पहले धन्यवाद करते हैं l ठीक है l किन्तु मैं पूछता हूँ खेल और संगीत-नाटक से पहले, और संगीत-समारोह और मूक नाटक, और पुस्तक खोलने से पहले धन्यवाद, और रेखा चित्र, चित्र बनाने, तैराकी, बाड़ा लगाने, बॉक्सिंग, टहलने, खेलने, नृत्य, और स्याही के दवात में पेन डूबाने से पहले धन्यवाद क्यों नहीं l”

हमारे लिए प्रत्येक भोजन से पहले प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है, किन्तु उसको वहीं पर रुकना नहीं चाहिए l प्रेरित पौलुस ने हर एक क्रिया, प्रत्येक प्रयास को परमेश्वर को धन्यवाद देने के अवसर के रूप में देखा और और हमें भी उसकी महिमा के लिए उन्हें करना चाहिए l “वचन में या काम में जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो” (कुलुस्सियों 3:17) l मनोरंजन, व्यवसाय, और शिक्षा वे अवसर हैं जिसके द्वारा हम प्रभु को आदर दे सकते हैं और धन्यवाद भी l

पौलुस भी कुलुस्से के विश्वासियों को इन शब्दों से उत्साहित किया, “मसीह की शांति जिसके लिए तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे; और तुम धन्य्वादी बने रहो” (पद.15) l

प्रार्थना और धन्यवाद देने का सर्वोत्तम स्थान है कहीं भी और किसी समय, अर्थात् जब आप उसको धन्यवाद और आदर देना चाहे l