मैंने एक माँ के विषय पढ़ा जो अपनी बेटी को देखकर चकित हो गयी क्योंकि स्कूल से लौटते समय वह कमर से पैर तक कीचड़ से सनी हुई थी l उसकी बेटी ने बताया कि एक सहेली फिसल कर कीचड़ में गिर गयी थी l  जबकि दूसरी मदद ढूढ़ने गयी, उसकी छोटी बेटी दुखित हुई और अपनी सहेली को अपने चोटिल पैर को पकड़े हुए बैठे देखकर, शिक्षिका के आने तक अपनी सहेली के साथ उस कीचड़ में बैठ गयी l

जब अय्यूब ने अपने बच्चों की विनाशकारी हानि उठायी और उसका सम्पूर्ण शरीर पीड़ादायक घावों से भर गया, उसका दुःख अत्यधिक दुखदायी था l बाइबल बताती है कि उसके तीन मित्र उसको दिलासा देना चाहते थे l जब उनकी मुलाकात अय्यूब से हुई, वे “चिल्लाकर रो पड़े; और अपना अपना बागा फाड़ा और आकाश की ओर धूल उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाला l तब वे साथ दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दुःख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उससे एक भी बात न कही” (अय्यूब 2:12-13) l

आरम्भ में अय्यूब के मित्रों ने आश्चर्जनक समझ दर्शायी l उन्होंने भाप लिया कि अय्यूब को केवल किसी व्यक्ति की ज़रूरत थी जो उसके संग बैठकर उसके साथ विलाप कर सके l वे तीन लोग अगले कुछ अध्यायों में बोलने वाले थे l विडम्बना यह है कि जब उसके मित्र बोलना आरंभ करते हैं, वे अय्यूब को व्यर्थ सलाह देते हैं (16:1-4) l

अक्सर किसी दुखित मित्र को दिलासा देते समय उसके दुःख में उसके साथ बैठना सबसे अच्छा है l