Month: जुलाई 2018

हमारे समान पापी

 

मेरी एक मित्र है जिसका नाम इडिथ है l उसने मुझे उस दिन के विषय बताया जिस दिन उसने यीशु के पीछे चलने का निर्णय लिया था l

इडिथ धर्म का परवाह नहीं करती थी l किन्तु एक दिन वह अपने घर के निकट स्थित चर्च में गयी क्योंकि वह अपनी असंतुष्ट आत्मा की तृप्ति के लिए कुछ ढूँढ़ रही थी l उस दिन का बाइबल वचन लूका 15:1-2 था, जिसे पास्टर ने किंग जेम्स अनुवाद से पढ़ा : “सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें l पर फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है l”

वहाँ पर यही लिखा था, किन्तु इडिथ ने कुछ और सुना : यह तो पापियों के साथ इडिथ से भी मिलता है l” वह अपने सीट पर सीधे बैठ गयी! आखिरकार उसने अपनी गलती मान ली, किन्तु वह विचार कि यीशु पापियों से मिलता है और उसमें इडिथ भी शामिल है, उसके मन में चल रहा था l वह सुसमाचार पढ़ने लगी, और जल्द ही उसमें विश्वास करके उसकी शिष्या बन गयी l

यीशु के दिनों के धार्मिक लोग इस वास्तविकता से अपमानित होते थे कि वह पापी, और बुरे लोगों के साथ खाता पीता था l उनका नियम ऐसे लोगों के साथ उनको सहभागिता रखने के लिए मना करता था l  यीशु ने मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियमों की परवाह नहीं करता था l उसने दीन-हीन व्यक्तियों को अपने पास बुलाया, चाहे वे कितनी ही दूर चले गए हों l

यह आज भी सच है, और आप जानते हैं : यीशु पापियों को बुलाता है और (आपका नाम शामिल है) l

चुनौतियों पर विजय

 

हम हर महीने अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों के प्रति एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के लिए इकट्ठे होते थे l मेरी सहेली मैरी वर्ष के अंत से पहले अपने डाइनिंग रूम की कुर्सियों पर गद्दियाँ लगाना चाहती थी l हमारी नवम्बर की सभा में उसने मजाकीय तरीके से अक्टूबर से अपनी प्रगति के विषय बताया : कुर्सियों पर गद्दियाँ लगाने में 10 महीने और दो घंटे लगे l” महीनों तक सामग्री उपलब्ध नहीं होने या  नौकरी में बहुत मांग होने के कारण और अपने छोटे बच्चे की देखभाल करने के बाद समय निकालकर, मात्र दो घंटों में गद्दियाँ लगाने का काम पूरा हो गया l  

प्रभु ने नहेम्याह को कहीं बड़े काम के लिए बुलाया था : यरूशलेम को पुनःस्थापित करने के लिए जिसकी दीवारें 150 वर्षों तक खंडहर पड़ी थीं (नहेम्याह 2:3-5, 12) l जब वह लोगों को काम करने में अगुआई कर रहा था, उन्होंने उपहास, आक्रमण, विकर्षण, और पाप के प्रति परीक्षा का सामना किया (4:3, 8; 6:10-12) l फिर भी परमेश्वर ने उनको अपने प्रयास में अडिग खड़े रहने हेतु सज्जित किया और केवल बावन दिनों में चुनौतीपूर्ण कार्य पूरा कर लिया गया l

इस तरह की चुनौतियों पर विजय पाने के लिए व्यक्तिगत इच्छा या लक्ष्य से अधिक की ज़रूरत होती है; नहेम्याह इस समझ से प्रेरित था कि परमेश्वर ने उसको इस काम के लिए नियुक्त किया था l असाधारण विरोध के बावजूद उसके उद्देश्य के कारण ने लोगों को उसके नेतृत्व में चलने के लिए बल दिया l चाहे किसी सम्बन्ध को ठीक करना हो अथवा अपनी साक्षी देना हो, जब परमेश्वर हमें कोई काम देता है वह हमें उस काम को करने के लिए समस्त कौशल और सामर्थ्य देता है ताकि सभी चुनौतियों का सामना करके हम अपने प्रयास में आगे बढ़ सकें l

दुःख में आशा

 

जब मैं उन्नीस वर्ष की थी, एक कार एक्सीडेंट में मेरी एक निकट सहेली की मृत्यु हो गयी l आगे के सप्ताहों और महीनों में, मैं प्रतिदिन गहरे दुःख से होकर निकली l इतनी छोटी उम्र में किसी को खो देने के दुःख से मेरी दृष्टि धुंधली हो गयी, और कभी-कभी मुझे यह भी पता नहीं होता था कि मेरे आस-पास क्या हो रहा है l दुःख और पीड़ा ने मुझे इतना अँधा कर दिया था कि मैं परमेश्वर को भी नहीं देख पा रही थी l

लूका 24 में, दो शिष्य, यीशु की मृत्यु के बाद भ्रमित और अति दुखित होने के कारण जान न सके कि वे पुनरुत्थित गुरु ही के साथ चल रहें हैं l मार्ग में वह उन्हें शास्त्र से समझाता जा रहा था कि क्यों प्रतिज्ञात उद्धारकर्ता को बलिदान होना और जी उठना अवश्य था l यीशु द्वारा रोटी लेकर तोड़ने के बाद ही उन्होंने उसको पहचाना (पद.30-31) l यद्यपि उसके अनुयायियों ने यीशु की मृत्यु के समय बहुत ही भयंकर मृत्यु का सामना किया था, मृत्यु से जी उठने के द्वारा परमेश्वर ने उनको दिखा दिया कि फिर से आशा कैसे रखी जा सकती है l

हमें भी उन शिष्यों की तरह, घबड़ाहट या गहरा दुःख दबा देता है l किन्तु हम इस सच्चाई में कि यीशु जीवित है और संसार में और हममें कार्य कर रहा है आशा और विश्राम पा सकते हैं l यद्यपि हम अभी भी व्यथा और दुःख का सामना करते हैं, हम यीशु को हमारे दुःख में साथ चलने को बुलाएं l जगत की ज्योति होकर (जूहन्ना 8:12), वह आशा की किरणों से हमारे कोहरे को साफ़ कर देगा l

मधुमक्खी और साँप

 

कुछ एक समस्याओं से पिता का नाम जुड़ा हुआ है l जैसे, हाल ही में मेरे बच्चों ने देखा कि मधुमक्खियों हमारे सामने के कंक्रीट बरामदे के दरार में छत्ते बना लिया है l इसलिए, मैंने कीट स्प्रे लेकर उनको हटाने लगा l

मधुमक्खियों ने मुझे पाँच बार डंक मारा l  

मुझे कीटों का डसना अच्छा नहीं लगता है l किन्तु मैं सह लूँगा पर मेरे बच्चों या मेरी पत्नी को कुछ न हो l आखिरकार मेरे कार्य सूची में मेरे परिवार का हित मेरे लिए सबसे पहले है l मेरे बच्चों के पास एक ज़रूरत थी, और उन्होंने मुझसे उसको पूरा करने को कहा l वे जिन बातों से डरते हैं उनसे सुरक्षा देने के लिए मुझ पर भरोसा करते हैं l

मत्ती 7 में, यीशु की शिक्षा है कि हमें भी अपनी ज़रूरतों के लिए परमेश्वर के पास जाकर (पद.7), उसके प्रबंध पर भरोसा करना चाहिए l यीशु इसे किरदार की सहायता से समझाता है : “तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी मांगे, तो वह उसे पत्थर दे? या मछली मांगे, तो उसे साँप दे?” (पद.9-10) l प्रेमी माता-पिता के लिए, उत्तर स्पष्ट है l किन्तु यीशु फिर भी उत्तर देते हुए, हमारे पिता की उदार भलाई में विश्वास नहीं खोने की चनौती देता है : “अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा?” (पद.10) l

मैं अपने बच्चों को और अधिक प्यार करने की कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ l किन्तु यीशु हमें निश्चित करता है कि हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम के समक्ष संसार के सबसे अच्छे पिता का प्रेम भी कम है l

प्रेम का उदार प्रगटन

 

हमारी शादी की सालगिरह पर मेरे पति, एलन मुझे ताज़े फूलों का गुलदस्ता देते हैं l संगठित पुनःनिर्माण कंपनी (corporate restructure)में नौकरी छूटने पर, मैंने प्रेम के खर्चीले प्रदर्शन जारी रहने की आशा नहीं की थी l किन्तु हमारे उन्नीसवीं सालगिरह पर, डाइनिंग हॉल के मेज़ पर रखे फूलों के रंगीन गुलदस्ते ने मेरा स्वागत किया l इसलिए कि उसके लिए यह वार्षिक रीत महत्वपूर्ण थी, एलन ने हर माह कुछ रूपये बचाकर मेरे लिए अपना व्यक्तिगत प्रेम प्रगट किया l

जिस तरह पौलुस ने कुरिन्थुस के विश्वासियों को संबोधित करते हुए उत्साहित किया, उसी प्रकार मेरे पति की चिन्ताशील योजना ने मेरे लिए भरपूर उदारता प्रगट की l प्रेरित पौलुस ने कलीसिया को उनके साभिप्राय और उत्साहवर्धक भेंट के लिए प्रशंसा करते हुए (2 कुरिं.9:2,5), उनको याद दिलाया कि परमेश्वर उदार और आनंद दे दिए गए भेंट से प्रसन्न होता है (पद.6-7) l आखिरकार, कोई भी हमारे प्रबंधकर्ता, जो हमारी हर एक ज़रूरत को पूरी करने को तत्पर है, से अधिक नहीं देता है, (पद.8-10) l

हम हर प्रकार के भेंट देने में उदार हो सकते हैं, परस्पर देखभाल कर सकते हैं क्योंकि प्रभु हमारे हर एक भौतिक, भावनात्मक, और आत्मिक ज़रूरतों को पूरी करता है (पद.11) l देने के द्वारा, हम परमेश्वर को सभी बातों के लिए धन्यवाद दे सकते हैं l हम दूसरों को भी परमेश्वर से प्राप्त आशीषों के लिए प्रशंसा करने और उसमें से देने हेतु प्रेरित कर सकते हैं (पद.12-13) l मुक्त हाथों का भेंट, प्रेम और कृतज्ञता का उदार प्रदर्शन, परमेश्वर के प्रबंध में हमारे भरोसे को प्रगट कर सकता है l

स्वार्थहीन सेवा

कुछ लोग इकठ्ठा होकर उस बड़े वृक्ष को मैदान में पड़ा देख खुद को बौना महसूस कर रहे थे l एक वृद्ध महिला अपनी छड़ी के सहारे खड़ी होकर पिछली रात आए तूफ़ान की बात कर रही थी जिसके कारण उसका वह “विशाल वृक्ष गिर चुका था” l उसकी आवाज़ में भावुकता थी, “सबसे बुरी बात यह थी कि उसके कारण हमारे विवाह के बाद मेरे पति द्वारा बनायी गयी पत्थर की दीवाल भी गिर गयी थी l उन्हें इस दीवार से प्रेम था l मैं भी उस दीवार से प्रेम करती थी! अब मेरे पति की तरह यह भी नहीं रहा l”

अगली सुबह, कंपनी के कर्मियों को गिरे वृक्ष को हटाते हुए और स्थान को साफ़ करते देखकर उसका चेहरा खिल उठा l उसने दो वयस्कों और एक किशोर को जो उसके लॉन का घास काटता था सावधानीपूर्वक उनकी प्रिय दीवाल को नापते और पुनः बनाते देखा!

परमेश्वर जिस सेवा के पक्ष में है यशायाह नबी उसी का वर्णन करता है: जिस प्रकार मरम्मत करनेवाले उस वृद्ध महिला के लिए किये कार्य उसी तरह के कार्य जो हमारे चारों ओर के लोगों के मन को आनंदित करते हैं, l यह परिच्छेद सिखाता है कि परमेश्वर पाखंडी आत्मिक रीति रिवाजों से ऊपर उठकर दूसरों को स्वार्थहीन सेवा देनेवालों को महत्त्व देता है l वास्तव में, परमेश्वर निःस्वार्थ सेवा के लिए अपनी संतान पर दो-तरफ़ा आशीष बरसाता है l पहली, परमेश्वर शोषित और ज़रुरतमंदों की सहायता करने में हमारी इच्छित कार्यों का उपयोग करता है (यशायाह 58:7-10) l उसके पश्चात  परमेश्वर ऐसी सेवा में संलग्न लोगों का अपने राज्य में सामर्थी सकारात्मक बल के रूप में उपयोग करके हमारी नेकनामी का निर्माण या पुनःनिर्माण करता है (पद. 11-12) l आज आप कौन सी सेवा देना चाहते हैं?

सिद्ध अपूर्णता

मेरे कॉलेज के एक प्रोफेसर ने मुझमें आदर्शवाद-प्रेरित विलम्ब(टालमटोल) को देखते हुए मुझे कुछ बुद्धिमान सलाह दी l “सिद्धता को अच्छे का शत्रु मत बनाओ,” उसने कहा, सिद्ध प्रदर्शन का प्रयास उन्नत्ति के लिए आवश्यक जोखिम उठाने से रोकता है l स्वीकार करते हुए कि मेरे काम हमेशा अपूर्ण रहेंगे मुझे उन्नत्ति करने की स्वतंत्रता मिलेंगी l

प्रेरित पौलुस ने खुद को सिद्ध बनाने में अपने प्रयास को त्यागने का एक और ख़ास कारण समझाया : मसीह हमारी ज़रूरत है, यह हमें इसके प्रति अँधा कर सकता है l

पौलुस ने इस सच को कठिन तरीके से सीखा था l कई वर्षों तक परमेश्वर की व्यवस्था को सिद्धता से पालन करने के प्रयास में, जब यीशु से मुलाकात हुई सब कुछ बदल गया  (गलातियों 1:11-16) l पौलुस ने समझ लिया कि यदि परमेश्वर के साथ पूर्ण और सही होने के लिए उसके प्रयास काफी हैं, “तो मसीह का मरना व्यर्थ होता” (2:21) l केवल खुद का इनकार ही, खुद पर भरोसा करना त्यागकर ही,  वह यीशु को अपने जीवन में जीवित महसूस कर सकता था (पद.20) l अपनी अपूर्णता में वह परमेश्वर की पूर्ण सामर्थ्य अनुभव कर सकता था l

इसका अर्थ यह नहीं है कि हम पाप का सामना न करें (पद.17); किन्तु इसका अर्थ यह ज़रूर है कि हम आत्मिक उन्नत्ति के लिए अपनी सामर्थ्य पर भरोसा करना छोड़ दें (पद.20) l

इस जीवन में, हम प्रगति करने वाले बने रहेंगे l किन्तु जब हमारे हृदय सिद्ध परमेश्वर की ज़रूरत के लिए नम्र बने रहेंगे, यीशु वहां निवास करेगा (इफिसियों 3:17) l हम उसमें जड़वत रहकर, उस ज्ञान से परे प्रेम में और गहराई से बढ़ते जाएंगे (पद.19) l

यीशु कारण जानता है

 

मेरे कुछ मित्र हैं जिन्होनें आंशिक चंगाई पायी है किन्तु अपनी बीमारियों के दुखद पहलुओं से अभी भी संघर्ष कर रहे हैं l दूसरे मित्र किसी नशे की लत से चंगाई पाए हैं किन्तु अपनी अयोग्यता की भावनाओं और आत्म-घृणा से अभी भी संघर्ष कर रहे हैं l और मैं चकित हूँ,क्यों नहीं परमेश्वर ने उनको एक बार में ही पूरी रीति से चंगा कर दिया?

मरकुस 8:22-26 में, यीशु के एक दृष्टिहीन व्यक्ति को चंगा करता है l सर्वप्रथम यीशु उस व्यक्ति को गाँव से बाहर ले गया l उसके बाद उसकी आँखों में थूका और “उस पर हाथ रखे l” उस व्यक्ति ने कहा कि उसे मनुष्य “चलते हुए पेड़ों जैसे दिखाई देते हैं” उसके बाद यीशु ने उसकी आँखों पर दोबारा हाथ रखे, और इस बार वह “सब कुछ साफ़-साफ़ देखने लगा l”

यीशु की सेवा में, उसके शब्द और कार्य अक्सर लोगों को और उसके शिष्यों को चकित और चौंका दिया करते थे (मत्ती 7:28; लूका 8:10; 11:14) और बहुतों को उससे दूर भी ले गए (यूहन्ना 6:60-66) l इसमें कोई शंका नहीं कि ये दोनों आश्चर्यक्रम भी गड़बड़ी उत्पन्न कर दी l इस व्यक्ति को तुरन्त  चंगा क्यों नहीं किया गया?

हम नहीं जानते क्यों l किन्तु यीशु जानता था कि उस क्षण इस व्यक्ति को और शिष्यों को जो इस चंगाई  के गवाह थे, क्या ज़रूरत थी l और वह जानता है कि आज हमें क्या चाहिए जिससे उसके साथ हमारे सम्बन्ध और निकट के हो जाएं, l यद्यपि हम हमेशा नहीं समझ पाएंगे, हम भरोसा करें कि परमेश्वर हमारे और हमारे प्रियों के जीवनों में कार्य कर रहा है और वह उसके पीछे चलने के लिए हमें सामर्थ्य, साहस और स्पष्टता देगा l

चौकस देखभाल

 

स्कूल जाने से पूर्व मैंने अपने बेटे से पूछा कि क्या उसने दांत साफ़ किए है l दोबारा पूछते हुए, मैंने उसे सच बोलने का महत्त्व याद दिलाया l मेरे कोमल चेतावनी से बेखबर, उसने मुझसे  गंभीर किन्तु मज़ाकीय तरीके से कहा कि मेरे लिए बाथरूम में सुरक्षा कैमरा लगाना ज़रूरी है l तब मैं खुद जांच पाऊंगा कि मैंने अपने दांत साफ़ किये कि नहीं और फिर झूठ बोलने की परीक्षा नहीं आएगी l

सुरक्षा कैमरा नियम पालन करने में हमारी मदद कर सकता है, लेकिन इसके बाद भी कई स्थान हैं जहां हम जा सकते हैं और कई तरीके हैं जहाँ हम लोगों की आँखों से छिप सकते हैं l यद्यपि हम सुरक्षा कैमरा से बच सकते हैं या उसको धोखा दे सकते हैं, हम यह सोचकर कि हम परमेश्वर की निगाहों से दूर हैं खुद को ही धोखा देंगे l

परमेश्वर पूछता है, “क्या कोई ऐसे गुप्त स्थानों में छिप सकता है, कि मैं उसे न देख सकूँ? (यिर्मयाह 23:24) l उसके प्रश्न में उत्साह और चेतावनी दोनों ही हैं l

चेतावनी यह है कि हम परमेश्वर से छिप नहीं सकते हैं l हम न उससे आगे निकल सकते हैं और न ही उसको धोखा दे सकते हैं l हमारे सारे कार्य उसके सामने हैं l

उत्साह यह है कि पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां हम हमारे स्वर्गिक पिता के चौकस देखभाल से बाहर हैं l हमारे अकेलेपन में भी परमेश्वर हमारे साथ है l चाहे हम कहीं भी जाएं, उस सच्चाई का ज्ञान हमें उसके वचन के प्रति आज्ञाकारी बनने को उत्साहित करें और हमारी देखभाल करनेवाले परमेश्वर की शांति हमें प्राप्त हो l