मेरी एक मित्र है जिसका नाम इडिथ है l उसने मुझे उस दिन के विषय बताया जिस दिन उसने यीशु के पीछे चलने का निर्णय लिया था l

इडिथ धर्म का परवाह नहीं करती थी l किन्तु एक दिन वह अपने घर के निकट स्थित चर्च में गयी क्योंकि वह अपनी असंतुष्ट आत्मा की तृप्ति के लिए कुछ ढूँढ़ रही थी l उस दिन का बाइबल वचन लूका 15:1-2 था, जिसे पास्टर ने किंग जेम्स अनुवाद से पढ़ा : “सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें l पर फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है l”

वहाँ पर यही लिखा था, किन्तु इडिथ ने कुछ और सुना : यह तो पापियों के साथ इडिथ से भी मिलता है l” वह अपने सीट पर सीधे बैठ गयी! आखिरकार उसने अपनी गलती मान ली, किन्तु वह विचार कि यीशु पापियों से मिलता है और उसमें इडिथ भी शामिल है, उसके मन में चल रहा था l वह सुसमाचार पढ़ने लगी, और जल्द ही उसमें विश्वास करके उसकी शिष्या बन गयी l

यीशु के दिनों के धार्मिक लोग इस वास्तविकता से अपमानित होते थे कि वह पापी, और बुरे लोगों के साथ खाता पीता था l उनका नियम ऐसे लोगों के साथ उनको सहभागिता रखने के लिए मना करता था l  यीशु ने मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियमों की परवाह नहीं करता था l उसने दीन-हीन व्यक्तियों को अपने पास बुलाया, चाहे वे कितनी ही दूर चले गए हों l

यह आज भी सच है, और आप जानते हैं : यीशु पापियों को बुलाता है और (आपका नाम शामिल है) l