मेरे कॉलेज के एक प्रोफेसर ने मुझमें आदर्शवाद-प्रेरित विलम्ब(टालमटोल) को देखते हुए मुझे कुछ बुद्धिमान सलाह दी l “सिद्धता को अच्छे का शत्रु मत बनाओ,” उसने कहा, सिद्ध प्रदर्शन का प्रयास उन्नत्ति के लिए आवश्यक जोखिम उठाने से रोकता है l स्वीकार करते हुए कि मेरे काम हमेशा अपूर्ण रहेंगे मुझे उन्नत्ति करने की स्वतंत्रता मिलेंगी l

प्रेरित पौलुस ने खुद को सिद्ध बनाने में अपने प्रयास को त्यागने का एक और ख़ास कारण समझाया : मसीह हमारी ज़रूरत है, यह हमें इसके प्रति अँधा कर सकता है l

पौलुस ने इस सच को कठिन तरीके से सीखा था l कई वर्षों तक परमेश्वर की व्यवस्था को सिद्धता से पालन करने के प्रयास में, जब यीशु से मुलाकात हुई सब कुछ बदल गया  (गलातियों 1:11-16) l पौलुस ने समझ लिया कि यदि परमेश्वर के साथ पूर्ण और सही होने के लिए उसके प्रयास काफी हैं, “तो मसीह का मरना व्यर्थ होता” (2:21) l केवल खुद का इनकार ही, खुद पर भरोसा करना त्यागकर ही,  वह यीशु को अपने जीवन में जीवित महसूस कर सकता था (पद.20) l अपनी अपूर्णता में वह परमेश्वर की पूर्ण सामर्थ्य अनुभव कर सकता था l

इसका अर्थ यह नहीं है कि हम पाप का सामना न करें (पद.17); किन्तु इसका अर्थ यह ज़रूर है कि हम आत्मिक उन्नत्ति के लिए अपनी सामर्थ्य पर भरोसा करना छोड़ दें (पद.20) l

इस जीवन में, हम प्रगति करने वाले बने रहेंगे l किन्तु जब हमारे हृदय सिद्ध परमेश्वर की ज़रूरत के लिए नम्र बने रहेंगे, यीशु वहां निवास करेगा (इफिसियों 3:17) l हम उसमें जड़वत रहकर, उस ज्ञान से परे प्रेम में और गहराई से बढ़ते जाएंगे (पद.19) l