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परमेश्वर आपको देखता है

दो बच्चों की सिंगल (एकल) माँ, मेरी दोस्त अल्मा के लिए सुबह की शुरुआत दुखद हो सकती है। वह कहती हैं, “जब सब कुछ शांत होता है तो चिंता प्रकट होती  है। जब मैं घर के काम करती हूं, मैं अपनी आर्थिक चिंताओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पढ़ाई के बारे में सोचती हूं।” 

जब उसके पति ने उसे छोड़ दिया, तो अल्मा ने अपने बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी खुद उठाई। वह कहती है, “यह मुश्किल है, लेकिन मुझे पता है कि परमेश्वर मुझे और मेरे परिवार को देखता है। वह मुझे दो नौकरियां करने की ताकत देता है, हमारी ज़रूरतों को पूरा करता है, और मेरे बच्चे हर दिन उनके मार्गदर्शन का अनुभव करते हैं।”

मिस्र की एक दासी हाजिरा समझ गई कि परमेश्वर  द्वारा देखे जाने का क्या अर्थ है। अब्राम से गर्भवती होने के बाद वह सारै को तुच्छ समझने लगी थी (उत्पत्ति 16: 4), जिसने बदले में उसके साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे हाजिरा को जंगल में भागना पड़ा । हाजिरा ने खुद को अकेला पाया, वह एक ऐसे भविष्य का सामना कर रही थी जो उसके और उसके अजन्मे बच्चे के लिए अंधकारमय और निराशाजनक लग रहा था। लेकिन  जंगल में  यहोवा का दूत (पद 7) उससे मिला और कहा, “यहोवा ने तुम्हारे दुख के बारे में सुना है” (पद 11”। परमेश्वर के दूत ने हाजिरा को मार्गदर्शन दिया कि क्या करना है, और उसने उसे आश्वासन दिया कि भविष्य में क्या होगा। उससे हम परमेश्वर के नामों में से एक सीखते हैं — अत्ताएलरोई, वह परमेश्वर जो मुझे देखता है (पद 13)।

हाजिरा की तरह आप एक कठिन यात्रा पर हो सकते हैं – खोया हुआ और अकेला महसूस कर सकते हैं । लेकिन याद रखना कि बंजर भूमि में भी परमेश्वर आपको देखते हैं। उसके पास पहुंचें और उस पर भरोसा करें कि वह आपका मार्गदर्शन करेगा।

क्या खोज है!

रेशमा ने एक प्राचीन ड्रेसिंग टेबल को देखा और बिना किसी हिचकिचाहट के उसे खरीद लिया। जब उसने दराज खोली, तो उसे एक सोने की अंगूठी और कुछ पारिवारिक फोटो मिलीं जिनके पीछे नाम, स्थान और तारीख लिखीं थीं। उसने अंगूठी को देखा और वह इसे उसके मालिक को वापस करने से अपने आप को रोक न सकी । उसने फेसबुक का इस्तेमाल किया और उसे फोटो में एक सदस्य का पता चल गया। जब उसने अंगूठी लौटाई, तो मालिक ने कहा कि अंगूठी उसके परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही थी और वह उस अंगूठी को पाकर खुश थी जिसे एक बार खो दिया था।

2 राजा 22:8 में, हम पढ़ते हैं कि हिल्किय्याह ने एक असाधारण खोज की जब उसने व्यवस्था की पुस्तक को यहोवा के भवन में पाया। राजा योशिय्याह ने मंदिर की मरम्मत करने का निर्देश दिया (पद 5), राजा के सचिव ने व्यवस्थाविवरण की पुस्तक को पाया। जब राजा ने व्यवस्था की पुस्तक के वचनों को सुना, तो वह बहुत दुखी हुआ और बहुत परेशान हुआ (पद 11)। यहूदा में मंदिर की तरह, परमेश्वर और उसके द्वारा पवित्रशास्त्र को पढ़ना और उसकी आज्ञाकारिता को लोगों द्वारा उपेक्षित किया गया था। पश्चाताप में, राजा ने मंदिर को मूर्तियों और ऐसी किसी भी चीज़ से साफ़ करवा दिया जो परमेश्वर को अप्रसन्न कर सकती थी क्योंकि उसने अपने राष्ट्र के लिए सुधारों की स्थापना की थी (23: 1–2)।

आज, हमारी बाइबल में छियासठ पुस्तकें हैं जो परमेश्वर की बुद्धि और निर्देश को प्रकट करती हैं–व्यवस्थाविवरण सहित। जब हम उन्हें पढ़ते और सुनते हैं, तो पवित्र आत्मा हमारे दिमागों को बदल दें और हमारे तरीकों को सुधारें। आज पवित्रशास्त्र की जीवन बदलने वाली कहानी को गहराई से पढ़ें और जीवन भर के लिए खोज करने के लिए ज्ञान प्राप्त करें!

 

आप कैसे है?

क्लारा अपने जीवन के अंतिम समय में थी, और वह यह जानती थी। जब वह अपने अस्पताल के कमरे के बिस्तर पर लेटी थी, उसके सर्जन और युवा प्रशिक्षुओं के एक समूह ने कमरे में प्रवेश किया। अगले कई मिनटों के लिए, डॉक्टर ने क्लारा को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि वह उनके प्रशिक्षुओं को उसकी अवसानक (टर्मिनल) स्थिति के बारे में बता रहे थे। अंत में, वह उसकी ओर मुड़े और पूछा, "और आप कैसी हो?" क्लारा कमजोर रूप से मुस्कुराई और समूह को यीशु में अपनी आशा और शांति के बारे में गर्मजोशी से बताया।

लगभग दो हज़ार साल पहले, यीशु का पस्त, नग्न शरीर, दर्शकों की भीड़ के सामने अपमान सहित सूली पर लटका दिया गया था। क्या उन्होंने अपने सताने वालों को कोसा? नहीं। "यीशु ने कहा, 'हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं" (लूका 23:34)। जबकि उसे झूठा दोषी ठहराया गया और सूली पर चढ़ाया, पर उन्होंने अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना की। बाद में, उन्होंने एक और अपमानित व्यक्ति, एक अपराधी, से कहा कि — उस व्यक्ति के विश्वास के कारण — वह आज ही उसके साथ "स्वर्गलोक में" होगा (पद 43)। अपने दर्द और शर्म में, यीशु ने दूसरों के लिए प्रेम के कारण आशा और जीवन के शब्दों को साझा करना चुना।

जब क्लारा ने अपने सुनने-वालों के साथ मसीह को साझा करना समाप्त किया, उसने प्रश्न को वापस डॉक्टर के सामने रखा। उसने नम्रता से उनकी आंसुओं से भरी आँखों में देखा और पूछा, "और तुम कैसे हो?" मसीह के अनुग्रह और शक्ति से, उसने जीवन के शब्दों को साझा किया — उसके लिए और कमरे में दूसरों के लिए प्रेम और चिंता दिखाते हुए। आज या आने वाले दिनों में हम किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करें, आइए हम परमेश्वर पर भरोसा करें कि वह जीवन के प्रेमपूर्ण वचनों को बोलने का साहस प्रदान करेगा।

एक गधे पर सवार राजा

वह रविवार का दिन था─जिसे हम अब खजूर का रविवार कहते हैं। इसमें कोई संशय नहीं कि यह यीशु मसीह का यरूशलेम में पहली बार प्रवेश नहीं था। एक धर्मनिष्ठ यहूदी होने के नाते वह इस शहर में हर वर्ष तीन महापर्वों के लिए जाता रहा होगा(लूका 2:41-42; यूहन्ना 2:13; 5:1) पिछले 3 वर्षों में, यीशु ने यरूशलेम में सेवा और लोगों को शिक्षा दी थी। परंतु इस रविवार  को उसका शहर में आना मौलिक रूप से भिन्न था l 

उस समय यरूशलेम में एक छोटे गधे पर सवारी करना जब हज़ारों उपासक शहर में आ रहे थे, यीशु आकर्षण का केंद्र था (मत्ती 21:9-11)। जबकि पिछले 3 वर्षों में उसने सबके सामने अपने आपको कम प्रगट किया तो क्यों अब उसने हजारों लोगों के सामने प्रमुखता का स्थान प्राप्त करना चाही? अपनी मृत्यु से मात्र 5 दिन पहले वह लोगों द्वारा स्वयं को राजा कहलवाना क्यों स्वीकार करना चाहता था?

मत्ती कहता है कि 500 वर्ष पुरानी भविष्यवाणी की पूर्णता के लिए ऐसा हुआ (मत्ती 21:4-5) कि यरूशलेम में परमेश्वर का चुना हुआ राजा “धर्मी और उद्धार पाया हुआ, [फिर भी] दीन और गधे . . . पर चढ़ा हुआ आएगा” (जकर्याह 9:9; और उत्पत्ति 49:10-11 भी देखें)।

एक जयवंत राजा का इस तरह किसी शहर में प्रवेश करना वास्तव में एक असाधरण तरीका था l विजेता राजा आमतौर पर बहुत बड़े घोड़ों पर सवार होकर शहर में प्रवेश करते थे l परंतु यीशु एक जंगी घोड़े पर सवार होकर नहीं आया l यह प्रगट करता है कि यीशु किस प्रकार का राजा था। वह बड़ी दीनता और नम्रता के साथ आया l यीशु युद्ध करने नहीं परंतु शांति के लिए आया, परमेश्वर और हमारे बिच शांति स्थापित करने के लिए आया (प्रेरितों 10:36; कुलुस्सियों 1:20)।

वास्तविक आतिथ्य

अतिथि के रूप में आप अक्सर तमिलनाडु के कई घरों में यह सुनेंगे l यह तमिल लोगों का अपने मेहमान के प्रति देखभाल और नेकी दिखाने का तरीका है। आपका उत्तर चाहे कुछ भी हो, लेकिन वे हमेशा आपको कुछ खाने के लिए या कम से कम एक गिलास पानी या कुछ पीने के लिए देंगे l तमिल लोगों का मानना है कि सच्ची नेकी केवल आदर्श अभिवादन नहीं है लेकिन वास्तविक आतित्थ्य प्रगट करने के लिए शब्दों के पार भी जाना है l  

रेबेका भी नेक बनने के विषय सब कुछ जानती थी l उसके दैनिक कार्य में शहर के बाहर कुएं से जल भरकर भारी घड़े को घर ले जाना भी शामिल था l जब अब्राहम के सेवक ने, जो अपनी लम्बी यात्रा के कारण बहुत प्यासा था, उसके घड़े से थोड़ा पानी माँगा, वह उसे जल देने में  हिचक महसूस नहीं की(उत्पत्ति 24:17-18) l 

लेकिन रिबका ने इससे भी अधिक की l जब उसने देखा कि उसके ऊँट भी प्यासे हैं, वह उनके लिए और जल लाने के लिए तैयार हुयी (पद.19-20) l वह सहायता करने में हिचकिचायी नहीं, यदि उसे एक अतिरिक्त बार (या उससे अधिक बार) भी भारी घड़ा लेकर उस कुएं पर जाना पड़ता l  

कई लोगों के लिए जीवन कठिन है और अक्सर दया का एक व्यवहारिक भाव उनकी आत्मा को प्रोत्साहित एवं उठा सकता है l परमेश्वर के प्रेम का वाहिका होकर एक सशक्त उपदेश देना या एक कलीसिया रोपना हमेशा नहीं होता l कभी-कभी, यह केवल किसी को एक गिलास पानी देना हो सकता है l 

एक अच्छा काम

किशोर के रूप में, स्पर्जन ने परमेश्वर के साथ कुश्ती की l वह चर्च जाते हुए बड़े हुए थे परंतु वहां जो उपदेश होते थे वे उनको अरोचक और अर्थहीन लगते थे l उनके लिए परमेश्वर पर विश्वास करना एक संघर्ष था, उनके अपने शब्दों में, “चार्ल्स, ने विरोध और विद्रोह किया l” एक रात एक भयंकर बर्फानी तूफ़ान ने उन्हें एक छोटे मैथोडिस्ट चर्च में आश्रय लेने को विवश किया l चर्च के पासवान का उपदेश व्यक्तिगत रूप से उनकी ओर निर्देशित महसूस हुआ l उसी क्षण, परमेश्वर कुश्ती मैच जीत गया, और चार्ल्स ने अपना हृदय यीशु को दे दिया 

स्पर्जन ने बाद में लिखा, “मेरा मसीह के साथ आरम्भ करने से बहुत पहले, उसने मेरे साथ आरम्भ किया l” वास्तव में, परमेश्वर के साथ हमारा जीवन उद्धार पाने के क्षण से आरंभ नहीं होता है। भजनकार इस प्रकार लिखता है कि परमेश्वर ने हमारे भीतरी अंगों को बनाते हुए  “[हमें] माता के गर्भ में रचा” (भजन 139:13) l पौलुस प्रेरित लिखते हैं, “परन्तु परमेश्वर की, जिसने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया और अपने अनुग्रह से बुला लिया” (गलातियों 1:15) l जब हमारा उद्धार होता है तब परमेश्वर हममें काम करना बंद नहीं करता: “जिस ने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलिप्पियों 1:6)।

हम सब वे कार्य हैं जो एक प्रेमी परमेश्वर के हाथ में प्रगति पर हैं l वह हमें हमारे विद्रोही द्वंद से निकाल कर अपने स्नेही गोद में ले लेता है। परंतु उस समय हमारे साथ उसका उद्देश्य केवल एक आरम्भ है l “क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस नें अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है”(फिलिप्पियों 2:13)। विश्राम निश्चित है, हम उसके अच्छे कार्य हैं बावजूद इसके कि हमारी उम्र कितनी है या हम जीवन के किस पड़ाव पर हैं l

सेवा करने हेतु एक साथ रचे गए

एक ग्रामीण क्षेत्र में, एक खलिहान बनाना एक सामाजिक कार्यक्रम है l एक किसान के परिवार को एक खलियान बनाने के लिए बहुत महीने लगेंगे परंतु गांव वाले साथ काम करके उसे जल्दी पूरा कर देते हैं l समय से पहले लकड़ियों का इंतजाम किया जाता है, औजारों को लाया जाता है l एक नियुक्त दिन में बहुत सबेरे पूरा गांव एक जगह एकत्र होता है, काम बांटे जाते हैं, और  एक साथ मिलकर खलिहान बना दिया जाता है─कभी-कभी एक दिन में l 

यह कलीसिया के लिए परमेश्वर के दर्शन की एक अच्छी तस्वीर है जिसमें हमारी भूमिका है। बाइबल कहती है “तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो” (1 कुरिन्थियों 12:27) परमेश्वर ने हम में से प्रत्येक जन को विभिन्न रूप से योग्य बनाया है और कार्य को विभाजित किया है जिसमें हममें से प्रत्येक “एक साथ गठकर . . . ठीक ठीक कार्य” करते हैं ( इफिसियों 4:16) l हम समाज में “एक दूसरे का भार” उठाने के लिए प्रोत्साहित किये गए हैं (गलतियों 6:2)।

फिर भी हम इसे अक्सर अकेले ही करना चाहते हैं। हम परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में रखने के लिए, अपनी आवश्यकताओं को अपने तक ही सीमित रखते हैं। और हम दूसरों की जरूरतों के बोझ को उठाने के लिए अपने कंधे को उपलब्ध करने में असमर्थ रहते हैं l परंतु परमेश्वर चाहता है कि हम अन्य लोगों से संपर्क करें। वो जानता है कि जब हम दूसरों की सहायता मांगते हैं और उनकी आवश्यकता के लिए प्रार्थना करते हैं तो खूबसूरत चीजें होती हैं l 

हम एक दूसरे पर आश्रित होकर ही अनुभव कर सकते हैं कि परमेश्वर के पास हमारे लिए क्या है और वह उसे कैसे हमारे जीवन में अद्भुत तरीके से पूरा करता है─जैसे एक दिन में एक खलिहान का निर्माण।

जब आप आगे न बढ़ सकें

2006 में, मेरे पिताजी को एक न्यूरोलॉजिकल(तंत्रिका सम्बन्धी) बिमारी का पता चला था, जिसने उनकी स्मृति, वाणी, और शरीर की गतिविधियों पर नियंत्रण छीन लिया । वह 2011 में शय्याग्रस्त(bedridden) हो गए और तब से मेरी माँ घर पर निरंतर उनकी देखभाल करती है । उनकी बिमारी का आरम्भ बहुत बुरा समय था । मैं भयभीत था : मैं एक बीमार व्यक्ति की देखभाल के बारे में कुछ नहीं जानता था, और मैं अपनी वित्तीय स्थिति और अपनी माँ की सेहत के विषय चिंतित था । 

विलापगीत 3:22 के शब्दों ने मुझे कई सुबह उठने में मदद की जब प्रकाश मेरे हृदय की स्थिति के समान निराशाजनक था : “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है ।” “मिट नहीं गए” के लिए इब्री शब्द का अर्थ है “पूरी तरह से उपयोग हो जाना” या “अंत में पहुँच जाना ।”

ईश्वर का महान प्रेम हमें दिन का सामना करने के लिए उठने में सक्षम बनाता है । हमारे परीक्षण भारी लग सकते हैं, लेकिन हम उनके द्वारा नष्ट नहीं किए जाएंगे क्योंकि ईश्वर का प्यार कहीं अधिक है!

कई बार मैं यह याद कर सकता हूँ जब परमेश्वर ने मेरे परिवार के प्रति अपना वफादार, प्रेमपूर्ण तरीके दिखाए हैं । मैंने सम्बन्धियों और मित्रों की दयालुता, डॉक्टरों की समझदारी से परामर्श, वित्तीय प्रबंध, और हमारे हृदयों में याद दिलाने वाले कि──एक दिन──मेरे पिताजी फिर से स्वर्ग में सम्पूर्ण होंगे, इन बातों में उसका प्रावधान देखा ।  

यदि आप अँधेरे समय से गुज़र रहे हैं, तो उम्मीद मत खोइए । आप जिसका सामना करेंगे उससे आप भस्म नहीं होंगे । आप के लिए ईश्वर के वफादार  प्यार और प्रबंध पर भरोसा रखें । 

कुछ भी अलग नहीं कर सकता है

जब प्रिस(Pris) के पिता ने, जो एक पास्टर थे, इंडोनेशिया में, एक छोटे द्वीप पर एक अग्रणी मिशन का नेतृत्व करने के लिए परमेश्वर की बुलाहट का उत्तर दिया, प्रिस के परिवार ने अपने को एक टूटी झोपड़ी में पाया जो एक समय पशुशाला के रूप में उपयोग होता था । प्रिस को याद है कि परिवार फर्श पर बैठ कर भजन गाते हुए क्रिसमस मना रहा था जबकि छप्पर से बारिश का पानी टपक रहा था । लेकिन उसके पिता ने उसे याद दिलाया, “प्रिस, सिर्फ इसलिए कि हम गरीब हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि ईश्वर हमसे प्यार नहीं करता है ।”

कुछ लोग ईश्वर द्वारा धन्य जीवन को देख सकते हैं जो कि धन, स्वास्थ्य और दीर्घायु से भरा है । इसलिए कठिनाई के समय में, उन्हें आश्चर्य हो सकता है कि क्या ईश्वर अभी भी उनसे प्यार करता है । लेकिन रोमियों 8:31-39 में, पौलुस हमें याद दिलाता है कि कुछ भी हमें यीशु के प्रेम से अलग नहीं कर सकता──जिसमें क्लेश, संकट, सताव, और अकाल शामिल है (पद.35) । यह एक वास्तविक आशीषमय जीवन के लिए आधारशिला है । परमेश्वर ने अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए मरने के लिए भेजकर अपना प्रेम प्रगट किया (पद.32) । मसीह मृत्यु में से जी उठा और अब पिता के “दाहिनी ओर” बैठा है, और हमारे लिए निवेदन करता है (पद.34) । 

दुःख के समय में, हम आराम देनेवाली सच्चाई को थामे रह सकते हैं कि हमारा जीवन उसमें जड़वत है जो मसीह ने हमारे लिए किया है । कुछ भी नहीं──”न मृत्यु न जीवन . . . न कोई और सृष्टि” (पद.38-39)──हमें उसके प्रेम से अलग कर सकती है । जो भी हमारी परिस्थिति है, जो भी हमारी कठिनाई है, हम याद रखें कि परमेश्वर हमारे साथ है और कुछ भी हमें उससे अलग नहीं कर सकती है ।