वह रविवार का दिन था─जिसे हम अब खजूर का रविवार कहते हैं। इसमें कोई संशय नहीं कि यह यीशु मसीह का यरूशलेम में पहली बार प्रवेश नहीं था। एक धर्मनिष्ठ यहूदी होने के नाते वह इस शहर में हर वर्ष तीन महापर्वों के लिए जाता रहा होगा(लूका 2:41-42; यूहन्ना 2:13; 5:1) पिछले 3 वर्षों में, यीशु ने यरूशलेम में सेवा और लोगों को शिक्षा दी थी। परंतु इस रविवार  को उसका शहर में आना मौलिक रूप से भिन्न था l 

उस समय यरूशलेम में एक छोटे गधे पर सवारी करना जब हज़ारों उपासक शहर में आ रहे थे, यीशु आकर्षण का केंद्र था (मत्ती 21:9-11)। जबकि पिछले 3 वर्षों में उसने सबके सामने अपने आपको कम प्रगट किया तो क्यों अब उसने हजारों लोगों के सामने प्रमुखता का स्थान प्राप्त करना चाही? अपनी मृत्यु से मात्र 5 दिन पहले वह लोगों द्वारा स्वयं को राजा कहलवाना क्यों स्वीकार करना चाहता था?

मत्ती कहता है कि 500 वर्ष पुरानी भविष्यवाणी की पूर्णता के लिए ऐसा हुआ (मत्ती 21:4-5) कि यरूशलेम में परमेश्वर का चुना हुआ राजा “धर्मी और उद्धार पाया हुआ, [फिर भी] दीन और गधे . . . पर चढ़ा हुआ आएगा” (जकर्याह 9:9; और उत्पत्ति 49:10-11 भी देखें)।

एक जयवंत राजा का इस तरह किसी शहर में प्रवेश करना वास्तव में एक असाधरण तरीका था l विजेता राजा आमतौर पर बहुत बड़े घोड़ों पर सवार होकर शहर में प्रवेश करते थे l परंतु यीशु एक जंगी घोड़े पर सवार होकर नहीं आया l यह प्रगट करता है कि यीशु किस प्रकार का राजा था। वह बड़ी दीनता और नम्रता के साथ आया l यीशु युद्ध करने नहीं परंतु शांति के लिए आया, परमेश्वर और हमारे बिच शांति स्थापित करने के लिए आया (प्रेरितों 10:36; कुलुस्सियों 1:20)।