जब प्रिस(Pris) के पिता ने, जो एक पास्टर थे, इंडोनेशिया में, एक छोटे द्वीप पर एक अग्रणी मिशन का नेतृत्व करने के लिए परमेश्वर की बुलाहट का उत्तर दिया, प्रिस के परिवार ने अपने को एक टूटी झोपड़ी में पाया जो एक समय पशुशाला के रूप में उपयोग होता था । प्रिस को याद है कि परिवार फर्श पर बैठ कर भजन गाते हुए क्रिसमस मना रहा था जबकि छप्पर से बारिश का पानी टपक रहा था । लेकिन उसके पिता ने उसे याद दिलाया, “प्रिस, सिर्फ इसलिए कि हम गरीब हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि ईश्वर हमसे प्यार नहीं करता है ।”

कुछ लोग ईश्वर द्वारा धन्य जीवन को देख सकते हैं जो कि धन, स्वास्थ्य और दीर्घायु से भरा है । इसलिए कठिनाई के समय में, उन्हें आश्चर्य हो सकता है कि क्या ईश्वर अभी भी उनसे प्यार करता है । लेकिन रोमियों 8:31-39 में, पौलुस हमें याद दिलाता है कि कुछ भी हमें यीशु के प्रेम से अलग नहीं कर सकता──जिसमें क्लेश, संकट, सताव, और अकाल शामिल है (पद.35) । यह एक वास्तविक आशीषमय जीवन के लिए आधारशिला है । परमेश्वर ने अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए मरने के लिए भेजकर अपना प्रेम प्रगट किया (पद.32) । मसीह मृत्यु में से जी उठा और अब पिता के “दाहिनी ओर” बैठा है, और हमारे लिए निवेदन करता है (पद.34) । 

दुःख के समय में, हम आराम देनेवाली सच्चाई को थामे रह सकते हैं कि हमारा जीवन उसमें जड़वत है जो मसीह ने हमारे लिए किया है । कुछ भी नहीं──”न मृत्यु न जीवन . . . न कोई और सृष्टि” (पद.38-39)──हमें उसके प्रेम से अलग कर सकती है । जो भी हमारी परिस्थिति है, जो भी हमारी कठिनाई है, हम याद रखें कि परमेश्वर हमारे साथ है और कुछ भी हमें उससे अलग नहीं कर सकती है ।