एक साधारण ग्रीष्मकालीन प्रकृति की सैर के रूप में जो कुछ शुरू हुआ वह हम दोनों पति-पत्नी के लिए कुछ विशेष बन गया जब हम अपने गृह नगर की नदी के किनारे लम्बी दूरी तक पैदल चले । हमने छोटी-छोटी लहरों में एक लम्बे लट्ठे पर कुछ परिचित “मित्र” देखे──पांच या छः  बड़े कछुए जो धूप सेंक रहे थे । हम दोनों इन रेंगनेवाले जंतुओं के अद्भुत दृश्य देखकर मुस्कुराए, जिन्हें हम कई महीनों से नहीं देखे थे । हम खुश थे कि हम लौटे थे, और हम परमेश्वर की भव्य सृष्टि में आनंद के एक क्षण का उत्सव मना पाए । 

परमेश्वर ने अय्यूब को एक बढ़िया प्रकृति सैर पर ले गया (अय्यूब 38 देखें । उस परेशान व्यक्ति को अपनी स्थिति के सम्बन्ध में परमेश्वर से एक उत्तर चाहिए था (पद.1) । और उसने परमेश्वर की सृष्टि के द्वारा उसके साथ अपनी यात्रा पर जो कुछ देखा उससे उसकी ज़रूरत के अनुसार प्रोत्साहन मिल गया । 

अय्यूब के आश्चर्य की कल्पना कीजिये जब परमेश्वर ने उसे अपने संसार की शानदार अभिकल्पना की याद दिलायी । अय्यूब को प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक संसार का विवरण मिला : “उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गयी──जब कि भोर के तारे एक संग आनंद से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?” उसे परमेश्वर द्वारा समुद्रों की सीमाएँ निर्धारित करने के बारे में एक भूगोल पाठ मिला (पद.11) । 

सृष्टिकर्ता ने अय्यूब को निरंतर उसके द्वारा बनाया गया प्रकाश, हिम जो वह बनाता है, और वह वर्षा जिसका प्रबंध वह चीजों के उगने और बढ़ने के लिए करता है की सूचना दी (पद.19-28) । अय्यूब ने नक्षत्रों के विषय भी सुना जिसने उन्हें अन्तरिक्ष में छितराया था (पद.31-32) । 

अंततः, अय्यूब ने प्रत्युत्तर दिया, “मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है” (42:2) । जब हम प्राकृतिक संसार का अनुभव करते हैं हम अपने बुद्धिमान और अद्भुत सृष्टिकर्ता के आदर में खड़े हों ।