मैं उन लोगों की प्रशंसा करती हूँ जो उन दैनिकी में प्रार्थना निवेदन लिखते हैं जो दैनिक उपयोग से फट जाते हैं, जो प्रत्येक प्रार्थना निवेदन और प्रशंसा का रिकॉर्ड रखते हुए विश्वासयोग्यता से अपनी सूची को अपडेट/सुव्यवस्थित रखते हैं l मैं उनसे प्रेरित हूँ जो दूसरों के साथ प्रार्थना के लिए इकठ्ठा होते हैं और जिनके झुके हुए घुटनों से उनके पलंग के निकट रखी दरी घिस जाती हैं l वर्षों से, मैंने उनकी शैली अपनाने का, सिद्ध प्रार्थना जीवन का अनुसरण करने का और लोगों से कहीं अधिक स्पष्टता से वाक्पटुता की नकल करने की कोशिश की है l मैंने प्रार्थना करने का सही तरीका सीखने की इच्छा रखते हुए, जो मेरे विचार से रहस्य था उसको समझने का प्रयास किया l
अंततः, मैंने सीख लिया है कि हमारा प्रभु ऐसी प्रार्थना चाहता है जिसका आरंभ और अंत दीनता है (मत्ती 6:5) l वह हमें घनिष्ट संवाद के लिए आमंत्रित करके हमारी सुनने का वादा करता है (पद.7) l वह हमें निश्चित करता है कि प्रार्थना एक वरदान है, उसके ऐश्वर्य का आदर करने का अवसर (पद.9-10), उसके प्रबंध में भरोसा करने का प्रदर्शन (पद.11), और उसकी क्षमा और मार्गदर्शन में हमारी सुरक्षा की निश्चयता (पद.12-13) l
परमेश्वर हमें भरोसा देता है कि वह हमारी प्रार्थनाओं में उच्चारित और अनुच्चारित हर एक शब्द के साथ-साथ, जो प्रार्थनाएँ आँसुओं के रूप में दिखाई देती हैं, उनको भी सुनता और उनकी भी चिंता करता है l जब हम परमेश्वर और हमारे लिए उसके प्रेम में अपना भरोसा जताते हैं, हम दीन हृदय से प्रार्थना करने के विषय निश्चित होते हैं जो उसके प्रति समर्पित है और उस पर निर्भर है और जो हमेशा प्रार्थना करने का सही तरीका है l
अपने प्रेमी उद्धारकर्ता और प्रभु, यीशु को पुकारना ही प्रार्थना करने का सही तरीका है l