जब मुझे अठारह वर्ष की आयु में सेना में शामिल किया गया, क्योंकि यह सिंगापुर के सभी पुरुषों के लिए अनिवार्य है, मैंने ईमानदारी से आसान नियुक्ति के लिए प्रार्थना की l शायद एक लिपिक या ड्राईवर l ख़ास तौर से मजबूत नहीं होने के कारण, मेरी आशा थी कि मुझे युद्ध प्रशिक्षण की कठोरता से नहीं गुज़ारना पड़ेगा l किन्तु एक शाम बाइबल पढ़ते समय, एक पद स्पष्ट दिखाई दिया : “मेरा अनुग्रह तुम्हारे लिए पर्याप्त है . . . “ (2 कुरिन्थियों 12:9) l
मेरा दिल बैठ गया – किन्तु ऐसा होना नहीं चाहिए था l परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली l एक कठिन जिम्मेदारी मिलने पर भी, वह मेरे लिए प्रबंध करेगा l
फिर मेरी नियुक्ति बख्तरबंद पैदल सैनिक के रूप में हुयी, मुझे ऐसे काम करने पड़े जो मुझे पसंद नहीं थे l मैं अब पीछे मुड़कर, परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि परमेश्वर ने मेरी इच्छा पूरी नहीं की l प्रशिक्षण ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत किया और वयस्कता में प्रवेश करने में दृढ़ किया l
यशायाह 25:1-5 में, इस्राएल का दण्ड और तत्पश्चात शत्रुओं से छुटकारे की घोषणा करने के बाद, नबी परमेश्वर की योजनाओं की प्रशंसा करता है l यशायाह इस बात पर ध्यान देता है कि ये सभी “आश्चर्यकर्म,” “प्राचीन काल से” नियोजित हैं (पद.1), फिर भी इसमें कठिन समय सम्मिलित है l
परमेश्वर का इनकार सुनना कठिन हो सकता है, और जब हम कुछ अच्छे के लिए प्रार्थना करते हैं तब और भी कठिन – जैसे किसी को संकट से छुड़ाने के लिए l ऐसे समय में हमें परमेश्वर की अच्छी योजनाओं को थामे रहना है l शायद हम नहीं समझेंगे क्यों, किन्तु उसके प्रेम, भलाई, और विश्वासयोग्यता में भरोसा करते रहें l
जब परमेश्वर इनकार करता है, उसके पास एक योजना है l उसपर भरोसा करते रहें!