माह: नवम्बर 2018

उस क्षण का प्रभु

कुछ समय पूर्व मैं अपने पुत्र के घर से तीन घंटे की दूरी पर एक निर्माण परियोजना में काम करता था l काम पूरा होने में अपेक्षाकृत अधिक दिन लग गए, और हर सुबह मेरी प्रार्थना होती थी हम सूर्यास्त तक काम ख़त्म कर लेंगे l किन्तु प्रत्येक शाम करने के लिए और काम निकल आते थे l
मैं सोचने लगा क्यों l क्या विलम्ब के लिए कोई कारण हो सकता था? अगली सुबह एक उत्तर मिला l औज़ार उठाते समय एक अपरिचित का फोन आया जिसे बहुत जल्दी थी : तुम्हारी बेटी के साथ दुर्घटना हो गयी है l तुम्हें तुरंत आना है l"
वह मेरे पुत्र के घर के निकट ही रहती थी, इसलिए मुझे उसके पास पहुँचने में केवल चौदह मिनट लगे l यदि मैं अपने घर पर होता, मुझे पहुँचने में तीन घंटे लगे होते l मैं एम्बुलेंस के साथ-साथ गया और सर्जरी से पहले उसे ढाढ़स दिया l जब मैं उसके हाथों को थामे हुए था मैं समझ गया कि यदि मेरी परियोजना विलंबित नहीं होती, मैं वहाँ नहीं होता l
हमारे क्षण परमेश्वर के हैं l इस तरह का अनुभव उस स्त्री का था जिसके पुत्र को परमेश्वर ने एलिशा नबी द्वारा जिलाया था (2 राजा 4:18-37) l उसने अकाल के कारण देश छोड़ दिया था और वर्षो बाद लौटकर राजा से अपनी भूमि मांगी l ठीक उसी समय राजा नबी के सेवक गहेजी से बात कर रहा था l "जब वह [गहेजी] राजा से यह वर्णन कर ही रहा था कि एलिशा ने . . . स्त्री के बेटे को . . . जिलाया था" वह स्त्री अन्दर आ गयी (8:5) l उसका अनुरोध पूरा किया गया l
हम नहीं जानते अगला क्षण क्या लेकर आएगा, किन्तु परमेश्वर हर एक स्थिति को भलाई में बदल देता है l परमेश्वर हमें आज हमारे लिए उसकी नियुक्तियों में उम्मीद से चलने के लिए अनुग्रह दे l

एक मजबूत आधार

पिछली गर्मियों में हम दोनों पति-पत्नी फालिंग वॉटर(Fallingwater) घूमने गए, ग्रामीण पेन्सिल्वेनिया में एक घर जिसे वास्तुकार फ्रैंक लोयड राइट ने 1935 में अभिकल्पित किया था l मैंने ऐसा कभी नहीं देखा है l राइट जैविक/कार्बोनिक रूप से परिदृश्य से उदित होनेवाले घर को बनाना चाहता था, मानो वह वहीं पर विकसित हुआ हो - और उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया l उसने घर को वहाँ मौजूद एक झरने के चारोंओर निर्मित किया, और निकट के चट्टान का किनारा उसके शैली दर्पण (style mirrors) के रूप में l हमारे गाइड ने हमें समझया कि निर्माण किस प्रकार सुरक्षित किया गया है : उसने बताया, "घर का सम्पूर्ण सीधा भाग शिलाखंडों पर आधारित है l"
उसके शब्दों को सुनकर, मैंने यीशु के शब्दों को याद किया जो उसने शिष्यों से कहा था l यीशु ने पहाड़ी उपदेश में उनको बताया कि उसकी शिक्षा उनके जीवनों में निश्चित आधार होगी l यदि वे उसके शब्दों को सुनकर उसका अभ्यास करेंगे, वे किसी भी तूफ़ान का सामना कर पाएंगे l इसके विपरीत, जो सुनकर उसपर नहीं चलेंगे, बालू पर घर बनाने वाले की तरह होंगे (मत्ती 7:24-27) l बाद में, पौलुस ने भी यही बात कही, कि मसीह नींव है, और हमें उसी पर टिकाऊ निर्माण करना है (1 कुरिन्थ्यों 3:11) l
जब हम यीशु की बातें सुनकर उनका अभ्यास करते हैं, हम अपने जीवनों को अटल चट्टान के बुनियाद पर बनाते हैं l शायद हमारे जीवन फालिंग वॉटर(Fallingwater), की तरह, सुन्दर और चट्टान पर टिके रहने वाला हो l

सूखी घास डालना

जब मैं कॉलेज में था, मैंने कोलोराडो में एक खेत पर गर्मियों में काम किया l एक शाम, खेत की लवाई करते हुए एक लम्बे दिन के अंत में थका और भूखा, मैंने ट्रैक्टर को यार्ड में घुसेड़ दिया l खुद को तेज़ निशानेबाज़ मानकर, मैंने स्टीयरिंग व्हील को दृढ़ता से बाईं ओर घुमाया, बाईं ब्रेक को दबाया, और ट्रैक्टर मोड़ दिया l
हँसिया नीचे था जिससे निकट रखे 500 गैलन डीजल टैंक के नीचे के पाँव खिसक गए l टैंक बड़ी आवाज़ के साथ धरती पर गिरा, उसके जोड़ खुल गए, और पूरा तेल बह गया l
मैं ट्रैक्टर से उतरा, अस्पष्ट आवाज़ में क्षमा मांगी, और - इसलिए कि मेरे मन में वह पहली बात आयी थी - बिना वेतन के पूरी गर्मी काम करने का प्रस्ताव रखा l
वृद्ध किसान एक पल के लिए उस बर्बादी को देखता रहा और घर की ओर मुड़ा l "चलो चलकर रात्रि भोजन खाते हैं," उसने कहा l
यीशु की बतायी हुयी कहानी का एक भाग मेरे मन में आया - एक युवा की कहानी जिसने एक बहुत ही ख़राब काम किया था : "पिता, मैंने स्वर्ग और आपके विरुद्ध पाप किया है," वह चिल्लाया l उसने आगे और बोलने की कोशिश की, " मुझे अपने एक मजदुर के समान रख लें," किन्तु अपने मुँह से सम्पूर्ण शब्दों को उच्चारित करने से पहले उसके पिता ने हस्तक्षेप किया l संक्षेप में, उसने कहा, "चलो चलकर रात्रि भोजन खाते हैं" (लूका 15:17-24) l
परमेश्वर का अनुग्रह ऐसा ही है l

परमेश्वर यहाँ है

हमारे घर में एक स्मृति-पट्टिका पर "पुकारे या न पुकारे, परमेश्वर उपस्थित है," अंकित है l उसका आधुनिक संस्करण कुछ इस प्रकार हो सकता है, "स्वीकारें या न स्वीकारें, परमेश्वर यहाँ है l"
ई.पु. आठवीं शताब्दी के आखरी भाग(755-715) में रहनेवाला पुराना नियम का नबी होशे ने, इब्री राष्ट्र को समरूप शब्दों में संबोधित किया l वह इस्राएलियों से परमेश्वर को स्वीकारने हेतु "यत्न"(होशे 6:3) करने को उत्साहित करता है क्योंकि वे उसे भूल गए थे (4:1) l जैसे-जैसे लोग परमेश्वर की उपस्थिति भूल गए, वे उससे दूर होते गए (पद.12) और जल्द ही उनके विचारों में परमेश्वर नहीं रह गया (देखें भजन 10:4) l
परमेश्वर को स्वीकारने के लिए होशे की सरल लेकिन गहन अंतर्दृष्टि हमें याद दिलाती है कि वह आनंद और संघर्ष दोनों में, हमारे जीवन में निकट है और काम करता है l
परमेश्वर को स्वीकार करने का अर्थ हो सकता है कि जब हम काम में पदोन्नति प्राप्त करते हैं, तो हम मानते हैं कि परमेश्वर ने हमें समय पर और बजट के भीतर अपना काम पूरा करने की अंतर्दृष्टि दी l अगर हमारा आवास आवेदन ख़ारिज हो जाता है, तो परमेश्वर को स्वीकारने से हमें सहायता मिलती है जब हम उसे हमारी भलाई के लिए काम करने के लिए भरोसा करते हैं l
यदि हमें हमारे मन का कॉलेज नहीं मिलता है, हम परमेश्वर को स्वीकार करें वह हमारे साथ है और अपनी निराशा में भी उसकी उपस्थिति में सुख प्राप्त करें l रात्रि भोजन खाते समय, परमेश्वर को स्वीकारना उसके द्वारा भोजन की सामग्रियों का प्रबंधन और भोजन तैयार करने के लिए रसोई की याद दिलाता है l
जब हम परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, हम अपने जीवनों में बड़ी या छोटी सफलता और उदासी दोनों में ही उसकी उपस्थिति को याद करते हैं l

शांत गवाह

एमी एक बंद देश में रहती है जहाँ सुसमाचार प्रचार करना निषेध है l वह एक प्रशिक्षित नर्स है और एक बड़े हॉस्पिटल में नौकरी करती है, जहां नवजात शिशुओं की देखभाल की जाती है l वह इतनी समर्पित है कि उसका कार्य प्रगट है, और बहुत सी महिलाएँ उसके विषय उत्सुक हैं l वे उससे व्यक्तिगत रूप से प्रश्न पूछने को विवश होती हैं l ऐसे समय में एमी खुले तौर पर अपने उद्धारकर्ता के विषय साझा करती है l
उसके अच्छे काम का कारण, कुछ सहकर्मी ईर्ष्या करते हुए उसपर कुछ दवाईयाँ चोरी करने का दोष लगाया l उसके अधिकारियों ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया, और अधिकारियों ने आख़िरकार दोषी को खोज लिया l इस घटना ने साथी नर्सों को उससे उसके विश्वास के विषय पूछने लगीं l उसका उदाहरण मुझे पतरस की बातें याद दिलाते हैं, "हे प्रियों, . . . . अन्यजातियों(गैर-मसीहियों) में तुम्हारा चाल-चलन भला हो; ताकि जिन-जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकार बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर उनके कारण कृपा-दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें" (2 पतरस 2:11-12) l
घर पर, हमारे काम के माहौल में, या स्कूल में हमारे दैनिक जीवन दूसरों पर प्रभाव डालते हैं जब हम परमेश्वर को अपने अन्दर काम करने देते हैं l हम उन लोगों से घिरे हुए होते हैं जो हमारे बातचीत और व्यवहार पर ध्यान देते हैं l हम परमेश्वर पर भरोसा रखकर उसे अपने कार्यों और विचारों पर अधिकार रकने दें l तब जो अविश्वासी हैं उनको हम प्रभावित करेंगे और संभवतः कुछ यीशु में विश्वास करेंगे l

सनातन सहायक

रीढ़ की हड्डी की चोट से लकवाग्रस्त होने के बाद, मार्टी ने एमबीए अर्जित करने के लिए कॉलेज जाने का फैसला किया l मार्टी की माँ, जूडी, ने उसके लक्ष्य को वास्तविकता बनाने में सहायता की l वह उसके साथ निरंतर बैठकर हर व्याख्यान और अध्ययन नोट्स लिखने और प्रोद्योगिकी मुद्दों को समझने में उसकी सहायता की l उसने उसे मंच पर पहुँचाकर डिप्लोमा प्राप्त करने में उसकी सहायता की l मार्टी ने व्यवहारिक सहायता से अप्राप्य को संभव कर लिया l
यीशु जानता था उसके पृथ्वी से जाने के बाद उसके चेलों को उसी प्रकार की सहायता की ज़रूरत होगी l उसने अपनी शीघ्र घटित होनेवाली अनुपस्थिति की बात कही, उसने कहा वे पवित्र आत्मा द्वारा परमेश्वर के साथ एक नए प्रकार का सम्बन्ध प्राप्त करेंगे l आत्मा उन्हें पल-पल मदद करेगा - एक शिक्षक और मार्गदर्शक जो केवल उनके साथ निवास ही नहीं करेगा किन्तु उनमें बसेगा भी (यूहन्ना 14:17, 26) l
आत्मा परमेश्वर की ओर से यीशु के शिष्यों को आंतरिक सहायता पहुंचाएगा, जो उन्हें सुसमाचार सुनाते समय उनको वह सब बातें सहने की शक्ति देगा जिसे वे अपने बल पर बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं l संघर्ष के क्षणों में, आत्मा उनको यीशु की कही बातें स्मरण दिलाएगा (पद.26) : तुम्हारे मन व्याकुल न हों . . . एक दूसरे से प्रेम करो . . . पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ l
क्या आप अपनी सामर्थ्य और योग्यता से बाहर कुछ सहन कर रहे हैं? आप आत्मा की सनातन सहायता पर निर्भर हो सकते हैं l आपके अन्दर पवित्र आत्मा का काम उसे [परमेश्वर को] उचित महिमा देगा l

माँ का प्रेम

सु की युवावस्था में, उसके माता-पिता के तलाक के बाद उसकी परवरिश सम्बन्धी कानूनी लड़ाई और अन्य मामलों के परिणामस्वरूप उसे कुछ समय के लिए बाल-आश्रम में रहना पड़ा l बड़े बच्चों के परेशान करने के कारण, उसने खुद को अकेला और तिरस्कृत समझा l हर महीने उसकी माँ उससे मिलने एक बार आती थी, और वह अपने पिता से शायद ही मिलती थी l कई वर्षों के बाद, हालाँकि, उसकी माँ ने उसे बताया कि बाल-आश्रम के नियमों के कारण वह अक्सर उससे मिलने नहीं आ पाती थी, और ज्यादातर, वह प्रतिदिन बाड़े के निकट खड़ी होकर उसकी एक झलक पाने की आशा करती थी l कभी-कभी,” उसने कहा, “मैं तुम्हें गार्डन में खेलती हुई देखती थी, केवल यह जानने के लिए कि तुम ठीक होगी l”
जब सु ने यह कहानी बतायी, इससे मुझे परमेश्वर के प्रेम का एक झलक मिला l कभी-कभी हम अपने संघर्षों में त्यागे हुए और अकेला महसूस करेंगे l यह जानना कितना सुखकर है कि वास्तव में परमेश्वर हमेशा हमारी निगरानी कर रहा है (भजन 33:18) l यद्यपि हम उसे देख नहीं सकते, वह मौजूद है l एक प्रेमी अभिभावक की तरह, उसकी आँखें और उसका हृदय हमेशा और हर जगह हमारे ऊपर रहता है l फिर भी, सु की माँ के विपरीत, वह इस समय भी हमारे पक्ष में कार्य कर सकता है l
भजन 91 परमेश्वर का अपने बच्चों के छुटकारा, सुरक्षा और उन्हें थामे रहने का वर्णन करता है l वह शरणस्थान और आश्रय से बढ़ कर है l जब हम जीवन की अंधकारमय घाटियों में होकर जाते हैं, हम इस बोध में विश्राम पाते हैं कि सर्वशक्तिमान प्रभु हमेशा हमारी निगरानी करता है और हमारे जीवनों में क्रियाशील है l वह घोषणा करता है, “मैं [तुम्हारी] सुनूंगा, संकट में मैं [तुम्हारे] संग रहूँगा, मैं [तुम्हें बचाऊंगा]” (पद.15) l

जो हमारे पास है

मेरी सहेली अपने परिवार और मित्रों को अपने घर पर एक उत्सव अवकाश समारोह के लिए इकठ्ठा करने हेतु उत्सुक थी l संगति में प्रत्येक अतिथि इकठ्ठा होने को तैयार था और भोजन खर्च में योगदान करके खर्च कम करना चाहता था l कुछ लोग रोटी, दूसरे लोग सलाद या कोई और प्रकार का भोजन लाने वाले थे l हालाँकि, एक अतिथि आर्थिक रूप से अत्यधिक तंग थी l वह शाम को प्रिय लोगों की संगति में शामिल होने की इच्छा रखते हुए भी, कोई भी भोजन लाने में असमर्थ थी l इसलिए, इसके बदले, उसने अपने मेजबान के घर को साफ़ करने का प्रस्ताव रखकर अपना योगदान दिया l
उसका स्वागत खाली हाथ आने पर भी हुआ होता l फिर उसने जो उससे हो सकता था देने की इच्छा प्रगट की - उसका समय और कौशल - और पूरे मन से उस संगति में आयी l मेरे विचार से 2 कुरिन्थियों 8 में पौलुस के शब्दों के भाव यही थे l विश्वासी कुछ साथी मसीहियों की सहायता करने के लिए उत्सुक थे, और पौलुस ने उन प्रयासों का पालन करने का आग्रह किया l उसने उनकी अभिलाषा और उनकी इच्छा को यह कहते हुए सराहा, कि देने की उनकी प्रेरणा ही किसी भी माप के उपहार या राशि को स्वीकार्य बनाता है (पद.12) l
हम अक्सर अपने दान की तुलना दूसरों की दान से करने में जल्दबाजी करते हैं, विशेषकर उस समय जब हमारे संसाधन उस माप की बराबरी नहीं करते जो हम देने की इच्छा रखते हैं l किन्तु परमेश्वर हमारे देने को भिन्न दृष्टिकोण से देखता है : जो हमारे पास है उसे देने की हमारी इच्छा ही से वह प्रेम करता है l

एक गुप्त सेवा

एक बड़े शैक्षिक प्रोजेक्ट का बोझ मुझ पर था, और मैं उसे तय समय सीमा पर पूरा करने के विषय चिंतित थी l मेरी घबराहट में, उत्साहवर्धन कर रहे तीन सहेलियों के पत्र प्राप्त हुए l हर एक ने लिखा, "मेरी प्रार्थना में परमेश्वर ने मुझे तुम्हारी याद दिलाई l" मैं दीन और उत्साहित की गयी कि इन मित्रों ने मेरी स्थिति को जाने बगैर मुझसे संवाद किया, और मेरा विश्वास था परमेश्वर ने उनको प्रेम के संदेशवाहक के तौर पर उपयोग किया था l
कुरिन्थुस की कलीसिया के विश्वासियों को लिखते हुए प्रेरित पौलुस प्रार्थना की सामर्थ्य से परिचित था l उसने लिखा कि वह आशा करता था कि परमेश्वर उन्हें मृत्यु के संकट से बचाता रहेगा जब "तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे" (2 कुरिन्थियों 1:10-11) l और परमेश्वर द्वारा उनकी प्रार्थना का उत्तर देने के बाद, वह (परमेश्वर) महिमामंडित होगा जब "बहुत से लोगों की प्रार्थनाओं" (पद.11) के उत्तर के लिए लोग धन्यवाद देंगे l
मेरी सहेलियाँ और पौलुस मध्यस्थता की प्रार्थना में लगे हुए थे, जिसे ऑस्वाल्ड चैम्बर्स "एक गुप्त सेवा संबोधित करता है जिससे निकलनेवाला परिणाम पिता को महिमामंडित करता है l" यीशु की ओर अपना मन और हृदय केन्द्रित करते समय, हम उसे हमें आकार देते हुए पाते हैं, जिसमें हमारी प्रार्थना करने का तरीका भी है l वह हमें मित्रों, परिजनों, और अपरिचितों को सच्ची मध्यथता की प्रार्थना का इनाम देने में योग्य बनाता है l
क्या परमेश्वर ने आपके हृदय और मन में किसी को लाया है जिसके लिए आप प्रार्थना कर सकते हैं?