कुछ समय पूर्व मैं अपने पुत्र के घर से तीन घंटे की दूरी पर एक निर्माण परियोजना में काम करता था l काम पूरा होने में अपेक्षाकृत अधिक दिन लग गए, और हर सुबह मेरी प्रार्थना होती थी हम सूर्यास्त तक काम ख़त्म कर लेंगे l किन्तु प्रत्येक शाम करने के लिए और काम निकल आते थे l
मैं सोचने लगा क्यों l क्या विलम्ब के लिए कोई कारण हो सकता था? अगली सुबह एक उत्तर मिला l औज़ार उठाते समय एक अपरिचित का फोन आया जिसे बहुत जल्दी थी : तुम्हारी बेटी के साथ दुर्घटना हो गयी है l तुम्हें तुरंत आना है l”
वह मेरे पुत्र के घर के निकट ही रहती थी, इसलिए मुझे उसके पास पहुँचने में केवल चौदह मिनट लगे l यदि मैं अपने घर पर होता, मुझे पहुँचने में तीन घंटे लगे होते l मैं एम्बुलेंस के साथ-साथ गया और सर्जरी से पहले उसे ढाढ़स दिया l जब मैं उसके हाथों को थामे हुए था मैं समझ गया कि यदि मेरी परियोजना विलंबित नहीं होती, मैं वहाँ नहीं होता l
हमारे क्षण परमेश्वर के हैं l इस तरह का अनुभव उस स्त्री का था जिसके पुत्र को परमेश्वर ने एलिशा नबी द्वारा जिलाया था (2 राजा 4:18-37) l उसने अकाल के कारण देश छोड़ दिया था और वर्षो बाद लौटकर राजा से अपनी भूमि मांगी l ठीक उसी समय राजा नबी के सेवक गहेजी से बात कर रहा था l “जब वह [गहेजी] राजा से यह वर्णन कर ही रहा था कि एलिशा ने . . . स्त्री के बेटे को . . . जिलाया था” वह स्त्री अन्दर आ गयी (8:5) l उसका अनुरोध पूरा किया गया l
हम नहीं जानते अगला क्षण क्या लेकर आएगा, किन्तु परमेश्वर हर एक स्थिति को भलाई में बदल देता है l परमेश्वर हमें आज हमारे लिए उसकी नियुक्तियों में उम्मीद से चलने के लिए अनुग्रह दे l