हमारे घर में एक स्मृति-पट्टिका पर “पुकारे या न पुकारे, परमेश्वर उपस्थित है,” अंकित है l उसका आधुनिक संस्करण कुछ इस प्रकार हो सकता है, “स्वीकारें या न स्वीकारें, परमेश्वर यहाँ है l”
ई.पु. आठवीं शताब्दी के आखरी भाग(755-715) में रहनेवाला पुराना नियम का नबी होशे ने, इब्री राष्ट्र को समरूप शब्दों में संबोधित किया l वह इस्राएलियों से परमेश्वर को स्वीकारने हेतु “यत्न”(होशे 6:3) करने को उत्साहित करता है क्योंकि वे उसे भूल गए थे (4:1) l जैसे-जैसे लोग परमेश्वर की उपस्थिति भूल गए, वे उससे दूर होते गए (पद.12) और जल्द ही उनके विचारों में परमेश्वर नहीं रह गया (देखें भजन 10:4) l
परमेश्वर को स्वीकारने के लिए होशे की सरल लेकिन गहन अंतर्दृष्टि हमें याद दिलाती है कि वह आनंद और संघर्ष दोनों में, हमारे जीवन में निकट है और काम करता है l
परमेश्वर को स्वीकार करने का अर्थ हो सकता है कि जब हम काम में पदोन्नति प्राप्त करते हैं, तो हम मानते हैं कि परमेश्वर ने हमें समय पर और बजट के भीतर अपना काम पूरा करने की अंतर्दृष्टि दी l अगर हमारा आवास आवेदन ख़ारिज हो जाता है, तो परमेश्वर को स्वीकारने से हमें सहायता मिलती है जब हम उसे हमारी भलाई के लिए काम करने के लिए भरोसा करते हैं l
यदि हमें हमारे मन का कॉलेज नहीं मिलता है, हम परमेश्वर को स्वीकार करें वह हमारे साथ है और अपनी निराशा में भी उसकी उपस्थिति में सुख प्राप्त करें l रात्रि भोजन खाते समय, परमेश्वर को स्वीकारना उसके द्वारा भोजन की सामग्रियों का प्रबंधन और भोजन तैयार करने के लिए रसोई की याद दिलाता है l
जब हम परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, हम अपने जीवनों में बड़ी या छोटी सफलता और उदासी दोनों में ही उसकी उपस्थिति को याद करते हैं l