सु की युवावस्था में, उसके माता-पिता के तलाक के बाद उसकी परवरिश सम्बन्धी कानूनी लड़ाई और अन्य मामलों के परिणामस्वरूप उसे कुछ समय के लिए बाल-आश्रम में रहना पड़ा l बड़े बच्चों के परेशान करने के कारण, उसने खुद को अकेला और तिरस्कृत समझा l हर महीने उसकी माँ उससे मिलने एक बार आती थी, और वह अपने पिता से शायद ही मिलती थी l कई वर्षों के बाद, हालाँकि, उसकी माँ ने उसे बताया कि बाल-आश्रम के नियमों के कारण वह अक्सर उससे मिलने नहीं आ पाती थी, और ज्यादातर, वह प्रतिदिन बाड़े के निकट खड़ी होकर उसकी एक झलक पाने की आशा करती थी l कभी-कभी,” उसने कहा, “मैं तुम्हें गार्डन में खेलती हुई देखती थी, केवल यह जानने के लिए कि तुम ठीक होगी l”
जब सु ने यह कहानी बतायी, इससे मुझे परमेश्वर के प्रेम का एक झलक मिला l कभी-कभी हम अपने संघर्षों में त्यागे हुए और अकेला महसूस करेंगे l यह जानना कितना सुखकर है कि वास्तव में परमेश्वर हमेशा हमारी निगरानी कर रहा है (भजन 33:18) l यद्यपि हम उसे देख नहीं सकते, वह मौजूद है l एक प्रेमी अभिभावक की तरह, उसकी आँखें और उसका हृदय हमेशा और हर जगह हमारे ऊपर रहता है l फिर भी, सु की माँ के विपरीत, वह इस समय भी हमारे पक्ष में कार्य कर सकता है l
भजन 91 परमेश्वर का अपने बच्चों के छुटकारा, सुरक्षा और उन्हें थामे रहने का वर्णन करता है l वह शरणस्थान और आश्रय से बढ़ कर है l जब हम जीवन की अंधकारमय घाटियों में होकर जाते हैं, हम इस बोध में विश्राम पाते हैं कि सर्वशक्तिमान प्रभु हमेशा हमारी निगरानी करता है और हमारे जीवनों में क्रियाशील है l वह घोषणा करता है, “मैं [तुम्हारी] सुनूंगा, संकट में मैं [तुम्हारे] संग रहूँगा, मैं [तुम्हें बचाऊंगा]” (पद.15) l