सर्दियों के एक जमा देने वाले दिन क्रिस्टा खड़ी हो कर झील के साथ ही बने हुए बर्फ से ढके सुन्दर प्रकाश स्तम्भ को देख रही थी। जैसे ही उसने फोटो लेने के लिए अपने फोन को बाहर निकाला, उसके चश्मे के शीशों पर धुंध जम गई। वह कुछ भी नहीं देख पाई, तो उसने अपने कैमरे को लाईटहाउस की ओर करने का निर्णय किया और अलग-अलग कोणों से तीन-चार तस्वीरें खींच ली। बाद में देखने पर उसे पता चला कि कैमरा तो “सेल्फी” लेने के लिए सैट किया हुआ था और उसने हंसते हुए कहा, “मेरा केन्द्र तो मैं और मैं और मैं ही थी।” क्रिस्टा की तस्वीरों नेमुझे ऐसी ही एक गलती को याद दिलाया: कि हम इतने आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं कि हम परमेश्वर की बड़ी योजना को अपनी दृष्टि से ओझल कर देते हैं।
यीशु का चचेरा भाई यूहन्ना स्पष्ट रीति से जानता था कि उसका केन्द्र वह स्वयं नहीं था। आरम्भ से ही उसने पहचान लिया था कि उसका स्थान या बुलाहट परमेश्वर के पुत्र यीशु की ओर संकेत करने की थी । जब उसने यीशु को उसके और उसके शिष्यों की ओर आते हुए देखा, तो उसने कहा, “देखो परमेश्वर का मेमना!” (यूहन्ना 1:29)। उसने कहना जारी रखा, “मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए। (पद 31)। जब कुछ समय बाद यूहन्ना के शिष्यों ने सूचना दी कि यीशु के शिष्य बन रहे हैं, यूहन्ना ने कहा, “तुम तो आप ही मेरे गवाह हो कि मैं ने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।…अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ।” (यूहन्ना 3:28-30)।
परमेश्वरकरेकिहमारेजीवनोंकाकेन्द्रबिन्दुयीशुऔर उसे अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रेम करना हो।
प्रभु मैं अक्सर अपने आप और अपनी जरूरतों पर केन्द्रित हो जाता हूँ। मुझे अपने आप से हट कर तेरी ओर देखने में मेरी सहायता कर।