जब एक तोप का गोला धरती को हिला देने वाली धम्म की आवाज़ के साथ उसके पास गिरा, तो उस युवा सैनिक ने उत्सुकता के साथ प्रार्थना की, “प्रभु यदि तू मुझे यहाँ से बाहर निकाल दे, तो मैं उस बाइबल स्कूल में चला जाऊँगा, जिसमें माँ मुझे भेजना चाहती थी। परमेश्वर ने उसकी केन्द्रित प्रार्थना का सम्मान किया। मेरे पिता (द्वितीय) विश्व युद्ध में जीवित बच गए, मूडी बाइबल इंस्टिट्यूट में गए और अपना जीवन सेवा के लिए दे दिया।
एक अन्य योद्धा ने एक भिन्न प्रकार की मुसीबत का सामना किया, जो उसे परमेश्वर की ओर ले आई, परन्तु उसकी कठिनाइयाँ बढ़ गई, जब उसने लड़ाई से बचना चाहा। जब राजा दाऊद की सेना अमोरियों के साथ युद्ध लड़ रही थी, दाऊद अपने महल में दूसरे की पत्नी पर एक झलक से ज्यादा नज़र डाल रहा था (देखें 2 शमूएल 11) । भजन 39 में दाऊद इसके परिणामस्वरूप हुए भयंकर पाप से पुनर्स्थापन की प्रक्रिया के इतिहास का वर्णन करता है। वह लिखता है “मेरी पीड़ा बढ़ गई।” “मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था।” (पद 2-3)।
दाऊद की टूटी हुई आत्मा ने उसे इस बात पर ध्यान दिलाया : “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ!” (पद 4)। अपने नवीन केंद्र-बिंदु में दाऊद निराश नहीं हुआ। वह कहीं और नहीं जा सकता था। “अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। (पद 7) । दाऊद इस व्यक्तिगत लड़ाई में विजयी होकर निरंतर परमेश्वर की सेवा करने वाला था ।
(विशेष रूप से केन्द्रित प्रार्थना को छोड़कर) हमारे प्रार्थना के जीवन को क्या प्रोत्साहित करता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर ही हमारी आशा का स्रोत है। वह चाहता है कि हम अपने मन की बात उसे बताएँ।
जब हम प्रार्थना में परमेश्वर के निकट जाते हैं, तो हम उस सर्वोत्तम स्थान पर होते हैं, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।