एक टीवी के कार्यक्रम में युवाओं ने किशोरों के जीवन को और अच्छे से समझने के लिए माध्यमिक विद्यालय के छात्र होने का अभिनय किया। उन्होंने पाया कि किशोर अपना मूल्यांकन कैसे करते हैं, इस पर सोशल मीडिया एक मुख्य भूमिका निभाती है। एक सहभागी ने पाया कि “विद्यार्थियों का आत्म-मूल्य सोशल मीडिया से जुड़ा होता है-यह इस बात पर आधारित होता है कि “उनकी लगाई गई तस्वीर को कितने लोगों ने पसन्द किया है।” दूसरों के द्वारा स्वीकार किए जाने की यह आवश्यकता किशोरों को आनलाइन चरम सीमा तक का व्यवहार करने की ओर ले जा सकता है। 

दूसरे लोगों के द्वारा स्वीकार किए जाने की चाह सर्वदा से रही है। उत्पत्ति 29 में लिआ: अपने पति याकूब के प्रेम की चाह रखती है। यह उसके पहले तीन पुत्रों के नाम में दिखाई देता है-सभी उसके अकेलेपन को दर्शा रहे हैं (पद 31-34) । परन्तु दुःख की बात यह है कि ऐसा कोई भी संकेत नहीं दिया गया है कि याकूब ने कभी भी वह प्रेम उसे प्रदान किया, जिसकी वह लालसा करती रही थी।

उसकी चौथी सन्तान के जन्म पर, लिआ: अपने पति के स्थान पर परमेश्वर की ओर मुड़ी और अपने चौथे पुत्र का नाम यहूदा रखा, जिसका अर्थ “धन्यवाद” है (पद 35) । ऐसा प्रतीत होता है कि लिआ: ने अंततः अपना मूल्य परमेश्वर में खोजने का चुनाव किया। वह परमेश्वर के उद्धार के कार्य का एक हिस्सा बन गई: यहूदा राजा दाऊद और बाद में यीशु का पूर्वज हुआ।

हम अनेक तरीकों और चीज़ों में अपना मूल्य खोजने का प्रयास कर सकते हैं, परन्तु यीशु में ही हम परमेश्वर की सन्तान, मसीह के साथ उत्तराधिकारी और उन लोगों के रूप में अपनी पहचान को प्राप्त करते हैं, जो स्वर्गीय पिता के साथ अनन्त जीवन में वास करेंगे। जैसा कि पौलुस ने लिखा  कि “प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता” की तुलना इस संसार की किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती (फिलिप्पियों 3:8)।