नवम्बर 2016 में एक विचित्र चन्द्रमा दिखाई दिया था-अपनी कक्षा में चन्द्रमा साठ साल में पृथ्वी के सबसे निकटम बिन्दू पर पहुँच गया था और यह पहले से बड़ा और चमकदार दिखाई दिया। परन्तु मेरे लिए उस दिन आकाश स्लेटी रंग से ढका हुआ था। यद्यपि मैंने इस चमत्कार की दूसरे स्थानों पर मेरे मित्रों के द्वारा ली गई तस्वीरों को देखा और जब मैंने ऊपर देखा तो मुझे उस समय भरोसा करना था कि वह अद्भुत चन्द्रमा उन बादलों के पीछे छिप कर इन्तजार कर रहा था।

प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया से कठिनाइयों में अनदेखे, परन्तु सर्वदा तक बने रहने वाले, पर विश्वास करने के लिए आग्रह किया। उसने कहा उनकी “क्षणिक कठिनाइयाँ” किस प्रकार “एक अनन्त महिमा” को प्राप्त कर सकती हैं (2 कुरिन्थियों 4:17) । इसलिए उन्होंने अपनी आँखें “उस पर नहीं लगाई, जो दिखाई दे रहा था, अपितु उस पर जो दिखाई नहीं दे रहा था,” क्योंकि जो दिखाई नहीं दे रहा है, वह अनन्त है, (पद 18) । पौलुस ललायित था कि कुरिन्थुस के लोग विश्वास में बढ़ें और यद्यपि उन्होंने दुःख उठाया, फिर भी वे परमेश्वर पर भरोसा रखें। हो सकता है वे उन्हें देखने के योग्य न हों, परन्तु वे विशवास कर सकते थे कि वह उन्हें दिन-ब-दिन नया कर रहे थे (पद 16)।   

मैंने विचार किया कि परमेश्वर किस प्रकार अनदेखा परन्तु अनन्त है, जब मैंने उस दिन बादलों में से देखा, तो मैं इस बात को जानती थी कि वह चन्द्रमा छिपा हुआ तो है, परन्तु वह वहीं है। और मैंने विचार किया कि जब अगली बार यह विश्वास करने की परीक्षा में हूँगी कि परमेश्वर मुझ से दूर है, तब मैं अपनी आँखें उस पर लगाऊँगी जो अनदेखा है।