मेरा सबसे छोटा पौत्र केवल दो महीने का है, फिर भी हर बार जब मैं उसे देखती हूँ मैं उसमें छोटे-छोटे बदलाव पाती हूँ l हाल ही में, जब मैं उसको दुलार रही थी, वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया! और अचानक मैं रोने लगी l शायद वह आनन्द था जो मैं अपने बच्चों की पहली मुस्कराहट के साथ याद कर रही थी l कुछ क्षण ऐसे ही होते हैं – वर्णन से बाहर l
भजन 103 में दाऊद ने एक काव्यात्मक गीत लिखा जिससे परमेश्वर की प्रशंसा के साथ इस पर भी विचार किया गया है कि हमारे जीवनों के आनंदित क्षण कितनी जल्दी गुज़र जाते हैं : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मलता है” (पद. 15-16) l
परन्तु जीवन की अल्पता को जानने के बावजूद, दाऊद फूल को फलता-फूलता या बढ़ता हुआ वर्णन करता है l यद्यपि हर एक फूल अकेले ही शीघ्रता से खिलता और फूलता है, उसकी खुशबु और रंग और सुन्दरता उस क्षण को बहुत ही आनंदित करती है l और यद्यपि एक अकेला फूल शीघ्र ही भुलाया जा सकता है – “न वह अपने स्थान में फिर मिलता है” (पद.16) – तुलनात्मक तौर पर हमें निश्चय है कि “यहोवा की करुणा उसके डरवैयों पर युग युग . . . प्रगट होता रहता है” (पद.17) l
हम भी फूलों की तरह, उस क्षण में आनंदित होते और फलते-फूलते है; किन्तु हम इस सत्य का भी उत्सव मना सकते हैं कि हमारे जीवन के क्षण वास्तव में कभी भूलाए नहीं जाएंगे l परमेश्वर हमारे जीवनों के हर एक अंश को संभाले रखता है, और उसका अनंत प्रेम सदैव उसके बच्चों के साथ है l
परमेश्वर उसके लिए फलने-फूलने के उद्देश्य से हमारे लिए प्रबंध करता है l