मैं एम्बुलेंस के अन्दर था और उसका फाटक बंद होने वाला था l बाहर, मेरा बेटा मेरी पत्नी से बात कर रहा था l अपने मस्तिष्काघात के धुंध में से, मैंने उसका नाम पुकारा l जैसे कि वह उस क्षण को याद करता है, मैंने धीरे से बोला था, “अपनी माँ से कह दो मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ l”
प्रत्यक्ष रूप से मैंने सोचा यह अलविदा है, और मैं उन शब्दों को जुदाई के शब्द मानना चाहता था l उस क्षण, वही मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण था l
जब यीशु अपने सबसे अंधकारमय क्षण को सह रहा था, उसने केवल यह नहीं कहा वह हमसे प्रेम करता है; उसने इसे ख़ास तरीकों से प्रगट किया l उसने उन ठट्ठा करनेवाले सैनिकों को भी दिखाया जिन्होंने उसे उसी समय क्रूसित किया था : “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं” (लूका 23:34) l उसने उसके साथ क्रूसित एक अपराधी को आशा दी : “आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा” (पद.43) l अंत के समय, उसने अपनी माता की ओर देखकर उससे कहा, “यह तेरा पुत्र है,” और अपने प्रिय मित्र यूहन्ना से बोला, “यह तेरी माता है” (यूहन्ना 19:26-27) l उसके बाद, जब उसकी मृत्यु हुयी, अपने पिता पर भरोसा यीशु के प्रेम का अंतिम कार्य था : “मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ” (लूका 23:46) l
यीशु ने अपने पिता के प्रति आज्ञाकारिता दर्शाने के उद्देश्य से – और हमारे लिए अपने प्रेम की गहराई प्रगट करने के लिए – क्रूस का चुनाव किया l बिलकुल अंत तक, उसने हमें अपना अनवरत प्रेम दिखाया l
यीशु का हर शब्द प्रेम में बोला गया था l