वह दिन यरूशलेम के बाहरी क्षेत्र में एक अंधकारमय और निराशाजनक दिन था l शहरपनाह के ठीक बाहर एक पहाड़ी पर, एक व्यक्ति जो बीते तीन वर्षों तक उत्साही अनुयायियों की भीड़ आकर्षित करता रहा था उबड़-खाबड़ लकड़ी के एक क्रूस पर अपमान और पीड़ा में टंगा हुआ था l विलाप करनेवाले शोक में रो और बिलख रहे थे l सूर्य का प्रकाश अब दोपहर के आसमान को चमक नहीं दे पा रहा था l और क्रूस पर उस व्यक्ति के अत्यधिक पीड़ा का अंत हुआ जब वह ऊँची आवाज़ में चिल्लाया, “पूरा हुआ” (मत्ती 27:50; यूहन्ना 19:30) l
उसी क्षण, नगर के भीतर उस बड़े मंदिर से एक और आवाज़ आयी – कपड़े के चीरने की आवाज़ l आश्चर्यजनक रूप से, मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना, वह अत्यधिक बड़ा, मोटा पर्दा जो मंदिर के बाहरी भाग को महा पवित्र स्थान से अलग करता था ऊपर से नीचे तक दो टुकड़े हो गया (मत्ती 27:51) l
वह फटा हुआ पर्दा क्रूस की सच्चाई का प्रतीक था : परमेश्वर तक एक नया मार्ग खुल गया था! क्रूस पर का व्यक्ति, यीशु, अंतिम बलिदान के रूप में अपना लहू बहा दिया था – एकमात्र वास्तविक और उपयुक्त बलिदान (इब्रानियों 10:10) – जो उसपर विश्वास करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को क्षमा का आनंद उठाने और परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध स्थापित करने देता है (रोमियों 5:6-11) l
उस मूल शुभ शुक्रवार के अंधकार के बीच में, हमने अबतक का सबसे उत्तम समाचार सुना – यीशु ने हमें हमारे पापों से बचाने के लिए और परमेश्वर के साथ संगति का अनुभव करने के लिए एक नया मार्ग खोल दिया (इब्रानियों 10:19-22) l हे मेरे परमेश्वर उस फटे हुए परदे के सन्देश के लिए धन्यवाद!
किस प्रकार शुभ शुक्रवार की सच्चाई ने आपको अंधकार से प्रकाश में लाया है? आपके लिए परमेश्वर के साथ संगति का अनुभव क्या अर्थ रखता है?