केविन ने अपनी आँखों से आंसू पोछा जब वह अपनी पत्नी, कैरी के पढ़ने के लिए कागज़ का एक टुकड़ा लिए हुए था l वह जानता था कि कैरी और मैं अपनी बेटी के लिए प्रार्थना करते थे कि वह यीशु में पुनः विश्वास करने लग जाए l “यह पर्ची उसकी मृत्यु के बाद मेरी माँ की बाइबल में मिली, और मुझे आशा है कि यह तुम्हें प्रोत्साहित करेगी,” उसने कहा l उस पर्ची के ऊपरी भाग पर ये शब्द थे, “मेरे पुत्र, केविन के लिए l” उन शब्दों के नीचे उसके उद्धार के लिए एक प्रार्थना थी l

केविन ने समझाया, “मैं इस पर्ची को अपनी निजी बाइबल में रखता हूँ l” मेरी माँ ने मेरे उद्धार के लिए पैंतिस वर्षों से अधिक तक प्रार्थना की l मैं परमेश्वर से बहुत दूर था, और अब मैं विश्वासी हूँ l” वह हमारी ओर एक टक देखते हुए अपने आंसुओं में से मुस्कुराया : “अपनी बेटी के लिए प्रार्थना करने में हार न मानना – चाहे जितना समय लग जाए l”

उसके प्रोत्साहन के शब्दों ने मुझे यीशु द्वारा लूका के सुसमाचार में प्रार्थना के विषय बताई गयी कहानी की भूमिका पर सोचने को विवश किया l लूका इन शब्दों के साथ आरम्भ करता है, “फिर [यीशु ने] इसके विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए, उनसे यह दृष्टांत कहा” (18:1) l  

इस कहानी में, यीशु एक “अधर्मी न्यायी” (पद.6) जो केवल इसलिए एक निवेदन को मान लेता है क्योंकि वह आगे को और परेशान नहीं होना चाहता है, की तुलना सिद्ध स्वर्गिक पिता से करता है जो गहराई से हमारी चिंता करता है और इच्छित है कि हम उसके पास आएँ l जब भी हम प्रार्थना करते हैं हम उत्साहित हों कि परमेश्वर सुनता है और हमारी प्रार्थनाओं का स्वागत करता है l