मेरी एक सहेली – ठीक है, वह मेरी परामशदाता थी – ने एक कागज़ पर यष्टि चित्र(stick-figure) बनाया l उसने उसे निजी “व्यक्तित्व” संबोधित किया l उसके बाद उसने उस चित्र के चारोंओर रेखा खिंची, करीब आधा इंच बड़ा, और उसे “सार्वजनिक” व्यक्तित्व संबोधित किया l इन दोनों चित्रों में अंतर, निजी व्यक्तित्व और सार्वजनिक व्यक्तित्व, उस सीमा को दर्शाता है जिसमें हमारे पास ईमानदारी है l
मैं उनके पाठ पर विचार करके आश्चर्यचकित हुयी, क्या मैं सार्वजनिक रूप से वह व्यक्ति हूँ जो मैं व्यक्तिगत तौर से हूँ? क्या मैं ईमानदार हूँ?
पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को पत्र लिखा, यीशु के समान बनने के लिए अपनी शिक्षा में प्रेम और अनुशासन को मिला दिया l जब वह इस पत्री(2 कुरिन्थियों) के अंत में पहुँचा, उसने दोष लगानेवालों को जिन्होनें उसकी सत्यता को चुनौती दी थी यह कहते हुए संबोधित किया कि वह अपने पत्रियों में दृढ़ था परन्तु व्यक्तित्व में निर्बल (10:10) l इन आलोचकों ने अपने श्रोताओं से धन प्राप्त करने के लिए व्यवसायिक भाषणबाज़ी का उपयोग किया l जबकि पौलुस के पास शैक्षणिक कौशल था, वह निष्कपटता और सादगी से बोलता था l “मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली वातें नहीं,” उसने पहले की एक पत्री में लिखा था, “परन्तु [उसमें] आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था” (1 कुरिन्थियों 2:4) l बाद की उसकी पत्री ने उसकी ईमानदारी को उजागर किया : “जो ऐसा कहता है, वह यह समझ रखे कि जैसे पीठ पीछे पत्रियों में हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे सामने हमारे काम भी होंगे” (2 कुरिन्थियों 10:11) l
पौलुस ने अपने को सार्वजनिक रूप में और व्यक्तिगत रूप में एक सा दर्शाया l हमारे विषय क्या है?
प्रिय परमेश्वर, व्यक्तिगत रूप से मुझे अपने आप में आपके समक्ष ईमानदार रहने में सहायता करें, ताकि मैं उसी ईमानदारी के साथ खुद को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर सकूँ l