जैसे ही मैंने लाल बत्ती पर अपनी कार रोकी, मैंने फिर से उसी व्यक्ति को सड़क के किनारे खड़ा देखा l वह गत्ते का एक साइनबोर्ड लिए हुए था : भोजन के लिए पैसे चाहिए l कोई भी सहायक हो सकता है l मैं अपना मूंह फेरकर गहरी सांस ली l क्या मैं ज़रुरात्मंदों की उपेक्षा करनेवाला व्यक्ति हूँ?

कुछ लोग ज़रूरतमंद होने का बहाना बनाते हैं परन्तु वास्तव में ठग होते हैं l दूसरों के पास वास्तविक ज़रूरतें होती हैं परन्तु विनाशकारी आदतों पर काबू पाने में कठिनाई महसूस करते हैं l सामाजिक कार्यकर्ता हमें बताते हैं कि अपने शहर की सहायता सेवाओं को धन देना बेहतर है l मैंने कठिनाई से इसे ग्रहण किया और गाड़ी तेज़ चलायी l मैंने अच्छा महसूस नहीं किया, परन्तु बुद्धिमानी से कार्य कर सकता था l

परमेश्वर हमें “आलसियों को चेतावनी [देने] भीरुओं को सांत्वना [देने] दुर्बलों को [सँभालने]’ की आज्ञा देता हैं (1 थिस्सलुनीकियों 5:14 HindiCL-BSI)) l इसे भलीभांति करने के लिए हमें जानना है कि कौन किस श्रेणी में आता है l यदि हम दुर्बलों अथवा कायरों को चेतावनी देते हैं, हम उनकी आत्मा को चूर-चूर कर देंगे; यदि हम आलसी की सहायता करेंगे, हम आलस को बढ़ावा देंगे l फलस्वरूप, हम निकट से पूरी मदद कर सकते हैं, जब हम प्रयाप्त रूप से व्यक्ति और उसकी ज़रूरतों को जान जाते हैं l

क्या परमेश्वर ने किसी की सहायता करने के लिए आपके हृदय पर बोझ डाला है? उत्कृष्ट! अब कार्य आरम्भ होता है l यह न समझें आप उस व्यक्ति की ज़रूरतें जानते हैं l उसे अपनी कहानी बताने को कहें, और आप सुनें l प्रार्थनापूर्वक बुद्धिमानी से मदद करें और केवल अच्छा महसूस करने के लिए नहीं l जब हम वास्तव में “सब से . . . भलाई ही की चेष्टा [करेंगे],” हम अधिक तत्परता से उस समय भी जब वे गिरेंगे “सब की ओर सहनशीलता [दिखा सकेंगे] (पद.14-15) l