ब्रिटिश समाचार फिल्म कर्मीदल के एक फिल्म के हिस्से पर मैं चौंक गया जिन्होनें 1932 में छः वर्ष की फ्लानरी ओकोन्नोर के जीवन पर उन्हीं के पारिवारिक फार्म में फिल्म बनायी l फ्लानरी, जो आगे चलकर ख्याति प्राप्त अमरीकी लेखिका बननेवाली थी, ने कर्मीदल के कुतूहलता को आकर्षित किया क्योंकि उसने एक चूजे को उल्टा चलना सिखाया था l इस नयी कमाल की बात के अलावा, मैंने सोचा कि यह झलक इतिहास का एक पूर्ण रूपक था l अपने साहित्यिक बोध और आत्मिक दृढ़ निश्चय, दोनों ही कारण से फ्लानरी ने, अपने जीवन के उन्तीस वर्ष वास्तव में उल्टा चलने में बिताया अर्थात् संस्कृति के तरीकों के विपरीत विचार करते और लिखते हुए l प्रकाशक और पाठक पूरी तौर से चकित थे कि किस तरह उसके बाइबल सम्बन्धी मुद्दे उनके अपेक्षित धार्मिक विचारों के विरुद्ध थे l
यीशु का अनुकरण करनेवालों के लिए मानक के विरुद्ध चलने वाला जीवन वास्तव में अपरिहार्य है l फिलिप्पियों की पत्री हमें बताती है कि यीशु, “परमेश्वर के स्वरुप में [होने के बावजूद],” हमारी अपेक्षा के अनुकूल प्रत्याशित कदम नहीं बढ़ाया (पद.6) l उसने अपनी सामर्थ्य को “अपने वश में रखने की वस्तु न समझा, वरन् अपने को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरुप धारण किया” (पद.6-7) l सृष्टि का प्रभु, मसीह ने, प्रेम के कारण मृत्यु सही l उसने प्रतिष्ठा को नहीं परन्तु दीनता को गले लगाया l उसने अधिकार को नहीं छीना परन्तु इख्तियार को त्याग दिया l सारांश में, यीशु, संसार द्वारा प्रेरित तरीकों के विपरीत उल्टा चला l
बाइबल हमें ऐसा ही करने को कहती है (पद.5) l यीशु की तरह, हम हावी होने के बदले सेवा करते हैं l हम ख्याति के बदले दीनता की ओर बढ़ते हैं l हम लेने के बदले देते हैं l यीशु की सामर्थ्य में, हम उल्टा चलते हैं l
चंगाई और भलाई का एकमात्र तरीका, आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका, यीशु के साथ उल्टा चलने में है l