आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? हम सभी ने इस प्रश्न को बच्चों के रूप में और कभी-कभी व्यस्क के रूप में भी सुना है l प्रश्न जिज्ञासा में उत्पन्न हुआ है, और उत्तर अक्सर महत्वकांक्षा के संकेत के रूप में सुना जाता है l मेरे जवाब वर्षों के दौरान आकार लेते गए, जो एक चरवाहा के रूप में शुरू हुआ, उसके बाद एक ट्रक ड्राईवर, उसके बाद एक सैनिक और मैं कॉलेज में प्रवेश करके एक डॉक्टर बनने की ओर बढ़ा l हालाँकि, मैं एक बार भी याद नहीं कर सकता कि किसी ने सुझाव दिया था या मैंने जानबूझकर “शांत जीवन” का पीछा किया था l
फिर भी पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को यही बताया l पहले, उसने उनसे एक दूसरे से और परमेश्वर के सम्पूर्ण परिवार से और अधिक प्रेम करने का निवेदन किया (1 थिस्सलुनीकियों 4:10) l फिर उसने उन्हें एक सामान्य नसीहत दी जिसमें उनके हाथों द्वारा कोई भी विशिष्ट काम सम्मिलित होगा l “चुपचाप रहने . . . का प्रयत्न करो” (पद.11) l अब पौलुस का वास्तव में क्या मतलब था? उसने स्पष्ट किया : “[तुम] अपना-अपना काम काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो” ताकि बाहरवाले तुम्हें आदर दें और तुम किसी के लिए बोझ न बनो (पद.11-12) l हम बच्चों को उनके गुण या जुनून का पीछा करने में हतोत्साहित नहीं करना चाहते हैं, लेकिन शायद हम उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं कि वे जो कुछ भी करना चाहते हैं, वे शांत भाव से करें l
जिस संसार में हम निवास करते हैं, महत्वकांक्षी और शांत शब्द इससे और अधिक अलग प्रतीत नहीं हो सकते थे l लेकिन वचन हमेशा प्रासंगिक हैं, इसलिए शायद हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि शांत जीवन जीना में कैसा महसूस हो सकता है?
हे यीशु, शांत जीवन जीना कितना लुभावना है, परन्तु मैं जानता हूँ कि यह आसानी से नहीं आएगा l मैं अपना काम करने के लिए अनुग्रह मांगता हूँ, इसलिए नहीं कि मैं संसार से अपने को अलग कर लूँ, परन्तु इसलिए कि मैं उसके शोर में और इजाफ़ा नहीं करूँगा l