जब पांच वर्षीय एलिजा अपने पास्टर से यीशु के स्वर्ग छोड़ने और पृथ्वी पर आने के विषय सुन रहा था, उसने गहरी साँस ली जब पास्टर ने प्रार्थना में उसे हमारे पापों के लिए मारे जाने के लिए धन्यवाद दिया l “अरे! वह मर गया?” लड़का चकित होकर बोला l
पृथ्वी पर मसीह के जीवन के आरम्भ से ही, ऐसे लोग थे जो उसे मृत चाहते थे l राजा हेरोदेस के राज्य में बुद्धिमान लोग यरूशलेम आकर पूछने लगे, “यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको प्रणाम करने आए हैं” (मत्ती 2:2) l राजा यह सुनकर भयभीत हुआ कि एक दिन वह यीशु के हाथों अपना पद खो देगा l इसलिए उसने बैतलहम के आसपास के सभी लड़कों को जो दो साल और उससे छोटे थे को मारने के लिए सैनिक भेजे l लेकिन परमेश्वर ने अपने पुत्र की रक्षा की और एक स्वर्गदूत भेजकर उसके माता-पिता को वह क्षेत्र छोड़ने के लिए चेतावनी दी l वे वहाँ से चले गए, और वह बचा लिया गया (पद.13-18) l
जब यीशु ने अपनी सेवा पूरी की, उसे संसार के पापों के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया l उसके क्रूस पर लगाए गए संकेत पर लिखा था, “यह यहूदियों का राजा यीशु है” यद्यपि मजाक था l फिर भी तीन दिनों के बाद वह कब्र से जी उठकर विजयी हुआ l स्वर्गारोहण के बाद, वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु होकर सिंहासन पर बैठ गया (फिलिप्पियों 2:8-11) l
हमारा राजा – तुम्हारे, मेरे, और एलिजा के पापों के लिए मरा l उसे अपने हृदयों में राज्य करने दें l
यीशु को अपना राजा मानना आपके लिए क्या अर्थ रखता है? क्या आपके जीवन में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वह नहीं है?