मेरे अन्दर हमेशा ही एक संग्राहक का हृदय रहा l बचपन में, मैं डाक टिकट, सिक्के, कॉमिक्स इकठ्ठा करता था l वर्तमान में, एक अभिभावक होने के कारण, मैं अपने बच्चों में वही असर देखता हूँ l कभी-कभी मैं विचार करता हूँ, क्या मुझे वास्तव में एक और टेडी बेयर की ज़रूरत है?

निःसंदेह, यह ज़रूरत के विषय नहीं है l यह किसी नई चीज़ की ओर आकर्षण के विषय है l या कभी-कभी कुछ पुरानी, कुछ दुर्लभ चीजों का तरसानेवाला खिंचाव l जो कुछ भी हमारी कल्पना को मंत्रमुग्ध करता है, हम यह विश्वास करने की ओर फुसलाए जाते हैं कि काश हमारे पास “फलां” वस्तु होती, तो हमारे जीवन बेहतर होते l हम खुश होते l संतुष्ट l

सिवाय वे चीजें जो कभी भी अपेक्षित परिणाम नहीं देते हैं l क्यों? इसलिए कि परमेश्वर ने हमें उसके द्वारा भरे जाने के लिए बनाया है, उन चीजों से नहीं जो हमारे चारों ओर का संसार अकसर जोर देता है कि ये वस्तुएं हमारे अभिलाषी हृदयों को संतुष्ट करेंगे l

तनाव शायद ही नई बात है l नीतिवचन जीवन के दो तरीकों की तुलना करता है : धन का पीछा करने में व्यतीत जीवन के विपरीत प्रेमी परमेश्वर और उदारता से दान देने में जड़वत जीवन l नीतिवचन 11:28 में ऐसा कहा गया है : “जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है, परन्तु धर्मी लोग नए पत्ते के समान लहलहाते हैं l”

कितनी खुबसूरत तस्वीर! दो तरीके का जीवन : एक फलता-फलता, दूसरा खोखला और फलहीन l संसार जोर देता है कि भौतिक अधिकता बराबर “अच्छा जीवन l” इसकी तुलना में, परमेश्वर हमें उसमें जड़वत होने, उसकी भलाई का अनुभव करने और उन्नति करते हुए फलवंत होने के लिए आमंत्रित करता है l और जब हम उसके साथ अपने सम्बन्ध के द्वारा गढ़े जाते है, परमेश्वर हमारे हृदयों और इच्छाओं को पुनः आकार देते हुए, हमें अन्दर से बाहर रूपांतरित करता है l