“मैं बेस्वाद शराब और निराशा से भरा हुआ अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था,” सरकार के लिए एक गुप्चर एजेंट के रूप में अपने काम के दौरान एक ख़ास निराशाजनक शाम के विषय एक प्रसिद्ध व्यक्ति ने लिखा l “इस संसार में अकेला, अनंत में, रौशनी की एक झलक के बिना l”

ऐसी हालत में, उसने वही किया जो उसने विवेकपूर्ण समझा; उसने खुद को डूबाने की कोशिश की l पास के समुद्र तट पर ड्राइविंग करते हुए, उसने समुद्र में लम्बी दूरी तक तैरना आरम्भ किया जब तक वह थक न जाए l पीछे मुड़कर, उसने दूर की तटीय रौशनी की झलक देखी l उस समय कोई कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण, वह वापस रौशनी की ओर तैरने लगा l अपनी थकान के बावजूद, वह “एक अपरिहार्य आनंद” को याद करता है l

मुगरिज को ठीक-ठीक पता नहीं था, लेकिन वह जानता था कि परमेश्वर उस अँधेरे क्षण में उसके पास पहुँच गया था, उसे इस आशा से भर दिया था जो केवल अलौकिक हो सकता था l प्रेरित पौलुस ने ऐसी आशा के बारे में अक्सर लिखा था l इफिसियों की पत्री में उसने उल्लेख किया है कि, मसीह को जानने से पहले, हम में से प्रत्येक “[अपने] पापों के कारण मरे हुए थे . . . आशाहीन और जगत में ईश्वररहित थे l लेकिन “परमेश्वर ने जो दया का धनी है . . . जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया” (पद.4-5) l

यह संसार हमें गहराई में खींचना चाहती है, लेकिन निराशा के आगे झुकने का कोई कारण नहीं है l जैसा कि मुगेरिज ने समुद्र में अपने तैरने के बारे में कहा, “यह मेरे लिए स्पष्ट हो गया कि कोई अँधेरा नहीं था, केवल एक प्रकाश की दृष्टि खोने की सम्भावना थी जो सदा चमकती थी l”