27 ई.पू. में, रोमन शासक ऑक्टेवियन अपनी शक्ति को त्यागने के लिए सीनेट/मंत्री सभा के सामने उपस्थित हुआ l उसने एक गृह युद्ध जीता था, और संसार के उस क्षेत्र का एकमात्र शासक बन गया था, और एक सम्राट की तरह काम कर रहा था । फिर भी वह जानता था कि ऐसी शक्ति को संदिग्ध रूप से देखा जाता था । इसलिए ऑक्टेवियन ने सीनेट के समक्ष अपनी शक्तियों को त्याग दिया, और केवल एक नियुक्त अधिकारी रहने की कसम खाई । उनकी प्रतिक्रिया? रोमी सीनेट ने शासक को एक नागरिक मुकुट पहनाकर और उसे रोमी लोगों का सेवक नाम देकर सम्मानित किया । उन्हें ऑगस्तुस नाम भी दिया गया था – “महान l”
पौलुस ने यीशु को खुद को खाली करने और सेवक रूप लेने के बारे में लिखा । ऑगस्तुस भी ऐसा ही करते दिखाई दिए । या क्या उसने वास्तव में ऐसा किया? ऑगस्तुस ने केवल दिखावा किया मानो वह अपनी शक्ति को त्याग रहा था लेकिन वह यह केवल अपने लाभ के लिए कर रहा था । यीशु “यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8) । रोमी क्रूस पर मौत अपमान और शर्म का सबसे बुरा रूप था ।
आज, यीशु ही प्राथमिक कारण है कि लोग “सेवक नेतृत्व” की प्रशंसा एक गुण के रूप में करते हैं l नम्रता ग्रीक(यूनानी) या रोमन गुण नहीं थी । क्योंकि यीशु हमारे लिए क्रूस पर मरा, वह सच्चा सेवक है । वह सच्चा उद्धारकर्ता है ।
मसीह हमें बचाने के लिए एक सेवक बन गया । उसने “अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया” (पद.7) ताकि हम वास्तव में कुछ महान प्राप्त कर सकें – उद्धार और अनन्त जीवन का उपहार ।
यह क्यों सच है कि हम कभी भी ईश्वर की पहुँच से बाहर नहीं हैं? आपके लिए यह जानने का क्या मतलब है कि यीशु वह सेवक है जो आपको बचाने के लिए दुःख उठाया और मर गया?
प्रिय यीशु, मेरे लिए अपना जीवन देने के लिए धन्यवाद । आपका सेवक बनना दिखावा नहीं था, लेकिन मेरे लिए आपके प्रेम की वास्तविकता थी । आज मेरे हृदय को प्रेम और कृतज्ञता से भर दें । आप संसार के सच्चे सेवक और उद्धारकर्ता हैं ।